मानहानि मुकदमे की धमकियों से कुछ नहीं होने वाला: जय शाह के संदिग्ध व्यवसाय खातों की जांच कराओ!

थोड़े ही अंतराल में लगे दो आरोपों - अर्थतंत्र की दुरवस्था... के बारे में उठे सवाल, और इसके बाद अमित शाह के बेटे की रहस्यपूर्ण कंपनी के प्रपंची कारनामों के खुलासे - ने मोदी सरकार को स्पष्टतः बड़ा झटका दिया है. पहले दौर की वह धृष्टतापूर्ण खामोशी खत्म हो गई, और आधे इन्कार की मुद्रा में ही सही, भाजपा इन आरोपों पर मुंह खोलने और नुकसान-भरपाई की चंद हताशोन्मत्त कवायदें करने को बाध्य हो गई है. यह उस खुशनुमा दौर के ठीक विपरीत है, जब यह यकीन किया जा रहा था कि मोदी काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी बड़बोलियों तथा ‘मेक इन इंडिया’ व ‘स्वच्छ भारत’ से लेकर ‘स्किल इंडिया’ व ‘डिजिटल भारत’ जैसे सम्मोहक नारों के साथ देश का एजेंडा निर्धारित कर सकते हैं.

लगभग एक साल पहले नोटबंदी वह पहला मोड़-बिंदु था जब हर सामान्य भारतीय ने एक धक्का महसूस किया, फिर भी लोगों के मन में कहीं यह आशा भी थी कि वृहत्तर स्थायी फायदों के लिए दी जाने वाली वह छोटी तात्कालिक कीमत साबित होगा. लेकिन जन साधारण कोई लाभ महसूस कर सके, उसके पहले ही उसे जीएसटी के रूप में एक दूसरा तीखा झटका लगा; और उसके बाद से लोगों की आशाएं टूटने लगीं. चारों ओर लुप्त होते रोजगार के मौके तथा आम जनता को बढ़ती कीमतों, घटती आमदनी और गिरते उत्पादन व विक्रय की महसूस होती चुभन के साथ, ‘गुजरात मॉडल’ - जिसे मोदी ने पूरे भारत के लिए लाने का वादा किया था - तीव्र आर्थिक वृद्धि तथा विकास का नहीं, बल्कि बड़ी तेजी से अनिश्चितता और गिरावट का रूपक बनता जा रहा है. और अब अमित शाह के बेटे की कंपनी के संदेहास्पद कारनामे ठीक उन्हीं आरोपों की प्रतिकृति लग रहे हैं, जो कांग्रेस को रॉबर्ट वाड्रा के जमीन संबंधी करारों के मामले में झेलना पड़ा था.

एजेंडा-निर्धारण के उस अत्यंत खुशनुमा दौर से निकलकर मोदी शासन अब जमीन पर आ लुढ़का है, जहां उसे अर्थतंत्र, भाई-भतीजावाद और पिट्ठू (क्रोनी) पूंजीवाद से जुड़े मुद्दों पर अपनी नाकामी व गद्दारी का जवाब देना पड़ रहा है. सरकार से अबतक हमें जो जवाब मिले हैं उससे तो यही दिखता है कि इन आरोपों से यह निजाम कितना थर्रा गया है. पहले अरुण जेटली और कई अन्य लोगों ने अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत पर गंभीर सवाल उठाने के लिए यशवंत सिन्हा पर कीचड़ उछाले - लेकिन इससे सिन्हा की बातें और अधिक फैल गईं. फिर दूसरे दिन, हमने मोदी को कंपनी सचिवों की बैठक में भाषण देते वक्त अपनी सरकार के आर्थिक प्रदर्शन का बचाव करते देखा. उन्होंने आलोचकों पर निराशावाद और हताशा फैलाने का आरोप लगाया, जिसमें ‘राष्ट्र-विरोध’ का वही आरोप प्रतिध्वनित हो रहा था जो उनकी सरकार अपने तमाम विरोधियों पर अमूमन लगाती रहती है; और अतीत का गलत-सलत हवाला देकर वे यह बताना चाहते थे कि जीडीपी वृद्धि के मामले में यूपीए सरकार का प्रदर्शन और भी बदतर था.

लगातार छह तिमाहियों में जीडीपी वृद्धि की गिरावट को बस, कभी-कभार होने वाली गड़बड़ी बताकर मोदी ने इस मुद्दे को यूं ही चलता कर देने की हरचंद कोशिश की; किंतु सच्चाई इतनी कठोर है कि उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता है. उन्होंने खनन व कुछ अन्य क्षेत्रों में एफडीआइ के आंकड़ों को उस विश्वास के सबूत के बतौर पेश किया, जो विदेशी निवेशकों का भारतीय अर्थतंत्र के बारे में बना है. लेकिन इससे गहरी विपदा झेल रहे किसान, कीमतों में अचानक आई तेज गिरावट की मार झेलते छोटे उत्पादक व व्यापारी और बेरोजगार होते नौजवानों को कोई सांत्वना नहीं मिल सकती है. जब मोदी दार्शनिक अंदाज में यह कह रहे थे कि वर्तमान की चिंताओं को भविष्य के उनके सपनों के आड़े न आने दिया जाए, उसी समय अनेक खबरें रोजगार के मोर्चे पर दरअसल अंधकारपूर्ण स्थिति की ओर इशारा कर रही हैं और लगातार गिरता रोजगार ही वर्तमान को भविष्य से जोड़ने वाला एकमात्र धागा प्रतीत हो रहा है. तथ्यतः, स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार 2013-14 और 2015-16 के बीच रोजगार में निरपेक्ष गिरावट आई है. नुकसान-भरपाई का एकमात्र ठोस प्रयास है कुछेक वस्तुओं की कीमतों में छोटी मोटी प्रतीकात्मक राहत से संबंधित जीएसटी परिषद की घोषणा, जो मुख्यतः आसन्न गुजरात चुनाव के मद्देनजर की गई है. लेकिन इससे तो बहु-स्तरीय जीएसटी का मनमाना और अव्यवस्थित ढांचा ही और ज्यादा बेनकाब हुआ है.

जहां नोटबंदी और जीएसटी अर्थतंत्र के आपराधिक कुप्रबंधन के प्रतीक हैं, वहीं भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय अमित भाई शाह के संदिग्ध व्यवसाय खातों ने - जैसा कि पूर्व में रॉबर्ट वाड्रा के जमीन-संबंधी कारोबार का खुलासा करने वाले पत्रकार रोहिणी सिंह ने जांच-पड़ताल करके दर्ज किया है - भाजपा के भ्रष्टाचार विरोधी व भाई-भतीजावाद विरोधी मुखौटे को नोंच डाला है. इसमें अजीबोगरीब नाम की एक कंपनी है ‘टेंपुल इंटरप्राइज’, जिसने 2014-15 तक नगण्य टर्न-ओवर दिखाया है (2012-13 और 2013-14 में क्रमशः 62301724 रुपये का नुकसान दर्ज करने के बाद 2014-15 में 50,000 रुपये के राजस्व पर 18,728 रुपये का मुनाफा दिखाया); और इसके बाद 2015-16 में उसका टर्न ओवर आश्चर्यजनक ढंग से 16,000 गुना की छलांग लगाते हुए 80,00,00,000 रुपये दर्ज हो गया! यह टर्न ओवर कृषि उत्पादों की बिक्री के फलस्वरूप हुआ दिखाया गया है और इसमें 51 करोड़ रुपये की विदेशी आय भी शामिल है. कंपनी के खातों में राजस्थान के भाजपा समर्थित सांसद के रिश्तेदार और रिलायंस के शीर्ष एक्जीक्यूटिव श्री राजेश खंडवाला द्वारा संचालित इंटरप्राइज केआइएफसी फायनांसियल सर्विसेज से 15.78 करोड़ रुपये का अप्रतिभूत ऋण भी दर्शित है. बहरहाल इस इंटरप्राइज के खातों में यह ऋण कहीं भी दर्ज नहीं है और विडंबना यह है कि इसका अपना राजस्व 7 करोड़ रुपया से ज्यादा नहीं रहा है! खाते यह भी दिखाते हैं कि उसी वर्ष (2015-16 में) शाह और खंडवाला ने ‘सत्व ट्रेडलिंक्स’ नामक एक दूसरी कंपनी बनाई और उसे विघटित भी कर दिया! सबसे प्रपंचपूर्ण बात यह है कि टेंपुल इंटरप्राइज ने  8 नवंबर को हुई नोटबंदी-घोषणा के ठीक पहले, अक्टूबर 2016 में अपनी तमाम व्यावसायिक गतिविधियों को रोक देने की घोषणा कर डाली!

बहरहाल, जय अमितभाई शाह की व्यावसायिक गतिविधियां विभिन्न क्षेत्रों में फैलती रहीं हैं. जुलाई 2015 में उन्होंने ‘कुसुम फिनसर्व’ नाम से एक दूसरी कंपनी शुरू की जो प्रत्यक्षतः सट्टेबाजी का धंधा करती है और इस कंपनी के नवीनतम दर्ज आंकड़ों के अनुसार इसने भी 24 करोड़ रुपये की आमदनी दिखाई है. आश्चर्य तो यह है कि सट्टा व शेयर तथा आयात-निर्यात का कारोबार करने वाली इस कंपनी को मध्य प्रदेश के रतलाम में 2.1 मेगावाट का हवा-बिजली संयंत्र स्थापित करने का ठेका मिल गया और उसने सार्वजनिक क्षेत्र की ‘इंडियन रिन्युएबुल एनर्जी डेवेलपमेंट एजेंसी’ (इरेडा) से 10 करोड़ रुपये से ज्यादा का ऋण भी हासिल कर लिया! अमितभाई शाह के ये तमाम संदेहास्पद व्यावसायिक कारनामे 8 अक्टूबर के ‘द वायर’ में प्रकाशित हुए हैं, और सीबीआइ या प्रवर्तन निदेशालय जैसी सक्षम एजेंसी के द्वारा जांच की घोषणा करने के बजाए भाजपा ने रेल मंत्री पीयूष गोयल से प्रेस कांफ्रेस करवाकर जय शाह का बचाव किया और उनकी ओर से ‘द वायर’ के खिलाफ 100 करोड़ रुपये का मानहानि का मुकदमा ठोंकने की घोषणा कर डाली! संयोगवश, श्रीमान् गोयल उस वक्त ऊर्जा मंत्री थे और उनके ही अधिकार-क्षेत्र में आने वाले ‘इरेडा’ ने 2016 में जूनियर शाह को वह ऋण स्वीकृत किया था!

जो पार्टी क्रोनी पूंजीवाद के खिलाफ जेहाद का वादा करके सत्ता में आई थी, वही अब क्रोनी पूंजीवाद को बढ़ावा दे रही है और मानहानि के मुकदमों के जरिए खुलासों को रोक रही है. जिस पार्टी ने रॉबर्ट वाड्रा के संदेहास्पद जमीन-करारों के खिलाफ कार्रवाई का वादा किया था, उसने न केवल इससे पल्ला झाड़ लिया, बल्कि वह अपने खुद के रॉबर्ट वाड्रा को बढ़ाने व संरक्षण देने में मशगूल है! इस पार्टी के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की जगह एक ओर बीएचयू शैली में बेटियों के दमन और दूसरी ओर विकास बारला व जय शाह जैसे बेटों को दिए जा रहे संरक्षण ने ले ली है. दूसरे ही दिन, हमने श्री अमित शाह को अपनी केरल यात्रा में कटौती कर कुछ अत्यावश्यक कार्य के लिए दिल्ली वापस दौड़ते देखा. यह ‘अत्यावश्यक’ कार्य अब बिलकुल साफ नजर आ रहा है. पूर्व में एलके आडवाणी और बंगारू लक्ष्मण राव जेसे भाजपा अध्यक्षों को ‘जैन हवाला डायरी’ और ‘तहलका स्टिंग ऑपरेशन’ जैसे भ्रष्टाचार के आरोपों के सम्मुख पदत्याग करना पड़ा था. अब अमित शाह के लिए घंटी बज रही है. अमित शाह को भी अपने पूर्ववर्तियों का अनुसरण करना होगा और उनके बेटे को अपने संदेहास्पद व्यवसाय-खातों की मुकम्मल जांच का सामना करना पड़ेगा.