जन प्रतिरोध को बुलन्द करें, फासीवादी ताकतों को परास्त करें ! सामाजिक-आर्थिक बदलाव, बराबरी और सम्मान के संघर्षों को आगे बढ़ाएं ! भगत सिंह और उनके साथियों की विरासत को बुलन्द करें ! भाकपा (माले) के 10वें पार्टी महाधिवेशन को सफल बनायें !

जन प्रतिरोध को बुलन्द करें, पफासीवादी ताकतों को परास्त करें ! सामाजिक-आर्थिक बदलाव, बराबरी और सम्मान के संघर्षों को आगे बढ़ाएं ! भगत सिंह और उनके साथियों की विरासत को बुलन्द करें ! भाकपा (माले) के 10वें पार्टी महाधिवेशन को सफल बनायें !

लोकतंत्र और भारत की जनता आज कॉरपोरेट-साम्प्रदायिक ताकतों के भीषण हमले का सामना कर रहे हैं. यह हमला साढ़े तीन वर्षों से सत्तासीन मोदी सरकार के नेतृत्व में चल रहा है.

‘‘अच्छे दिन’’ के वायदे और भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, तथा महिलाओं के प्रति हिंसा से राहत दिलाने के नाम पर मोदी सरकार सत्ता में आई थी. लेकिन सभी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अवहेलना करते हुए इस सरकार ने नोटबंदी, जीएसटी, आधार कार्ड जैसी नीतियों को जनता पर जबरन थोप दिया है, जिसके कारण आर्थिक मंदी, बेरोजगारी भारी पैमाने पर बढ़ी है और अति गरीब एवं बेसहारा लोग मूलभूत नागरिक सुविधाओं से वंचित हो गये हैं. नये रोजगार सृजन की दर पिछले आठ वर्षों में आज सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है.

एक ओर मोदी सरकार ‘बेटी बचाओ’ का ड्रामा कर रही है, सच्चाई यह है कि झारखण्ड में एक मजदूर की 12 साल की बेटी संतोषी खाना मांगते-मांगते भूख से तड़प कर मर गई क्योंकि आधार कार्ड लिंक न होने के कारण उसके घर वालों को राशन नहीं दिया गया था. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की छात्राओं की पुलिस ने बुरी तरह पिटाई इसलिए की क्योंकि वे अपने लिए सुरक्षा और बराबरी मांग रही थीं. भाजपा नेता विकास बारला, गुरमीत राम रहीम और आशाराम जैसे महिलाओं पर अत्याचार करने वालों का खुल कर समर्थन कर रहे हैं.

मंदसौर में कृषि कर्ज माफी की मांग करने पर किसानों को गोली मार दी गई, जबकि भारी पैमाने पर बड़े पूंजीपतियों के कर्ज माफ कर दिये गये हैं. धन्नासेठों ने भारी-भारी कर्ज ले जिन बैंकों को बरबाद कर दिया, नोटबंदी के माध्यम से उसकी भरपाई आम जनता के पैसे बैंकों में जमा करा कर की गई है.

एक ओर छोटे व्यवसायियों का धंधा चौपट हो रहा है और नौजवानों की नौकरियां चली गई हैं, वहीं अमित शाह और नेशनल सिक्यूरिटी एडवाइजर अजित डोभाल जैसों के बेटे खुलेआम भ्रष्टाचार और क्रोनी पूंजीवाद का बेखौफ आनन्द उठा रहे हैं. पूरी बेहयाई के साथ मोदी सरकार विदेशों से काला धन लाने के वायदे से भी मुकर चुकी है, जबकि पनामा और पैराडाइज पेपर्स से खुलासा हुआ है कि विदेशों में भारी मात्रा में काला धन जमा है.

भाजपा और आरएसएस मोदी सरकार के कार्यकाल का फायदा उठा कर भारत को एक फासिस्ट हिन्दू राष्ट्र की ओर धकेलना चाहते हैं. वे ‘बांटो और राज करो’ की नीति के साथ हिन्दू-मुस्लिम उन्माद भड़का कर सरकार की थोथी ‘जुमलेबाजी’ से जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं. इसीलिए गाय के नाम पर अल्पसंख्यकों और दलितों की भीड़-हत्यायें हो रही हैं.

आज हम एक अघोषित आपातकाल के बीच जी रहे हैं - पूंजीवादी मीडिया मोदी सरकार की प्रचार मशीन का काम कर रहा है, वहीं सरकार से सवाल पूछने की हिम्मत दिखाने वाले पत्रकारों को हत्या की धमकियां और स्वयं प्रधानमंत्री के सोशल मीडिया मित्रों के द्वारा खुलेआम भद्दी-भद्दी गालियां मिल रही हैं. प्रसिद्ध पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या उनके घर के सामने ही कर दी गई, उसके बाद मोदी और अन्य भाजपा नेताओं के ऐसे ही मित्रों ने उनकी जघन्य हत्या पर जश्न मनाया.

फासिस्ट शक्तियों के विरुद्ध जनता के विभिन्न आन्दोलनों द्वारा खड़े किए जा रहे प्रतिरोध संघर्ष ऐसे कठिन समय में हमें प्रेरणा दे रहे हैं. किसानों के प्रतिरोध से डर कर भूमि कब्जा के लिए कानून बनाने से सरकार को पीछे हटना पड़ा; मजदूरों की ताकत के आगे मजदूर-विरोधी पेंशन योजना को भी सरकार ने वापस लिया....... ऊना का दलित आन्दोलन, रोहित वेमुला की मृत्यु के बाद हुआ आन्दोलन, और अब भीम आर्मी के आन्दोलन के आगे आरएसएस की सामंती, जातिवादी और साम्प्रदायिक मानसिकता उजागर हो रही है. साम्प्रदायिक भीड़ हत्याओं के खिलाफ पूरे देश के अमन पसंद नागरिकों ने ‘नॉट इन माई नेम’ (मेरे नाम में नहीं) के बैनर के साथ सड़कों पर मार्च किये. जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू), हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू), जादवपुर विश्वविद्यालय और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्रों ने छात्र कार्यकर्ताओं को ‘देशद्रोही’ बताने की साजिशों का मुंहतोड़ जबाव भी दिया, और इस बात का भी खुलासा किया कि कैसे भाजपा की सरकारें और उनके द्वारा बैठाये गये पिट्ठू वाइसचांसलर विश्वविद्यालयों में शिक्षा विरोधी और विज्ञान व तर्क विरोधी मानसिकता को बढ़ाने का काम कर रहे हैं.

देशवासियों पर फासीवादी हमले और इन हमलों के खिलाफ सशक्त हो रहे प्रतिरोध संघर्षों के बीच भाकपा (माले) का 10वाँ पार्टी महाधिवेशन पंजाब के मानसा शहर में होने जा रहा है. भाकपा (माले) जल्द ही अपने पचास वर्ष पूरे कर लेगी. 1969 में स्थापना काल से ही पार्टी का राज्य दमन, सामंती और साम्प्रदायिक हिंसा, शोषण एवं दमन के विरुद्ध संघर्षों का अद्वितीय इतिहास रहा है. फासीवाद के खिलाफ प्रतिरोध को तीव्र करने के लिए देश में लोकतांत्रिक आन्दोलनों की व्यापक कतारों के साथ कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ते हुए हम अपनी उसी विरासत को समृद्ध कर रहे हैं.

भाकपा(माले) का 10वॉं पार्टी महाधिवेशन नक्सलबाड़ी आन्दोलन के 50 वर्ष और महान नवम्बर क्रांति के 100 वर्ष पूरे होने के साल में हो रहा है. दमन को चुनौती और जनता के परिवर्तनकामी दृढ़ संकल्प को आगे बढ़ाने के लिए ये दो महान क्रांतिकारी आन्दोलन हमारे लिए सदैव प्रेरणा का श्रोत रहेंगे.

भाकपा (माले) का दसवां पार्टी महाधिवेशन 23 मार्च 2018 को शुरु होगा जो भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों - भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव - का शहादत दिवस है, जिनके लिए आजादी का मतलब अंग्रेजी शासन से आजादी के साथ-साथ एक ऐसी क्रांति से था जो भारत को शोषण, दमन और गैरबराबरी से मुक्त कर देगी. भगत सिंह की जन्मस्थली पंजाब में होने जा रहा भाकपा (माले) का यह महाधिवेशन भगत सिंह और उनके साथियों के ‘सर्वप्रथम जनता के लिए’ वाली देशभक्ति की भावना के प्रति स्वयं को पुनर्समर्पित करने का एक ऐसा अवसर बनेगा, जो राष्ट्रवाद के नकाब में साम्प्रदायिक जहर घोल रही फासीवादी ताकतों को करारा जवाब साबित होगा.

आज का दौर, जब भारत फासीवादी खतरे के सामने खड़ा है, जन आन्दोलनों के लिए ऐसी संभावनाएं भी लेकर आया है जिनसे फासिस्टों को शिकस्त देने के साथ साथ भारत की जनता की सामाजिक एवं आर्थिक मुक्ति के संघर्षों को मजबूती मिलेगी.

आपसे अपील है कि भाकपा (माले) के 10वें महाधिवेशन को अपने विचारों, अपनी एकजुटता, अपनी आलोचना व सुझावों, एवं आर्थिक सहयोग, हर सम्भव रूप में अपनी साझेदारी के साथ इसे एक ऐतिहासिक अवसर बना दें. - केन्द्रीय कमेटी, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी)