आत्मनिर्भर किसान का मोदी मॉडल

प्रधानमंत्री की बहुप्रचारित किसान सम्मान योजना के तहत, भूमिहीनों व गरीब किसानों को छोड़कर, 6000 रु. वार्षिक/किसान परिवार देने की घोषणा की गई अर्थात 500रु. प्रति परिवार प्रति माह. ज्ञात हो देश के किसी किसान ने सरकार से इस राशि की मांग नहीं की थी. फिर सरकार किसानों पर अचानक इतना मेहरबान क्यों हो गई? आइए जरा गौर करें, सरकार किसानों से कितना ले रही है और कितना उनको दे रही है. 

पंजाब विश्वविद्यालय के एक अध्ययन के मुताबिक गेहूं और धान की फसलें उगाने वाले किसान करीब 50 लीटर प्रति एकड़ डीजल का प्रयोग करते हैं. भिन्न भिन्न फसलों में व अलग-अलग इलाकों व मौसम के अनुसार इसके प्रयोग की मात्रा भिन्न है. यदि पूरे देश का कृषि में प्रयोग होने वाला डीजल औसत 30 लीटर/एकड़ भी मान लिया जाए तो वर्तमान में डीजल पर लगे 45रू./लि. के टैक्स के हिसाब से सरकार प्रति एकड़ 1350रू. टैक्स वसूल रही है. 5 एकड़ भूमि का मालिक एक किसान भी केवल डीजल की खरीद पर सरकार को 6750रू. टैक्स दे रहा है. यदि देश में 4 एकड़ जोत से अधिक 20 करोड़ किसान भी मान लिए जाएं तो केवल डीजल के मद में सरकार उनसे एक फसल में 135,000 करोड़ रु. वसूल लेती है. इसके अतिरिक्त भारत में एक टैक्स के नाम पर लागू केन्द्र व राज्य की जीएसटी के द्वारा उससे कृषि में प्रयोग होने वाले खाद, बीज, कीटनाशक दवाओं, ट्रैक्टर व अन्य कृषि यंत्रों की खरीद पर 12 से 18 प्रतिशत का टैक्स वसूला जाता है. दैनिक उपयोग की वस्तुओं के दामों में बेरोक-टोक वृद्धि भी उसकी क्रयशक्ति को प्रभावित करती है. 2019 में जब सरकार ने उज्जवला योजना लागू कर किसानों को गैस के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित किया तब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 60 डॉलर प्रति बैरल था और उज्जवला योजना में गैस सिलिंडर 503रु. का था. इसके बाद कच्चे तेल के दाम घटकर 40 डॉलर प्रति बैरल हो गया परंतु उज्जवला योजना के सब्सिडी वाले गैस सिलिंडर का दाम बढ़कर 611रु. हो गया. इस प्रकार सरकार देश के सबसे गरीब भूमिहीनों व गरीब किसानों से भी 108रु. प्रति सिलिंडर मुनाफा वसूल रही है. आंकडों के मुताबिक उपभेक्ता परिवारों के 41-67 प्रतिशत भूमिहीन हैं अर्थात करीब 30 करोड़ लोगों से प्रति माह सिर्फ गैस के मद में तीन हजार करोड रु. से अधिक वसूला जा रहा है. इस प्रकार देखा जाए तो सरकार जितना गरीबों को देने का ढिंढोरा पीट रही है उससे कहीं अधिक उनसे वसूल रही है.

इस बार मक्के की फसल 900 से 1100रु. प्रति कुंतल बिक रही है, जबकि गत वर्ष यह 2200रु. प्रति कुंतल थी. धान की फसल तैयार होते ही बाजार का भाव एक दम से घट गया. सरकारी रेट 1850रु./कुंतल के बजाय 900 से 1000रु. प्रति कुंतल है. गरीब व मध्यम किसानों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य भी मुश्किल से ही मिल पाता है. यह मूल्य वास्तव में अधिकतम बिक्री मूल्य बन गया है. हमेशा अनाज इससे कम दाम पर ही बिकता है. देश में सर्वाधिक उपयोग होने वाली दालें पीली दालें (चना और अरहर) हैं. किसानों से यह दोनों अनाज न्यूनतम मूल्य से कम दर पर लिए जाते हैं. कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान सरकार द्वारा पारित अध्यादेशों से व्यापारियों और जमाखोरी करनेवालों को ही फायदा होगा. छोटे किसान व बटाइदार किसानों की बड़ी संख्या को तो फसल कटते ही अपना उत्पाद बेचना पड़ता है. मंडी समितियों के माध्यम से उनको काफी सुविधा मिल जाती थी परन्तु अब तो व्यापारी स्वतंत्र रूप से उनको लूट सकेंगे. इसी प्रकार जमाखोरी को छूट देने से व्यापारी मनमाने ढंग से कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगें और उपभोक्ता को महंगे माल बेचेंगे. फुटकर बाजार में दाल, गुड़ आदि ऐसी सामान्य खाद्य सामग्री के दाम तेजी से बढ़े हैं. इस पूरे कोरोना काल में देश के 80 प्रतिशत से अधिक लोगों की आमदनी घटी है. करोडों लोग बेरोजगार हो गए हैं. बढ़ती महंगाई और घटती आमदनी के बीच कैसे आएगी आत्मनिर्भता?

यदि बहुसंख्यक जनता आत्मनिर्भर नहीं होगी तो देश कैसे आत्मनिर्भर होगा? इस प्रकार निरंतर किसानों व आम जनता पर बढ़ते बोझ से किसान कैसे अत्मनिर्भर हो सकते हैं? जब देश की 60 फीसदी आबादी का उत्थान नहीं होगा तो देश अत्मनिर्भर कैसे होगा? सबसे पहली जरूरत देश के नागरिकों के पेट भरने की है. एक तरफ अनाज के भंडार भरे हैं तो दूसरी ओर 17 राज्यों की करीब 54 प्रतिशत आबादी के बारे में नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे 2019-2020 द्वारा तैयार और स्वास्थ्य और कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में लगभग 30 प्रतिशत कुपोषण का शिकार हैं. आंध्र प्रदेश 31.2, तेलंगाना 33.1, असम 35.3, बिहार 42.9, गुजरात 39.0, कर्नाटक 35.4, केरल 23.4, महाराष्ट्र 35.2, प. बंगाल 33.8, जम्मू-कश्मीर 26.9 प्रतिशत बच्चों में कुपोषण दर्ज किया गया है. कुपोषण का सबसे बड़ा कारण अभिभावकों की पर्याप्त आमदनी में कमी है. ये आंकडे़ कोविड-19 के प्रभाव से पहले के हैं. इस सर्वे से यह प्रमाणित होता है कि कम से कम देश की 30 प्रतिशत आबादी तो अपना व अपने बच्चों का पेट भर पाने में असमर्थ है ही. अगर हम 2020 के विश्व हंगर (भूख) इंडेक्स पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि 107 देशों में भारत का स्थान 94 है, जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान का 88वां, बांग्ला देश का 75वां, म्यांमार का 78वां स्थान है. ज्ञात हो कि इस हंगर इंडेक्स में 100वां स्थान सबसे खराब स्थिति वाले देश का होता है और हमारा देश लगभग उसी स्थिति में है.

कोविड-19 के लॉकडाउन में करोडों लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, रोजगार प्रभावित हुआ, छोटी फैक्ट्री के मजदूर व किसान सभी प्रभावित हुए. आंगनबाड़ी व मिड-डे मील जैसी योजनाएं भी बंद हो गयीं. यह सब गरीबों के लिए अभिशाप साबित हुआ. आत्मनिर्भर देश की पहली आवश्यकता है हर नागरिक को पेट भर पौष्टिक भोजन. इसको छोड़कर भारत की आत्मनिर्भरता का विचार केवल एक दिवास्वप्न है.        

- अवधेश कुमार सिंह