सरकारी साजिश बेनकाब - का. रामबली प्रसाद रिहा

बिहार में ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों में ठेके पर नियोजित एएनएम-आर (नर्स) द्वारा जुझारूपन के साथ 2 नवंबर से 22 दिसंबर ‘17 तक चलाये गयी ऐतिहासिक अनिश्चितकालीन हड़ताल का नेतृत्व करने के क्रम में बिहार के कर्मचारी-ठेका मानदेय कर्मचारी आंदोलन के चर्चित नेता व ऐक्टू के राष्ट्रीय सचिव रामबली प्रसाद को उच्चस्तरीय सरकारी साजिश के तहत 18 दिसम्बर को गिरफ्तार करके एक नया फर्जी केस दर्ज कर जेल भेज दिया गया था. साथ में बिहार के कर्मचारी महासंघ (गोपगुट) के महासचिव प्रेमचन्द कुमार सिन्हा को भी 13 दिसंबर को पटना सचिवालय के अभूतपूर्व ऐतिहासिक घेराव के लिए दर्ज केस में नामजद बनाकर गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. विदित हो कि ये दोनों नेता स्वास्थ्य मंत्री के ओएसडी द्वारा फोन पर दी गई सूचना के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के साथ नर्सों की मांगों पर शिष्टमंडल वार्ता के लिए बुलाये गये थे.

सचिवालय मुख्य द्वार पर तैनात एक पुलिस अवर निरीक्षक ने इनसे प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों का नाम महासंघ के लेटर पैड पर लिखवाकर स्वास्थ्य मंत्री के ओएसडी से संपुष्टि कराने और अनुमोदित करा लाने की बात कह कर इन्हें मुख्य द्वार पर ही एक तय जगह पर बिठा दिया. थोड़ी देर बाद उक्त अवर निरीक्षक लौट कर इनसे वार्ता की स्थिति बताने लगा और तभी सचिवालय के अंदर से ही एक पुलिस जीप पर 4 महिला पुलिस के साथ एक अन्य अवर निरीक्षक इनके पास आकर जीप रोकी और इन दोनों को गिरफ्तार कर सचिवालय थाने में ले जाकर बंद कर दिया और बाद में जेल भेज दिया. इतना ही नही, कई राह चलते लोगों को भी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था.

अनुमान के अनुरूप सरकार की इस साजिश पूर्व से तय वार्ता का फलाफल जानने सचिवालय के आस पास एकत्रित नर्सों के बीच आक्रोशपूर्ण प्रतिक्रिया फूट पड़ी. 18 दिसंबर को लगभग एक हजार नर्सों ने कड़कड़ाती ठंढक-शीतलहर में भी रात के 11 बजे तक अपने इन नेताओं की  रिहाई की मांग करते हुए पटना  सचिवालय (विकास भवन) के दोनों मुख्य द्वारों को घेरे रखा. वे सभी सरकार के स्थल पर मौजूद पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के सामने इस मांग पर अड़ी थीं कि हमारे इन नेताओं को रिहा करो और यदि नहीं तो हम लोगों को भी गिरफ्तार कर जेल ले चलो. अन्ततः पुलिस कस्टडी से ही रामबली प्रसाद के निर्देश पर वे लोग रात 11 बजे वहां से हट कर अपने अनिश्चितकालीन धरनास्थल (गर्दनीबाग) चली गईं. इतना ही नहीं, इस सरकारी साजिश व दमन पर पूरे बिहार में कर्मचारियों के बीच तीखी प्रतिक्रिया व्याप्त हो गई. इसके बाद 19 दिसंबर से लेकर रामबली प्रसाद की रिहाई होने तक पूरे बिहार में सरकार की इस लोकतंत्र विरोधी गहरी साजिश और उनकी रिहाई, फर्जी मुकदमों की वापसी और नर्सों की  मांगों की अविलंब पूर्ति के सवाल पर राजधानी पटना से लेकर ब्लॉक-प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर तक धारावाहिक प्रतिवाद आन्दोलनों का क्रम चलता रहा जिस दौरान मुख्यमंत्री-स्वास्थ्य मंत्री का पुतला दहन, जिलाधिकारियों के समक्ष विरोध प्रदर्शन, ड्यूटी के दरम्यान काली पट्टी बांध कर विरोध प्रदर्शन इत्यादि होते रहे. ऐक्टू की खास पहलकदमी पर अन्य केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (बीएमएस को छोड़कर) का पटना तथा अन्य जगहों पर संयुक्त विरोध प्रदर्शन भी आयोजित हुए जिसका केंद्र ऐक्टू व कर्मचारी महासंघ (गोप गुट) बना रहा. कुछ दूसरे राज्यों में भी इस घटना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन-प्रतिवाद के कार्यक्रम लिये गये.

रामबली प्रसाद की रिहाई में साजिशन देर करने के लिए पुलिस थाना से लेकर न्यायालय तक में सरकार के स्वास्थ्य मंत्री-मुख्य मंत्री की घृणित साजिश भी इस दौरान उजागर हुई. अंततः न्यायालय से जमानत मिलने के बाद 9 जनवरी ‘18 की रात 8 बजे रामबली प्रसाद स्थानीय आदर्श केंद्रीय कर, बेऊर(पटना) से रिहा होकर बाहर निकले. उनकी जमानत और रिहाई के अवसर पर कंपकंपाती ठंढक तथा शीतलहरी की बिना परवाह किये कर्मचारी महासंघ, ऐक्टू एवं भाकपा(माले) के करीब 150-200 साथी व हमदर्द बेऊर जेल गेट पर शाम 5 बजे से ही डटे रहे, और जैसे ही जेल का मुख्य फाटक खुला और रामबली तथा उनके साथ गिरफ्तार अन्य लोग (नर्स लक्की कुमारी, मनोज कुमार श्रीवास्तव, मो० आलम व सुरेंद्र पासवान) जेल गेट से बाहर आते दिखे, पूरा जेल इलाका गगनभेदी क्रांतिकारी नारों से गुंजायमान हो गया और रामबली सहित सभी रिहा अन्य लोगों को फूल मालाओं से लाद दिया गया. आते-जाते आम लोग रूक कर इस दृश्य को आश्चर्य व जिज्ञासा के साथ देखने लगे.

बेऊर जेल गेट से लेकर मेन रोड बेऊर मोड़ तक सारे लोग नारे लगाते जुलूस के रूप में आये जहां साथियों के अनुरोध पर रामबली प्रसाद ने उन्हें संबोधित करते हुए एक संक्षिप्त परन्तु ऊर्जापूर्ण-प्रेरणापूर्ण वक्तव्य दिया. उन्होंने कहा कि महासंघ-ऐक्टू-के मार्गदर्शन में चले नर्सों के इस आंदोलन, आदोलन के दौरान प्रदर्शित जुझारू तेवर और मेरी तथा अन्य लोगों की गिरफ्तारी के बाद सामने प्रकट हुई सरकार विरोधी जबरदस्त प्रतिक्रिया ने बिहार के समग्र कर्मचारी आंदोलन के इतिहास में एक और सुनहरा पन्ना जोड़ दिया है और सरकार में बैठे सत्ताधीशों को साफ-साफ बता दिया है कि दमन के डंडे से जनआंदोलनों के ज्वार-भाटा को नहीं रोका जा सकता है. अभी भी समय है, सरकार नर्सों की माँगो (जो बिल्कुल जायज हैं) को अविलम्ब पूरा करे अन्यथा आगे और तीखा आंदोलन का सामना करना होगा. केंद्र के मोदी राज और बिहार के नीतीश राज ने हम मेहनतकशों-मजदूरों-कर्मचारियों के सामने ढेरों चुनौतियां खड़ी की है जिसका कारगर तरीके से मुकाबला करके व जबाव देकर स्थिति को अपने अनुकूल बना डालने की संभावनाएं भी सामने मौजूद हैं जिस ओर हमें बड़ी गोलबंदी करते हुए बढ़ने की जरूरत है. उन्होंने अंत में इस रिहाई के मौके पर ठन्ड एवं शीतलहर में भी इतनी बड़ी तादाद में जेल गेट तक आकर अपने तथा अन्य गिरफ्तार साथियों के प्रति गर्मजोशी प्रदर्शित करने के लिए अपनी, महासंघ, ऐक्टू और भाकपा(माले) राज्य कमिटी की तरफ से धन्यवाद व आभार व्यक्त किया. उन्होंने साथ ही यह भी कहा कि मेरी यह जेल यात्रा मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी काफी लाभदायक और ज्ञानवर्धक रही है क्योंकि जेल के अंदर की हकीकतों से प्रत्यक्ष रूप से अवगत होने और जेल के अंदर नीतीश राज के भ्रष्टाचार और कैदियों के ऊपर होने वाले अत्याचारों को नजदीक जाकर अध्ययन करने का अवसर प्राप्त हुआ जो काफी विस्तृत है. यदि फुर्सत मिली तो उन कड़वी हकीकतों पर एक संस्मरण जरूर प्रसारित-प्रकाशित करूंगा.

अंत में सामूहिक रूप से चाय ग्रहण करने के बाद कुछ साथी रामबली प्रसाद को उनके आवास की ओर अगवानी करते हुए विदा हुए और शेष अपने-अपने निवास के लिए प्रस्थान किये.