Survey Reveals Exploitation of ASHA Workers in Delhi
(An abridged version of a more detailed report to be released soon)
Accredited social health activists (ASHAs) is community health workers instituted by the government of India's Ministry of Health and Family Welfare (MoHFW) as part of the National Rural Health Mission (NRHM). The mission began in 2005.......
(An abridged version of a more detailed report to be released soon)
AICCTU Affiliated Unions Played a Pivotal Role in Several States
Wake up Modi-Kejriwal! Stop exploiting ASHA workers in the name of 'Sewa'!
ASHA workers demand permanent job, fixed salary and social dignity!
The first state conference of Dilli ASHA kamgar Union successfully concluded on 8th August at N.D Tiwari Bhawan, ITO, Delhi. The conference began with paying tribute to all ASHA workers who succumbed to COVID-19, farmers who died in the protest, and the 9-year old Dalit rape victim in Delhi Cantonment area.
As an encouraging development for the struggle of ASHA workers in Uttarakhand state, the ASHA unions led by AICCTU and CITU, major unions in the state, have given a joint call for a prolonged struggle.
As a part of an all-India campaign “In Memory of Loved Ones: Count Every Death, Share Every Loss”, jointly organized by intellectuals and social activists across the country, various sections of workers, including scheme workers, railway employees, sanitation and municipal workers and other unorganised and organised sections honoured the memory of people who died during the Covid period by lighting candles and remembering every death.
बिहार सरकार की वादाखिलाफी से आक्रोशित सैकडों आशा कर्मियों ने बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (संबद्ध ऐक्टू एवं अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ-गोप गुट) के बैनर तले 22 अक्टूबर 2019 को राजधानी पटना के गर्दनीबाग में धरना दिया. धरना का नेतृत्व संघ की राज्य अध्यक्ष शशि यादव, पटना जिला सचिव पूनम कुमारी, ऐक्टू नेता रामबलि प्रसाद, रणविजय कुमार, आदि ने किया. आशा नेत्री रीना कुमारी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.
भीषण वर्षा व खराब मौसम की परवाह न करते हुए पूरे बिहार में 30 सितम्बर 2019 को आशा कार्यकर्ताओं ने जमकर धरना-प्रदर्शन किया और चिकित्सा प्रभारी को चार सूत्री मांगपत्र सौंपा.
ये प्रदर्शन राज्य भर में पीएचसी के समक्ष बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (संबद्ध गोपगुट व ऐक्टू) के बैनर तले आयोजित हुए.
उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन (संबद्ध-ऐक्टू) ने विगत 9 अगस्त से 26 अगस्त तक ‘संगठित रहो-प्रतिरोध करो’ अभियान चलाया. 9 अगस्त को सभी जिला मुख्यालयों व प्रमुख केन्द्रों पर राज्य के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजने के साथ यह अभियान शुरू हुआ. अभियान के समापन पर 26 अगस्त को विभिन्न जिला मुख्यालयों पर यूनियन के बैनर तले आशाकर्मियों ने जोरदार कार्यक्रम आयोजित किए.
हल्द्वानी में महिला चिकित्सालय के सामने से उपजिलाधिकारी कार्यालय तक रैली निकाली गई. रैली को मुख्य रूप से यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल व महामंत्री डा. कैलाश पाण्डेय ने संबोधित किया.
संयुक्त आशा आंदोलन की नेता एवं बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (गोप गुट) अध्यक्ष शशि यादव, महासंघ गोप गुट के सम्मानित अध्यक्ष रामबली प्रसाद व ऐक्टू राज्य सचिव रणविजय कुमार ने बिहार सरकार द्वारा 17 जुलाई को कैबिनेट से बिहार के आशाओं को 1000 रुपया मासिक पारिश्रमिक देने के निर्णय को बिहार में आशाओं के आंदोलन की बड़ी जीत बताया और कहा कि 1000 रुपये की न्यूनतम मासिक पारिश्रमिक की उपलब्धि नई शुरुआत भर है. उक्त नेताओं ने 38 दिनों के संघर्ष में शहीद होने वाली 9 आशाओं के नाम यह जीत समर्पित की.
आखिरकार बिहार में आशा कर्मियों के ऐतिहासिक आंदोलन ने राज्य की नीतीश कुमार सरकार को झुका दिया. आशा कर्मी पहली दिसंबर 2018 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर उतर गई थी. यह आंदोलन ‘‘आशा संयुक्त संघर्ष मंच’’ के नेतृत्व में चल रहा था. सरकार ने पहली जनवरी 2019 से एक हज़ार रु. मासिक मानदेय लागू करने सहित सभी 12 सूत्री मांगों को मान लिया जिसकी घोषणा सरकार ने 7 जनवरी को की. सरकार की इस घोषणा के बावजूद आशा कर्मियों ने अगले ही दिन पूरी ताकत के साथ 8-9 जनवरी की देशव्यापी आम हड़ताल में शिरकत की और एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया.