स्कीम कर्मियों ने आयोजित की सफल देशव्यापी हड़ताल

विभिन्न सरकारी योजनाओं में कार्यरत स्कीम कर्मचारियों ने 17 जनवरी 2018 को सफल देशव्यापी हड़ताल संगठित की. विभिन्न योजनाओं में कार्यरत लगभग 20 लाख कर्मचारियों ने देशभर में सड़कों पर उतर कर रैलियों, प्रदर्शनों और धरनों से इस हड़ताल को सफल बनाया और पूरे देश में जिला मुख्यालयों पर जिलाधिकारियों के मार्फत वित्त मंत्री को सम्बोधित ज्ञापन सौंपा. एक प्रेस बयान जारी कर इसी दिन केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने सफल हड़ताल के लिये स्कीम कर्मियों को बधाई दी.

9-11 नवंबर 2017 के मजदूरों के महापड़ाव में लिए गए निर्णय के अनुसार, दस केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों - ऐक्टू, एटक, इंटक, सीटू, एचएमएस, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, यूटीयूसी और एलपीएफ - ने निम्नलिखित मांगों को बुलंद करने के लिए सभी ‘स्कीम कर्मचारियों’ की एक दिन की हड़ताल का आहृान किया था.

  • स्कीम कर्मियों के लिये 45वें अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों को लागू करना: जैसे, श्रमिक के तौर पर मान्यता, सभी स्कीम कर्मचारियों को न्यूनतम मजदूरी 18,000रू. प्रतिमाह से कम नहीं, सामाजिक सुरक्षा जिसमें कम से कम 3,000रू. प्रतिमाह पेंशन शामिल हो और स्कीम कर्मियों को ईपीएफ और ईएसआई में शामिल करो.
  • केन्द्र प्रायोजित योजनाओं जिनमें आईसीडीएस (आंगनबाड़ी), एमडीएमएस (मिड-डे मील), एनएचएम (राष्ट्रीय हेल्थ मिशन-आशा), एसएसए, एनसीएलपी आदि शामिल हैं को 2018 - 19 के केन्द्रीय बजट में समुचित वित्तीय आबंटन मिले, ताकि इन योजनाओं के कर्मियों के वेतन को न्यूनतम वेतन के स्तर पर बढ़ाया जा सके और सभी योजनाओं में समुचित बुनियादी ढांचा और गुणवत्ता परक सेवाओं के साथ इन्हें साधारण जन तक पहुंचाया जा सके.
  • योजनाओं का किसी भी तरीके से निजीकरण ना हो और ना ही किसी भी तरह के कैश (नकद) ट्रांस्फर या लाभार्थियों के बहिष्करण के द्वारा कटौती की जाए.

लगभग 60 लाख स्कीम कर्मी जिनमें आंगनबाडी कर्मी और हेल्पर्स, मिनी आंगनबाडी कर्मी, आशा कर्मी, मिड-डे मील कर्मी, एनसीएलपी शिक्षक, अल्प बचत एजेंट, एसएसए, एनआरएलएम, मनरेगा से जुड़े मजदूर और फील्ड सहायक, पैरा शिक्षक आदि हड़ताल पर गए. विभिन्न सरकारों की धमकियों के बावजूद हड़ताल पूरी तरह सफल रही. कई राज्यों में कर्मचारियों को एक दिन की हड़ताल के लिए छंटनी और एक हफ्ते से लेकर एक महीने का वेतन काटने की धमकियां दी गईं. तेलंगाना के एक डीआरडीओ ने नरेगा के फील्ड सहायकों को नोटिस जारी करके कहा कि उनकी ये हड़ताल राष्ट्र की सम्प्रभुता और अखंडता के खिलाफ है! इसके अलावा बीएमएस, जो पूरी तरह मोदी सरकार के सामने समर्पण कर चुकी है, ने कर्मचारियों को गुमराह करने की कोशिश की.

लेकिन केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों, स्वतंत्र यूनियनों और यहां तक कि यूनियनों से बाहर के कर्मचारियों ने भी हड़ताल में हिस्सेदारी की और असम, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, गोआ, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, पंजाब, पुदुच्चेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में प्रदर्शन आयोजित किए. आंध्र प्रदेश में 23 जनवरी को हड़ताल करना तय हुआ. कई जगहों पर स्कीम कर्मियों ने मोदी सरकार के मंत्रियों के कैम्प कार्यालयों के सामने प्रदर्शन आयोजित किए. कर्नाटक में स्कीम कर्मियों ने अपने राज्य से चार केन्द्रीय मंत्रियों के कार्यालयों के सामने 24 घंटे का पड़ाव आयोजित किया.

इस हड़ताल में ऐक्टू से जुड़ी स्कीम कर्मियों की यूनियनों ने बढ़चढ़ कर भागीदरी की.

दिल्लीः यहां स्कीम कर्मियों ने मंडी हाउस से संसद मार्ग तक मार्च निकाला जहां उन्हें पुलिस ने रोक लिया. कर्मचारियों ने बैरिकेड तोड़ कर संसद मार्ग की ओर मार्च किया और वहां सभा आयोजित की. मार्च की अगुआई केन्द्रीय ट्रेड यूनियन के नेताओं ने की जिनमें ऐक्टू के सचिव संतोष राय और आशा नेता श्वेता राज, एटक के धीरेन्द्र शर्मा, एचएमएस के मंजीत और राजेन्द्र, सीटू के ए.आर. सिंधु, उषा रानी, रंजना निरूला, अनुराग सक्सेना,, एआईयूटीयूसी के एम. चौरसिया शमिल थे. बाद में वित्त मंत्री को एक संयुक्त ज्ञापन सौंपा गया.

संयुक्त संघर्ष की आगे की रणनीति जिसमें अनिश्चितकालीन हड़ताल और पड़ाव शामिल है के बारे में 2018-19 के केन्द्रीय बजट के बाद, सरकार की प्रतिक्रिया जानने के बाद, फैसला किया जाएगा.
बिहारः  स्कीम वर्करों की देशव्यापी हड़ताल का बिहार में व्यापक प्रभाव हुआ. ‘नफरत और हिंसा नहीं, हक और सम्मान चाहिए’; ’स्कीम वर्कर्स की एक ही मांग, पक्की नौकरी, पूरा वेतन, सामाजिक सम्मान’ के नारों के साथ बिहारः ऐक्टू से जुड़े ‘बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ’ के आहृान पर राज्य के 22 जिला के 150 से ज्यादा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पूरी तरह कामकाज ठप रहा. अलग-अलग जिलों के विभिन्न पीएचसी में आशाओं ने अपने संघ के बैनर तले हड़ताल की मांगों को बुलंद करते हुए अपने-अपने अस्पतालों के सामने धरने आयोजित किए. खगड़िया सहित 4 जिला मुख्यालयों पर धरना दिया गया. ऐक्टू राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की राज्य अध्यक्ष शशि यादव स्वयं दरभंगा में आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं. देशव्यापी हड़ताल के आहृान पर आशा, ममता, विद्यालय रसोईया, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका आदि सभी स्कीम कर्मियों ने हड़ताल में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

वहीं आशा कार्यकर्ता संघ द्वारा राज्य की नीतीश सरकार द्वारा 21 जनवरी को आहूत मानव श्रृंखला का बहिष्कार करने का असर हुआ कि मानव श्रृंखला असफल हुई. आशा के साथ ही ऐक्टू से जुड़ी अन्य ट्रेड यूनियनों के स्कीम कर्मियों ने भी मानव श्रृंखला का जोरदार विरोध किया. ऐक्टू से जुड़े बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ, बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ, मध्यान भोजन योजना कर्मचारी एवं पदाधिकारी संघ, आदि संगठनों ने हड़ताल को सफल बनाने में जोरदार भूमिका निभायी.

दरभंगा में बिहार राज्य विद्यालय रसोईया संघ, बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन-ऐपवा और अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा-खेग्रामस से जुडी हजारों महिलाओं ने समाहरणालय पर आक्रोशपूर्ण प्रदर्शन किया और लहेरिया सराय टावर पर घंटों रोड जाम कर दिया.

झारखंडः यहां स्कीम कर्मियों की हड़ताल प्रभावकारी रही जिसमें 4 लाख की भागीदारी रही. आंगनबाड़ी कर्मचारियों की राज्यस्तरीय समन्वय समिति के नेतृत्व में यह हड़ताल अनिश्चितकालीन हड़ताल में तबदील हो गयी. आशा कर्मचारी (सहिया) भी कई इलाकों में हड़ताल में शामिल हुईं. मिड-डे मील कर्मी भी राज्यभर में हड़ताल में गईं और खासकर धनबाद, देवघर, डालटनगंज में उपायुक्त के समक्ष प्रदर्शन किए गए. ऐक्टू से जुड़े झारखंड प्रदेश विद्यालय रसोइया/संयोजिका/अध्यक्ष संघ का 19 जनवरी से विधान सभा के समक्ष धरना जारी है. 19 जनवरी के प्रदर्शन में लगभग 8000 रसोइया शामिल हुई थी. कुल मिलाकर 17 जनवरी की हड़ताल राज्य में स्कीम कर्मियों का एक जुझारू सरकार विरोधी आंदोलन की धारावाहिकता को जन्म देने में उल्लेखनीय ढंग से सफल रही है. वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इसका राजनीतिक आयाम मीडिया एवं राजनीतिक पर्यवेक्षकों द्वारा आंका जा रहा है. झारखंड के पारा शिक्षक संगठनों के एक बड़े धड़े ने इस आंदोलन के साथ एकजुटता जाहिर की. यानी यह आंदोलन क्रमशः एक राजनीतिक आंदोलन में तब्दील होता जा रहा है. केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा इसके समर्थन में राज्यभर में की गई पोस्टरिंग व पर्चावितरण आदि से इस प्रक्रिया को बल मिला है. ऐक्टू की ओर से राज्य महासचिव शुभेंदु सेन ने 17 जनवरी को रांची में आंगनबाड़ी कर्मचारियों के धरना को संबोधित किया. 19 जनवरी को मिड-डे मील कर्मचारियों की सभा को संबोधित करते हुये उन्होंने आने वाले समय में अनिश्चितकालीन आम हड़ताल के लिए तैयार होने का आहृान किया.

पश्चिम बंगालः ऐक्टू से संबद्ध मिड-डे मील, आशा यूनियनों ने इस हड़ताल को सफल बनाने में अच्छी पहलकदमी ली. स्कीम कर्मियों के बीच मांगों के प्रचार के लिए पोस्टर छापे गए, पर्चे बांटे गए, और डीएम कार्यालयों, पंचायतों आदि में हड़ताल का नोटिस दिया गया. इसके अलावा सभी स्कूलों में भी इसे चिपका दिया गया. हरबा, अशोक नगर, खारदा और इससे 24 परगना जिला से सटे इलाकों में, हुगली और हावड़ा में विभिन्न जगहों पर जोरदार अभियान चलाया गया. हड़ताल के दिन भी राज्य के विभिन्न इलाकों में अभियान चलाया गया.
हड़ताल के पूर्व, ममता बनर्जी ने खुले आम स्कीम कर्मचारियों, खासतौर पर आशा कर्मियों को धमकी दी, कि अगर वे हड़ताल में हिस्सा लेंगी तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. उन्होंने कहा कि उनकी नौकरियां छीन ली जाएंगी, सारे लाभ बंद कर दिए जाएंगे और सभी जिलों के सीएमओएच को सर्कुलर जारी करके यह निर्देश दिया गया कि 17 तारीख को सभी आशा कर्मचारियों को अपना नियत काम करना होगा. टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने भी विभिन्न जगहों पर स्कीम कर्मचारियों को धमकाया. इन सब धमकियों के बावजूद हड़ताल बहुत सफल रही, हड़ताल में मिड डे मील और आंगनबाड़ी कर्मचारियों की भागीदारी बहुत उत्साहवर्धक रही. ममता सरकार ने एक बार फिर साबित किया कि उनकी सरकार बड़े जोर-शोर से मोदी सरकार की नीतियों को ही लागू कर रही हैं और उनकी रक्षा कर रही है और बंगाल 17 तारीख को ही उद्योगपतियों की अंतर्राष्ट्रीय ग्लोबल मीट की मेजबानी कर रहा है. मुकेश अंबानी और गोदरेज जैसे बड़े उद्योगपति शामिल हो रहे हैं. मीडिया हड़ताल के बारे में पूरी तरह चुप्पी साधे रहा.

उत्तराखंडः यहां ऐक्टू से संबद्ध ‘उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन’ और ‘उत्तराखंड आंगनबाड़ी कर्मचारी यूनियन’ ने हल्द्वानी, रुद्रपुर, बाजपुर, धारी, सितारगंज, खटीमा, पिथौरागढ़, चम्पावत, सल्ट (अल्मोड़ा), बेरीनाग, टनकपुर आदि विभिन्न स्थानों पर एकदिवसीय हड़ताल पर रहते हुए प्रदर्शन किए, जुलूस निकाले और अपना मांगपत्र भारत के राष्ट्रपति को भेजा.

असमः ऐक्टू से जुड़े आशा संगठन (ऑल असम आशा एसोसिएशन) ने कार्बी आंगलांग में 17 जनवरी को हड़ताल का आयोजन किया जिसका नेतृत्व ऐक्टू सचिव सुभाष सेन ने किया. इसके अलावा 20 जनवरी को आशा संगठन ने बराक वैली में डी.सी. कार्यालय के समक्ष एक बड़े धरने का आयोजन किया और गिरफ्तारी दी.

महाराष्ट्रः यहां ऐक्टू से जुड़े ‘महाराष्ट्र राज्य पूर्व प्रथामिक सेविका व आंगनबाड़ी कर्मचारी महासंघ’ के नेतृत्व में कोल्हापुर में जिला परिषद् पर, अहमदनगर जिले में चार तहसिलों और शोलापुर में जिला परिषद् पर हड़ताल कर प्रदर्शन आयोजित किये गये.

छत्तीसगढ़ः यहां इस अवसर पर ऐक्टू से संबद्ध आईसीडीएस वर्कर्स यूनियन की नेता उमा नेताम के नेतृत्व में प्रदर्शन के साथ एक ज्ञापन कलेक्टर, कोरबा को मुख्यमंत्री के नाम सौंपा गया