श्रद्धांजलि

जॉर्ज पफर्नान्डेस्

वरिष्ठ समाजवादी नेता, जॉर्ज फर्नान्डेस् का 29 जनवरी 2019 को 88 वर्ष की आयु में देहांत हो गया. ऐक्टू उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देता है.

वे एक जुझारू ट्रेड यूनियन नेता, 1974 की ऐतिहासिक रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल के प्रमुख नेता और इमरजेंसी-विरोधी आंदोलन के साहसिक नेता के रूप में याद किये जाते रहेंगे.

वे विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय प्रतिरोध आंदोलनों के समर्थक थे, और खासकर म्यान्मार, श्रीलंका और अन्य देशों के राजनीतिक शरणार्थियों ने उनके आवास में शरण पाई थी और कार्यालय का उपयोग किया था.

कामरेड साधुशरण यादव

महासंघ (गोप गुट) से सम्बद्ध बिहार राज्य चिकित्सा एवं जन-स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के प्रदेश मुख्य संरक्षक व कैमूर जिला महासंघ के सम्मानित अध्यक्ष का0 साधुशरण यादव जो उच्च रक्त चाप से ग्रसित थे, का हृदयाघात के कारण 28 नवम्बर को असामयिक निधन पीएमसीएच, पटना में ईलाज के दौरान हो गया.

30 नवम्बर ’18 को महासंघ (गोप गुट) राज्य कार्यालय, पटना में शोक सभा आयोजित कर का0 साधुशरण यादव को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गयी. शोक सभा का संचालन चिकित्सा जन-स्वास्थ्य कर्मचारी संघ के राज्याध्यक्ष सुधीर बोस चौधरी ने किया.

विष्णु खरे

विष्णु जी नहीं रहे. हिंदी साहित्य संसार ने एक ऐसा बौद्धिक खो दिया, जिसने ‘बिगाड़ के डर से ईमान’ की बात कहने से कभी भी परहेज नहीं किया. झूठ के घटाटोप से घिरी हमारी दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम रह गए हैं. निर्मम आलोचना की यह धार बगैर गहरी पक्षधरता और ईमानदारी के सम्भव नहीं हो सकती थी.

बनाव और मुँहदेखी उनकी जिंदगी से खारिज थे. चुनौतियों का सामना वे हमेशा सामने से करते थे. अडिग-अविचल प्रतिबद्धता, धर्मनिरपेक्ष-प्रगतिशील-जनवादी दृष्टि और विभिन्न मोर्चों पर संघर्ष करने का अप्रतिम साहस हमारे लिए उनकी विरासत का एक हिस्सा है.

अलविदा शमशेर दा!

अपना संपूर्ण जीवन इस शोषणकारी सत्ता के शोषण और दमन के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए 22 सितंबर 2018 को डा. शमशेर सिंह बिष्ट इस दुनिया से चले गए. वे शमशेर दा के नाम से प्रिय थे और उत्तराखंड के अल्मोड़ा शहर में रहते थे. उत्तराखंड के जनसरोकारों से जुड़े ढेर सारे क्षेत्रीय नेताओं से वे इस मायने में अलग थे कि शमशेर दा पहाड़ की जनता की बुनियादी समस्याओं के समाधान को देश की बुनियादी समस्याओं के समाधान के अंदर ही देखते थे. यही कारण था कि अपनी युवावस्था में सर्वोदय आंदोलन के प्रभाव के साथ ही वे मार्क्सवाद से भी प्रभावित हुए.

कोंडापल्ली कोटेश्वरम्मा: एक सदी का संघर्ष

19 सितंबर 2018 को का0 कोंडापल्ली कोटेश्वरम्मा का निधन हो गया - उन्होंने 5 अगस्त 2018 को अपने जीवन के सौ वर्ष पूरे किए थे. वे स्वतंत्रता सेनानी थीं, कम्युनिस्ट कार्यकर्ता थीं, एक नारीवादी थीं, लेखिका और कवयित्री थीं.

विजयवाड़ा के निकट पमारू गांव के एक मध्यम वर्गीय परिवार में 5 अगस्त 1918 को उनका जन्म हुआ था. का0 चंद्र राजेश्वर राव से प्रेरणा पाकर 18 वर्ष की उम्र में कोटेश्वरम्मा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी. उन्होंने पार्टी के नेता कोंडापल्ली सीतारमैया के साथ शादी कर ली. तेलंगाना सशस्त्र किसान आंदोलन के दौरान वे अपने बच्चों को छोड़कर दो वर्ष के लिए भूमिगत हो गई थीं.

कुलदीप नैय्यर - लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी

वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सच्चे प्रहरी थे. इमरजेंसी का दौर हो या 59 संविधान संशोधन के जरिये पंजाब में पुलिस और सेना को बेलगाम छूट, कुलदीप नैय्यर हमेशा दमनकारी सत्ता के खिलाफ न सिर्फ लिखते रहे बल्कि सड़क पर भी आंदोलनकारी जनता के साथ खड़े दिखे. बिहार के बथानी टोला जनसंहार में पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए 22 अगस्त 1996 को दिल्ली में बनी एक कमेटी में मशहूर मानवाधिकार कार्यकर्ता वीएम तारकुंडे और राजेन्द्र सच्चर के साथ कुलदीप नैय्यर भी थे. इंदिरा निरंकुशता विरोधी लड़ाई के दौर में आइपीएफ के साथ कई संयुक्त आंदोलनों में उनकी भागीदारी रही.

का. मिथिलेश यादव

भाकपा-माले के पूर्व बिहार राज्य कमेटी सदस्य, ऐक्टू के पूर्व राज्य कार्यकारिणी सदस्य एवं इंनौस (इंकलाबी नौजवान सभा) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष का. मिथिलेश यादव का गत 15 जून 2018 को असामयिक निधन हो गया. का. मिथिलेश यादव ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत छात्र संगठन आइसा से की थी और नब्बे के दशक में वे बिहार में छात्रों के चर्चित नेता के बतौर स्थापित हुए. छात्र आंदोलन के उपरांत वे लंबे समय तक इनौस के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे. 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में वे घोषी विधानसभा से भाकपा-माले के प्रत्याशी थे और 62 हजार से अधिक मत लाकर दूसरे नंबर पर रहे थे.

डा. अशोक मित्रा

डा. अशोक मित्र का 1 मई 2018 को कोलकाता के एक नर्सिंग होम में निधन हो गया. 10 अप्रैल को वे 90 वर्ष के हो चुके थे और जीवन के अंतिम समय तक लेखक और संपादक के बतौर वे सक्रिय रहे थे. शैक्षिक रूप से वे एक अर्थशास्त्री थे और अपनी जिंदगी के उथल-पुथल भरे पूरे सफर में वे प्रतिबद्ध मार्क्सवादी बने रहे. उन्होंने केंद्र सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार के बतौर अपना योगदान दिया और वे पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार के शुरुआती दौर में वित्त मंत्री भी रहे. लेकिन एक महान और उर्वर लेखक के रूप में भी उन्हें स्नेहपूर्वक याद रखा जाएगा.

का. भास्कर नंदी

नक्सलबाड़ी आंदोलन की अगली पांत के नेता का. भास्कर नंदी का 4 मई की सुबह जलपाईगुड़ी स्थित अपने आवास में निधन हो गया. वे लंबे समय से गले के कैंसर से जूझ रहे थे. 1960 के दशक में का. नंदी अपनी उच्चतर शिक्षा के लिए विदेश गए थे और भारत लौटने तथा नक्सलबाड़ी आंदोलन में शरीक होने के पूर्व उन्होंने कुछ समय के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र का अध्यापन भी किया था उन्होंने आपातकाल के दौरान अपनी गिरफ्तारी के पहले असम और त्रिपुरा में भाकपा-माले के निर्माण और विस्तार में नेतृत्वकारी भूमिका अदा की थी. जेल से निकलने के बाद वे पीसीसी, सीपीआइ-एमएल के पोलितब्यूरो सदस्य की हैसियत से काम करते रहे.