आईआर कोड (सेंट्रल) रूल्स, 2020 (मसौदा) पर ऐक्टू की आपत्तियां

(आईआर- औद्योगिक संबंध- कोड 2020 मोदी सरकार द्वारा कोरोना काल और लॉकडाउन के बीचोंबीच दो अन्य श्रम कोडों के साथ 14 सितंबर से बुलाये गये एक हफ्ते के संसद सत्र में पास करवाकर कानून बना दिये गये है. कोरोना संकट को कॉरपोरेट घरानों के लिये अवसर में बदलने के अपने सिद्वांत के तहत, अब मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय ने इसी दौर में ही इस कानून की केंद्रीय नियमावली का मसौदा तैयार कर सार्वजनिक पटल में ला दिया है और ट्रेड यूनियन संगठनों से आपत्तियां मंगाई हैं. सरकार के इस रवैये का विरोध करते हुए, इस मसौदे पर अपनी आपत्तियां के रूप में जवाब ऐक्टू द्वारा सरकार को भेजा गया है, जो नीचे प्रस्तुत है.)

मसौदा नियमों पर मौलिक आपत्तियां

नियमों को पढ़ने से ये साफ हो जाता है कि ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस (व्यापार को आसान बनाने) के नाम पर कई प्रक्रियात्मक सुरक्षा नियमों और विनियामक प्रक्रियाओं को खत्म कर दिया गया है. वहीं दूसरी तरफ नियमों में, छोटे दिखाई देने वाले, बदलावों को इस तरह अंजाम दिया गया है कि वो कई तरीकों से कामगारों के खिलाफ प्रबंधन के पक्ष में हो गए हैं.

इन नियमों द्वारा हुए बदलावों में एक बड़ा बदलाव है कई हस्तचालित (मैन्युअल) प्रक्रियाओं का इलेक्ट्रोनिक माध्यम में परिवर्तन का, जिनमें शिकायत और दस्तावेजों को दर्ज करना, कम्यूनिकेशन, नोटिस, फीस का भुगतान, शामिल है. ये खासतौर पर तब गंभीर हो जाता है जब कामगारों को खुद उपस्थिति के तरीके का विकल्प ही नहीं दिया गया है, और अब ये सारी प्रक्रियाएं इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से करना अनिवार्य कर दिया गया है. मिसाल के लिए: नियम 9 के अनुसार, सर्टिफाइड स्टैंडिग ऑर्डस इलेक्ट्रॉनिकली भेजे जाएंगे; नियम 12 के अनुसार, अपील को इलेक्ट्रॉनिकली दर्ज कराना होगा; नियम 22 (16) (सी) के अुनसार, नकल बनाने और उसे सर्टिफाइ करने की फीस इलेक्ट्रॉनिकली भुगतान की जाएगी; नियम 38 के अनुसार शिकायतें सिर्फ इलेक्ट्रॉनिकली और स्पीड पोस्ट या रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजी जा सकती हैं, आदि. असल में नियम 41 के अनुसार, जब किसी अपराध की जांच होगी, तो जांच अधिकारी पार्टियों को सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक नोटिस भेजने की जरूरत है. अगर पार्टियां उस निश्चित दिन पर ना पहुंच पाएं तो उस शिकायत की सुनवाई और निपटारा एकतरफा तौर पर कर दिया जाएगा. ऐसे ही कई और प्रावधान हैं जिनमें हस्तचालित प्रक्रियाओं को इलेक्ट्रॉनिक में बदल दिया गया है. इन प्रक्रियाओं को इलेक्ट्रॉनिकली करने के इस नये प्रावधान ने इस बात को पूरी तरह अनदेखा कर दिया है कि बहुसंख्य कामगार ग़रीब हैं और वे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से काम नहीं कर सकते. वहीं, कई कामगार इतना टेक्नॉलॉजी भी नहीं जानते कि ठीक से नई अनिवार्यताओं को समझ सकें और उनके अनुसार काम कर सकें. इसलिए ये नियम प्रभावी तौर पर सिर्फ प्रबंधन की सुविधा के लिए और कामगारों के खिलाफ काम करने के लिए बनाए गए हैं. इसलिए ये मांग की गई है कि सभी प्रक्रियाओं में गैर-इलेक्ट्रॉनिक विकल्प भी उपलब्ध होने चाहिए, ताकि पार्टियां अपनी सुविधा के अनुसार अपने विकल्प चुन सकें. इसके अलावा सभी प्रावधानों में जहां पार्टियों को नोटिस, दस्तावेज, या कोई संवाद इलेक्ट्रॉनिकली होना है उसकी हार्ड कॉपी (कागजी प्रति) भी भेजी जाए और उसकी रसीद का नियम हो.

अब तक जो नियम बनाए गए हैं वो बहुत ही गलत तरीके से बनाए गए हैं और वो कोड में ट्रेड यूनियन पर अध्याय 3 निर्धारित विभिन्न विषयों के बारे में कोई बात नहीं करते. वास्तव में सेक्शन 7, सेक्शन 8, सेक्शन 9, सेक्शन 10, सेक्शन 11, सेक्शन 14, सेक्शन 15, सेक्शन 22, सेक्शन 24, सेक्शन 25, सेक्शन 26, और सेक्शन 27 सभी कहते हैं कि ”निर्देशानुसार’’ कदम उठाए जायें. जबकि इस विषय में कोई निर्देश नहीं दिए गए हैं! इसलिए विभिन्न महत्वपूर्ण प्रावधान जिनमें यूनियन की सदस्यता राशि, ट्रेड यूनियन के राजनीतिक फंड या सामान्य फंड को खर्च करने के बारे में, ट्रेड यूनियनों के एकीकरण, वो ”विषय” जिन्हें सामूहिक समझौते में शामिल किया जाना है, एक एकल यूनियन की मान्यता, नेगोशिएट करने वाली यूनियन को सुनिश्चित करने के लिए सदस्यता के प्रमाणीकरण के तरीके और नेगोशिएट करने वाली काउंसिल के घटकों और मान्यताप्राप्त ट्रेड यूनियनों को उपलब्ध कराए जाने वाली सुविधाओं का जिक्र नदारद है. ये मांग की जाती है कि इस विषय में नए और तफसीली, ब्यौरेवार नियम बनाए जाएं और उनमें कामगारों की मुक्त और न्यायपूर्ण सामूहिक सौदेबाजी़ को ध्यान में रखा जाए. 

आखिर में, औद्योगिक विवाद (केन्द्रीय) नियमों के बहुत महत्वपूर्ण प्रावधानों को बिना उनका सही महत्व पहचाने हटा दिया गया है. औद्योगिक विवाद (केन्द्रीय) नियम 1957 के ऐसे कुछ महत्वपूर्ण नियम निम्नलिखित हैं:

  1. नियम 5 का प्रावधान है कि किसी सदस्य की नियुक्ति को गजेट में अधिसूचित करना होगा.
  2. नियम 23 प्रवेश और जांच की महत्वपूर्ण शक्ति प्रदान करता है.
  3. निमय 24 ये कहता है कि ट्राइब्यूनल के पास दीवानी अदालत की निम्न शक्तियां होगी ताकि वो
    1. - खोज और जांच कर सके;
    2. - स्थगन का आदेश दे सके;
    3. - शपथ पत्र पर सबूत स्वीकार कर सके
  4. नियम 26 ट्राइब्यूनल द्वारा की गई लिपिकीय गलतियों के सुधार के बारे में है.
  5. नियम 33 गवाहों के खर्च से संबंधित है.
  6. नियम 37 कहता है कि पार्टियां अपने प्रतिनिधियों द्वारा कार्य-व्यवहार करने को बाध्य हैं.
  7. वक्र्स कमेटियों से संबंधित कई नियम. 
  8. नियम 66, जिसमें लेबर कोर्ट एक कमीशन जारी कर सकता है ताकि लाभ के मौद्रिक मूल्यांकन की गणना की जा सके.
  9. नियम 75 ए (2), 75 बी, 76, 76 ए, 76 सी, जो नोटिस और आवेदनों से संबंधित हैं.
  10. नियम 77 का खास महत्व है, जो ये कहता है कि छंटनी से एक हफ्ते पहले छंटनी अपेक्षित कामगारों की वरीयता सूची बनाना आवश्यक है. इससे प्रबंधन की वरिष्ठ कामगारों को छंटनी की आड़ में काम से निकालने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगता है. 

मसौदा नियमों के अनुसार टिप्पणियां

नियम 2 

इस नियम के अंतर्गत, समझौता (सेटलमेंट) पत्र पर हस्ताक्षर के सदंर्भ में जितने भी प्रक्रियात्मक बचाव थे उन्हें हटा दिया गया है. ये बचाव, जो आईडी (सेंट्रल) के नियमों में नियम 58 के अंतर्गत थे, इनमें निम्नलिखित आवश्यकताएं शामिल थींः

58 (2) सेटलमेंट पर निम्नलिखित के हस्ताक्षर होने चाहिए - (अ) नियोक्ता के मामले में, खुद नियोक्ता द्वारा, या उसके द्वारा अधिकृत एजेंट द्वारा, या जब नियोक्ता कोई नियमित कंपनी हो या कोई अन्य कॉरपोरेट प्रतिष्ठान हो, तो उसके एजेंट, प्रबंधक, या कोरपोरेशन के किसी अन्य प्रमुख अधिकारी द्वारा; (ब) कामगार के मामले में, कामगार की ट्रेड यूनियन के किसी भी पदाधिकारी द्वारा या इस उद्देश्य के लिए, कामगारों की ओर से बुलाई गई बैठक में विधिवत अधिकृत पांच प्रतिनिधि; (स) किसी औद्योगिक विवाद में किसी कामगार के मामले में ऐक्ट के सेक्शन 2 ए के अंतर्गत, संबंधित कामगार द्वारा. 

”ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस” के नाम पर इन प्रक्रियात्मक सुरक्षाकवचों को हटाने के भयंकर परिणाम हो सकते हैं. ऐसे संरक्षण के बिना, वर्तमान में जरूरी पांच लोगों के बजाय सिर्फ एक अधिकृत व्यक्ति भी मेमोरेंडम ऑफ सेटलमेंट पर हस्ताक्षर कर सकता है. आईडी (सेंट्रल) नियमों के नियम 58 में उपलब्ध सुरक्षा उपायों को वापस लाना ही होगा. 

नियम 3

पूर्व मे आईडी (सेंट्रल) नियमों में वक्र्स कमेटी की बाबत जो प्रक्रियात्मक संरक्षण थे उनमें से कई हटा दिये गये हैं. इनमें चुनावों, उम्मीदवारों का नामांकन, मतदान आदि के लिए प्रकियाएं होती थीं, और ये प्रक्रियाएं ये सुनिश्चित करने के लिए जरूरी थीं कि वक्र्स कमेटी में न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व हो. आईडी नियमों के नियम 42 में - वो जो पंजीकृत ट्रेड यूनियन से हों और उन कामगारों में से जो किसी पंजीकृत ट्रेड यूनियन का हिस्सा ना हों, उनकी संख्या के अनुपात के अनुसार - दो समूहों में चुनावों की बात थी. जबकि मसविदा नियमों में उन कामगारों के लिए कोई संरक्षण नहीं है जो किसी ट्रेड यूनियन का हिस्सा ना हों. हम ये कहना चाहते हैं कि आईडी नियमों के नियम 38 से 57 में जो 20 प्रावधान समाहित थे उन्हें एकमात्र नियम में समेट देना असल में वक्र्स कमेटी की निष्पक्षता, स्वतंत्रता और उपयोगिता को खत्म करना है. हम ये मांग करते हैं कि सभी पूर्व के प्रक्रियात्मक और तात्विक संरक्षणों को मसविदा नियमों में लाया जाए. 

नियम 4

ये बहुत महत्वपूर्ण नियम है, जो शिकायत निवारण कमेटी संबंधित है क्योंकि सभी व्यक्तिगत विवादों से यही कमेटियां निपटती हैं. हालांकि ये नियम ये स्पष्ट नहीं करता कि प्रतिनिधियों का चुनाव कैसे किया जाएगा. आईडी (सेंट्रल) नियमों के अनुसार जो वर्किंग कमेटियों के चयन में शामिल प्रक्रिया है, इसी तरह की प्रक्रिया को लाने की जरूरत है ताकि शिकायत निवारण कमेटी के लक्ष्यों का हासिल किया जाना सुनिश्चित किया जा सके. ये बहुत महत्वपूर्ण है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि कामगारों के प्रतिनिधि नियोक्ता के चेले-चपाटे ना हों, क्योंकि ऐसा होने से पूरी व्यवस्था ही बेकार हो जाएगी. 

नियम 9

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, पार्टियों को सर्टिफाइड स्टैंडिंग आर्डर भी फिजिकली भेजा जाना चाहिए. ये भी बहुत जरूरी है कि जहां सर्टिफिकेशन की जरूरत ना हो वहां भी नियोक्ताओं के लिए ये प्रावधान हो कि कामगारों के प्रतिनिधियों को स्टैंडिंग ऑर्डर की समुचित कॉपियां उपलब्ध करवाई जाएं. 

नियम 11

ये नियम कहता है कि नियोक्ताओं के समूहों द्वारा ”संबंधित ट्रेड यूनियनों से परामर्श के बाद”  ज्वाइंड ड्राफ्ट स्टैंडिंग ऑर्डर्स को जमा किया जाए. ये बहुत जरूरी है कि इसमें संशोधन किया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसे संयुक्त प्रस्तुतीकरण संबंधित यूनियनों की सहमति से ही हों ना कि सिर्फ परामर्श के आधार पर. 

नियम 12

जैसा कि पहले कहा गया है कि, प्रक्रिया में फिजीकल अपील और गैर-इलेक्ट्रॉनिक अपील की उपलब्धता होनी चाहिए. कोड के साथ सामंजस्य बिठाने के लिए, अपीलों को नेगोशिएट करने वाली यूनियनों या काउंसिलों की वरीयता प्राप्त होने की अनुमति होनी चाहिए, या अगर कहीं किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान में ऐसी यूनियनें या काउंसिल ना हो, तो वहां कोई अन्य यूनियन या फिर कामगारों की प्रतिनिधित्व इकाई को शामिल किया जाए.

नियम 17

मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) समझौता के संबंध में, धारा 2(पप) ने हस्ताक्षर के लिये 5 अधिकृत प्रतिनिधियों की संख्या की जरूरत को घटाकर 3 कर दिया है, और धारा 2(पपप) ने एक कामगार को अपनी ओर से दूसरे कामगार को हस्ताक्षर करने के लिये अधिकृत करने की शक्ति छीन ली है. ये बदलाव स्वीकार्य नहीं हैं और मसौदे को पूर्व की स्थिति बहाल करनी चाहिए.

नियम 20 व 21

आश्चर्य की बात है कि दोनों नियमों के तहत चयन समिति में भारत सरकार के सचिव, प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्री एवं इंटरनल ट्रेड शामिल होंगे. प्रतीत होता है कि श्रम कानूनों के कॉरपोरेटीकरण को हद से ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है. हम कदम का विरोध करते हैं और इसे वापस लेने की मांग करते हैं.

नियम 22

इस के तहत सरकार ने सुलह-समझौता और न्यायिक निर्णय की समस्त प्रक्रिया जो कई साल चलती है, को मात्र एक नियम में बांध दिया है जिसके चलते कामगारों के हित के कई महत्वपूर्ण सुरक्षा मानक समाप्त कर दिये गये हैं. यह मांग की जाती है कि इस मामले में आईडी ऐक्ट एवं नियमों को पूर्ण रूप में बहाल किया जाए.

नियम 24

यह आवश्यक है कि लॉकआउट नोटिस प्रबंधक के कार्यालय और आईडी नियमों के तहत पहले जहां कहीं भी जरूरी था प्रदर्शित किया जाए. इस नियम के तहत ये प्रावधान नहीं हैं.

नियम 25, 27, 28, 29, 31, 33

इन नियमों के तहत कंपनी को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया में फॉर्म 9 एवं 10 (धारा 5) में मुआवजे की अदायगी के बारे में अस्पष्टता है. अतः संपूर्ण मुआवजा कोड के मुआवजा संबंधित सेक्शनों 70/75/67 आदि के तहत अनिवार्य रूप से अदा किया जाना चाहिए. यही नहीं फॉर्म 10 में उद्योग और कार्यरत कामगारों से संबंधित बेहद जरूरी जानकारियां देने का प्रावधान गायब है. इन जानकारियों को देने का प्रावधान बहाल किया जाना चाहिए.

नियम 35

इस नियम के तहत छंटनी होने पर मुआवजा देने में 45 दिनों की देरी तक का प्रावधान शामिल है, जो बेतुका, संवेदनहीन और अमानवीय है. इस प्रावधान को हटाया जाना चाहिए और कामगार को छंटनी होने के साथ ही साथ मुआवजा मिलना चाहिए.