संसद मार्ग पर मजदूरों की दहाड़ पर ध्यान दो!

संसद मार्ग पर मजदूरों की दहाड़ पर ध्यान दो!

9 से 11 नवम्बर 2017 - तीन दिनों तक नई दिल्ली का संसद मार्ग देश भर से अपने अधिकारों की मांग करने आये मजदूरों के समंदर की ऊर्जा से लबरेज हिलोरें मार रहा था. उनके नारों और कोलाहल से संसद मार्ग स्पष्ट रूप से और बुलंदी से गूंज रहा था. भारत के मजदूर वर्ग की एक आवाज में समूचे देश की जनता की आवाज सुनाई पड़ रही थी - जब वे महंगाई पर रोक लगाने और राशन प्रणाली को सर्वव्यापी बनाने तथा रोजगार के अवसर पैदा करने की मांग कर रहे थे. संसद मार्ग पर आयोजित इस प्रतिवाद ‘महापड़ाव’ में शामिल हजारों मजदूरों की उपस्थिति मोदी सरकार को अपराधी ठहरा रही थी और उसके द्वारा भारत के मेहनतकश लोगों के साथ की गई वादाखिलाफी को कटघरे में खड़ा कर रही थी.

मजदूर मांग कर रहे थे कि उन्हें बताया जाय कि भला मजदूरों को उनका प्राप्य अधिकार व सुविधाएं - न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, और सुरक्षित रोजगार - क्यों नहीं दिये जा रहे हैं? मजदूरों का स्थायीकरण करने के बजाय ठेके पर मजदूरी ही क्यों नियम बनता जा रहा है, जहां ठेका मजदूरों को बराबर की तनख्वाह और लाभ नहीं दिये जा रहे हैं? मजदूरों को अपने-आपको यूनियन में संगठित करने की सजा क्यों दी जा रही है? कॉरपोरेट हितों की सेवा में मजदूरों के हाथ-पैर बांध देने के लिये सरकार श्रम कानूनों पर हमले क्यों कर रही है? सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का बेरोकटोक निजीकरण क्यों किया जा रहा है?

प्रधानमंत्री खुद को मजदूर नम्बर एक कहते हैं और अपनी चाय बेचने वाली छवि को प्रचारित करते हैं, मगर वे खुद ही देश के मजदूरों के खिलाफ हमलों की अगुवाई कर रहे हैं. महापड़ाव में मोदी सरकार की नोटबंदी और जीएसटी की नीतियों के खिलाफ मजदूरों का रोष बिल्कुल साफ झलक रहा था - इन नीतियों ने छोटे व्यवसाइयों को तबाह कर दिया है और हजारों की नौकरियों का ध्वंस कर दिया है. इस बीच, भ्रष्टाचार और काला धन पर प्रहार करने के सरकार के सारे दावे सफेद झूठ साबित हुए हैं.

महापड़ाव इस बात के लिये भी उल्लेखनीय था कि इसमें सार्वजनिक क्षेत्र एवं संगठित क्षेत्र के मजदूरों से लेकर, विशाल तादाद में असंगठित क्षेत्र के असुरक्षित मजदूरों - जिनमें निर्माण मजदूर, ठेका मजदूर, विभिन्न सरकारी स्कीमों (आशा, आंगनबाड़ी, मध्याह्न भोजन इत्यादि) में कार्यरत श्रमिक, जिनको सरकारी कर्मचारियों के बतौर स्वीकार नहीं किया जाता और उन्हें नाम मात्र की प्रोत्साहन राशि या मानदेय दिया जाता है, शामिल हैं. इनके अलावा रेड़ी-पटरी-खोमचा वालों, घरेलू कामगारों और सफाई मजदूरों की भागीदारी भारी तादाद में रही. विभिन्न क्षेत्रों से आई महिला मजदूरों ने भी समान मजदूरी और श्रमिक के बतौर अपनी पहचान को मान्यता देने की मांग करते हुए अपनी दावेदारी जताई. घरेलू मजदूरों और स्कीमकर्मियों ने अपने काम को ‘सामाजिक सेवा’ और ‘स्वैच्छिक कार्य’ के पर्दे में ढके जाने से इनकार किया. उन्होंने कहा, ‘‘हमको ‘भोजनमाता’ या ‘दाई’ या ‘आशा बहन’ मत कहो, हमें मजदूर की मान्यता दो और हमारे श्रम को पारिवारिक रिश्तों या भूमिकाओं की आड़ में छिपाने की कोशिश करने के बजाय हमें अपने अधिकार दो.’’

मजदूर अपने खिलाफ कॉरपोरेट मीडिया की पक्षपातपूर्ण भूमिका के बारे में भी भलीभांति अवगत थे. अधिकांश टीवी चैनलों ने - जिन्होंने 2011 में हुए भ्रष्टाचार-विरोधी धरना की चौबीसों घंटे और हफ्ते के सातों दिन की खबरें पेश की थीं - मजदूरों के ...धरने को अनदेखा कर दिया, जबकि यह धरना भ्रष्टाचार-विरोधी धरने से अगर ज्यादा बड़ा नहीं भी हो तो उसके समकक्ष जरूर था. यह बिल्कुल स्पष्ट था कि इन चैनलों ने मजदूरों के प्रतिवाद की खबरें प्रसारित करने से कतराने का निर्णय जानबूझकर लिया था क्योंकि ये मजदूर - अपने हाथों में लाल झंडे लिये - सरकार से उसकी कॉरपोरेट-परस्त प्राथमिकताओं के बारे में सवाल उठा रहे थे.

मजदूरों ने देश में व्याप्त अघोषित आपातकाल के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की - उन्होंने बताया कि मजदूर नेताओं, जनता के आंदोलनों के कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को सरकार या शासक पार्टी भाजपा को चुनौती देने के इल्जाम में निरंकुश अत्याचारी कानूनों के तहत जेलों में डाला जा रहा है, धमकियां दी जा रही हैं और यहां तक कि उनकी हत्या कर दी जा रही है. उन्होंने साम्प्रदायिक एवं दलित विरोधी भीड़-हत्याओं एवं हमलों के पीड़ितों के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए देश को विभाजित करने की भाजपा-आरएसएस की साजिश का डटकर भंडाफोड़ किया.

संसद मार्ग पर तीन दिनों के ....धरने में मजदूरों की यह विशाल भागीदारी, केवल अपने अधिकारों की दावेदारी पेश करना भर नहीं थी, यह फासीवादी शक्तियों के खिलाफ जनता के जारी प्रतिरोध को मिला उल्लेखनीय प्रोत्साहन और ऊर्जा भी थी. आरएसएस से सम्बद्ध ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने इसी महीने बाद में, अलग से आयोजित प्रतिवाद कार्यक्रम का आहृान करने के जरिये मजदूरों को इस तीन-दिवसीय धरना से दूर रखने की कोशिशें कीं मगर वह बुरी तरह नाकाम रहीं. तीन-दिवसीय महापड़ाव को विशाल सफलता दिलाकर मजदूरों ने बीएमएस की मजदूर-विरोधी भूमिका, मोदी सरकार और फासीवादी शक्तियों के एजेंट की भूमिका का पर्दाफाश किया है और उसको खारिज कर दिया है.

महापड़ाव ने मोदी सरकार को एक अल्टीमेटम दिया है - अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं तो मजदूर देशव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जा सकते हैं. इस तरह की हड़ताल उत्पादन और सेवाओं को सम्पूर्णतः जाम करने के जरिये सरकार को, उत्पीड़कों को और विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों को यह चेतावनी देगी कि मजदूर मशीन नहीं, मानव हैं, जिनकी जरूरतों और अधिकारों को अनदेखा करना और उन्हें दबाना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है.