श्रम कोडों के जरिये तमाम श्रम कानूनों का खात्मा 

न्यूनतम मजदूरी का खात्मा 

अब न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलेगी - ‘मजदूरी कोड कानून’ ने मालिकों द्वारा न्यूनतम मजदूरी की अदायगी की कानूनी बाध्यता को समाप्त कर दिया है. कल तक हम न्यूनतम मजदूरी लागू कराने की मांग उठाते थे, अब इसे ही खत्म कर दिया जा रहा है. जब देश का मजदूर प्रति माह 21,000रू. राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी की मांग कर रहा है, नया कानून न्यूनतम मजदूरी की जगह राष्ट्रीय फ्लोर वेज (यानी बमुश्किल पेट भरने वाली मजदूरी जो अभी मात्र 178रू. प्रति दिन है) की अवधारणा ले कर आया है. जबकि मजदूरी के भुगतान के उल्लंघन के लिए दंडात्मक शर्तों को मालिकों के हित में हटा दिया गया है और लेबर इंस्पेक्शन (निरीक्षण) की प्रणाली को खत्म कर दिया गया है, वहीं यूनियन नेताओं को दंडित करने के लिए दंडात्मक धाराएं लाई गई हैं.

हड़ताल करने और यूनियन बनाने के अधिकार छीन लिये गये 

मजदूर हड़ताल में ना जा सकें, इसका पूरा इंतजाम मोदी सरकार ने कर दिया है. ‘औद्योगिक संबंध (आईआर) कोड कानून’ ने प्रभावी रूप से हड़ताल का अधिकार छीन लिया है. सभी श्रेणियों के प्रतिष्ठानों के लिए 60 दिनों का स्ट्राइक नोटिस (पहले केवल सार्वजनिक उपयोग की सेवाओं/प्रतिष्ठानों के लिये 14 दिन के नोटिस का नियम था) अनिवार्य कर दिया गया है और विवाद के दौरान और इसके समापन के कुछ समय बाद तक के लिए भी हड़ताल को अवैध घोषित कर दिया गया है. शांतिपूर्ण हड़ताल में भाग लेने वाले श्रमिकों पर 50,000रू. तक का जुर्माना लगाया जायेगा या जेल में डाल दिया जायेगा. ट्रेड यूनियनों का पंजीकरण भी रद्द कर दिया जा सकता है. सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार को मृगतृष्णा बना दिया गया है. ट्रेड यूनियनों को संगठित करने और बनाने का अधिकार भी केवल कागज पर ही रह गया है और कई शर्तो के साथ इसे सबसे अधिक कठिन बना दिया गया है.

स्थाई व नियमित रोजगार का खात्मा  मनमर्जी से छंटनी की खुली छूट

नियमितीकरण और स्थायित्व के सवालों को दफनाते हुये, एफटीआई (नियत समय के लिये रोजगार) लाया गया है जिसके जरिये केवल अनियमित रोजगार मिलेगा, और नौकरी से निकाले जाने पर कोई सुनवाई नहीं होगी. ‘हायर एंड फायर’ (मालिक द्वारा मनमर्जी से काम से निकालने) की प्रणाली को कानूनी बना दिया गया है. सामूहिक सौदेबाजी और सरकार के श्रम अधिकारियों की मौजूदगी में त्रिपक्षीय तंत्र के माध्यम से सामूहिक समझौतों की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के बजाय व्यक्तिगत तौर पर श्रमिकों के साथ व्यक्तिगत अनुबंध को कानूनी बना कर मालिकों का वर्चस्व स्थापित किया जा रहा है. 98 प्रतिशत प्रतिष्ठानों यानी बहुसंख्यक मजदूरों को श्रम कानूनों की सुरक्षा के दायरे से बाहर कर दिया गया है, और ऐसा किया गया है उद्योग की परिभाषा बदलकर. आईआर कोड कानून के अनुसार मजदूरों की छंटनी, उद्योग की बंदी, ले-ऑफ आदि के लिये 300 से कम मजदूरों (यह संख्या पहले 100 तक थी) वाले उद्योगों में पहले वाले कानून लागू नहीं होंगे, यानी प्रशासन की मंजूरी नहीं लेनी होगी. 

मजदूरों के लिये सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थितियों की शर्तों से मालिकों को मुक्ति 

ठेका मजदूरों को कानून की सुरक्षा के दायरे से बाहर किया गया

व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थितियों से संबंधित प्रावधानों (ओएसएच) वाले नए श्रम कोड कानून - फैक्ट्री अधिनियम के तहत इन प्रावधानों को लागू करने के लिये (बिजली से चलने वाले उद्योगों में) मजदूरो की सीमा को 10 से बढ़ाकर 20 और (बिजली के बिना वाले उद्योगों में) 20 से बढ़ाकर 40 कर दिया गया है.

ठेका श्रमिकों को केवल तभी सुरक्षा हासिल होगी जब एक ही ठेकेदार के तहत 50 से अधिक श्रमिकों को भर्ती किया जाएगा (जो पहले 20 थी), साथ ही सभी प्रकार की श्रेणियों के लिए ठेका मजदूरों की भर्ती के लिए खुले लाइसेंस जारी किए जाएंगे और यह अंतहीन कार्यकाल (यानी कोई नवीकरण नहीं) के लिए जारी किए जायेंगे. समान मजदूरी और सेवा शर्तों और अन्य अनिवार्य लाभों को खत्म कर दिया गया है. और भी बदतर कि सफाई कर्मचारी, सुरक्षा कर्मी, स्कीम कर्मी, आदि को गैर-कोर यानी साधारण कामों के रूप में वर्गीकृत किया गया है जिसके चलते वे उन लाभों से वंचित कर दिये गये हैं जिनके वे हकदार थे. सामाजिक सुरक्षा और श्रमिकों के एक विशाल वर्ग के लिए नियमितीकरण के सवालों को साफ तौर पर नकार दिया गया है. ‘प्रधान नियोक्ता’ और ‘नियोक्ता’ की अवधारणा को अस्पष्ट रखा गया है और प्रधान नियोक्ता को ठेका श्रमिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया है. ठेकेदारों (अब इन्हें मालिक का दर्जा दे दिया गया है) को अपनी मनमर्जी के अनुसार कार्य करने के लिए छूट दे दी गयी है. अंतर्राज्यीय प्रवासी श्रमिकों के लिये भी प्रधान नियोक्ता की कोई जिम्मेवारी नहीं होगी, वे ठेकेदार के रहमोकरम पर रहेंगे. इस तरह प्रवासी श्रमिकों को, जिनकी बुरी स्थिति लॉकडाउन के समय सामने आई, अपने हाल पर छोड़ दिया गया है और यहां तक कि न्यूनतम कानूनी सुरक्षा को भी खत्म कर दिया गया है.  

सामाजिक सुरक्षाः मालिकों या सरकार की नहीं, श्रमिकों की अपनी जिम्मेदारी

‘सामाजिक सुरक्षा कोड कानून’ ने नियोक्ता को अपने कर्मचारियों के कल्याण की जिम्मेदारी से मुक्ति दे दी है. कानून के पालन के लिये श्रमिकों की संख्या की सीमा में वृद्धि ने कानून के दायरे से अधिकांश श्रमिकों को बाहर कर दिया है. अधिक से अधिक असंगठित श्रमिकों को सुरक्षा के दायरे में लाने की लंबी चर्चा एक बार-बार बोले जाने वाले झूठ के अलावा कुछ नहीं है. अब, ईएसआई, पीएफ, ग्रेच्युटी, इत्यादि सहित सामाजिक सुरक्षा, स्वयं श्रमिकों की जिम्मेदारी के अलावा और कुछ नहीं है. न तो नियोक्ता और न ही सरकार को जवाबदेह ठहराया जाएगा. यहां तक कि प्रस्तावित पेंशन योजना एनपीएस (नयी पेंशन स्कीम) से भी बदतर है, जिसका ट्रेड यूनियन आंदोलन विरोध कर रहा है. पुरानी पेंशन योजना किसी के लिए भी लागू नहीं रहेगी. पेंशन, इसकी मात्रा, आदि उतनी ही होगी जितना आप अपनी खून-पसीने की कमाई त्यागने को तैयार होंगे. यहां भी, सरकार और नियोक्ता अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गए हैं.

महिला श्रमिकों की कोई सुरक्षा और हिफाजत नहीं

महिला श्रमिकों को बिना किसी सुरक्षा के खतरनाक उद्योगों में काम करने की अनुमति दी जा रही है और उनकी हिफाजत और कल्याण के मामले को दरकिनार कर दिया गया है. यहां तक कि मातृत्व लाभ भी छीना जा रहा है. महिला श्रमिकों को गर्भावस्था और प्रसव की स्थिति में छंटनी का जोखिम उठाना पड़ रहा है. बड़ी संख्या में महिला श्रमिकों को ‘श्रमिक’ के दर्जे से वंचित किया जा रहा है, उनके वेतन और लाभों को तो छोड़ ही दीजिये. वर्तमान परिवर्तन केवल महिला श्रम को अधिक से अधिक शोषणकारी व असुरक्षित ही बनायेंगे, उन्हें वापस घर की चार दीवारी में ही धकेलने का काम करेंगे.