श्रमिकों का राष्ट्रीय सम्मेलन  (आनलाइन) 26 नवंबर 2020 को देशव्यापी आम हड़ताल का आह्वान

घोषणापत्र

लोगों की वास्तविक सभाओं में बाधा डालने वाली लॉकडाउन स्थितियों के कारण पहली बार 2 अक्टूबर 2020, गांधी जयंती दिवस, पर केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा आयोजित हो रहा श्रमिकों का यह ऑनलाइन राष्ट्रीय सम्मेलन मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार और साथ ही विभिन्न भाजपा नीत राज्य सरकारों द्वारा मजदूरों, किसानों और हमारे देश के आम लोगों के बुनियादी लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों पर हमले की सख्त निंदा करता है.

भाजपा सरकार ने अपने पहले कार्यकाल (2014-19) में, साझेदारों से परामर्श करने का जो लिबास पहन रखा था, 2019 के बाद से अपने दूसरे कार्यकाल में उसे भी हवा मे फेंक दिया है. जबकि सभी संकेत मांग में कमी के कारण अर्थव्यवस्था के बेहद धीमा होना बता रहे हैं, सरकार ‘‘ईज ऑफ डूईंग बिजनेस’’ (व्यापार करने में आसानी) के नाम पर अपनी नीतियों को जारी रखे हुए है और बदहाली व संकट और बढ़ा रही है. इस प्रक्रिया में, कॉरपोरेट करों को कम करने के अलावा, उन्होंने संसद में चरम अलोकतांत्रिक तरीके से तीन श्रम-विरोधी कोड पास करवा दिये जब विपक्षी दल अनुपस्थित थे. ये श्रम कोड मजदूरों को वस्तुतः गुलामी में झोंक देंगे, यूनियन बनाना बेहद मुश्किल बना देंगे और हड़ताल के अधिकार को तकरीबन समाप्त कर देंगे, और यहां तक कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के व्यापक हिस्सों को - खोखा-पटरी वालों, घरेलू श्रमिकों, स्कीम कर्मियों, गृह-आधारित, बीड़ी व निर्माण मजदूरों, रिक्शाचालकों और अन्य दैनिक मजदूरों को कानूनी संरक्षण के दायरे से बाहर कर देंगे. इसी तरह और सभी संसदीय और वैधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन करते हुए, कानूनी रूप से कृषि उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के बिना उन्होंने तीन कृषि बिलों को पारित करा दिया है और आवश्यक वस्तु अधिनियम को कमजोर कर दिया है, और इस प्रकार कॉर्पोरेट और अनुबंध खेती, देसी-विदेशी बड़े खाद्य प्रसंस्करण और खुदरा एकाधिकार को बढ़ावा दिया है और देश की खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डाल दिया है. सरकार इससे भी आगे बढ़ गई हैः संसद में बिजली (संशोधन) विधेयक, 2020 को रखे बिना, इसने 12 मुख्यमंत्रियों द्वारा विरोध में विचार व्यक्त करने के बाद भी बिजली वितरण कार्य का निजीकरण करना शुरू कर दिया है, और इससे मौजूदा कर्मचारियों को नए फ्रेंचाइज मालिक की दया पर छोड़ दिया है. पूर्व में, बड़े एनपीए खातों को वसूलने के लिए कदम उठाये बिना सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय का सहारा लिया, जो आम खातेदारों के धन को खतरे में डालता है. जीएसटी के दोषपूर्ण सूत्रीकरण व कार्यान्वयन और धीमी अर्थव्यवस्था ने सरकार की वित्त को मुश्किल में डाल दिया है, जिसके परिणामस्वरूप राज्यों के वित्त सूख रहे हैं. आरबीआई, एलआईसी और विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों को एटीएम के रूप में उपयोग किया जा रहा है, जो केवल नीलामी और 100 प्रतिशत एफडीआई के माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों के निजीकरण के उन्माद को बढ़ावा दे रहा हैः जैसे रेलवे मार्ग, रेलवे स्टेशन, रेलवे की उत्पादन इकाइयां, हवाई अड्डे, कोयला खदान, बंदरगाह, मुनाफा देने वाले सरकारी विभाग, नकदी समृद्ध सार्वजनिक उपक्रम जैसे बीपीसीएल, 41 आयुध कारखाने, बीएसएनएल (इसके 86,000 कर्मचारियों को देशद्रोही बताकर), एयर इंडिया, सड़क परिवहन आदि, आदि. ये सब विनाशकारी कदम तब थोपे जा रहे हैं, जब देश कोविड-19 महामारी से कराह रहा है. यहां तक कि तथाकथित ‘‘फ्रंटलाइन वॉरियर्स’’ - डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मचारी, आंगनवाड़ी, आशा कार्यकर्ता, को अपने स्वयं के जीवन को जोखिम में डालते हुए भी स्थानीय सर्वेक्षण करने के लिए मजबूर करने के बाद भी, उन्हें वादा किया हुआ मौद्रिक एवं बीमा लाभ नहीं दिया गया, उनके साथ खराब व्यवहार किया गया! और वहीं मुकेश अंबानी और गौतम अडानी जैसे सरकार-समर्थित पूंजीपति कोरोना महामारी के हर दिन करोड़ों रुपये के धन में वृद्धि के लिए सुर्खियों में हैं!

अनियोजित लॉकडाउन ने करोड़ों प्रवासी कामगारों के लिए अनकही पीड़ाएं पैदा कीं, जो तुलनात्मक रूप से नोटबंदी की कहानियों को फीका बना देती हैं. यह दौर महिलाओं के और कठिन था, जिन्हें कार्यस्थलों, सार्वजनिक स्थानों और साथ ही अपने घरों में बदत्तर उत्पीड़न झेलना पड़ा. देश की अर्थव्यवस्था गतिरोध में आ गई, बेरोजगारी खासकर महिला श्रमिकों के मामले में, किसी भी समय की तुलना मे रिकार्ड  स्तर पर पहुंच गई, जबकि जीडीपी पहले की तुलना में सबसे अधिक सिकुड़ गया. सरकार लॉकडाउन की शुरुआत में नियोक्ताओं को जारी की गई सलाह के बारे में कभी भी गंभीर नहीं थी - जैसे कि श्रमिकों की छंटनी नहीं करना, लॉकडाउन अवधि के लिए मजदूरी में कटौती नहीं करना आदि. नियोक्ताओं द्वारा उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिए जाने पर उन्हें नतमस्तक वापस ले लिया गया. लेकिन एक अपारदर्शी पीएम केयर्स फंड बनाया गया, जहां कॉरपोरेट घरानों ने योगदान देना शुरू कर दिया और सरकारी कर्मचारियों को योगदान देने के लिए बाध्य किया गया. उनका डीए जाम कर दिया गया. एक पुराना डीओ पुनर्जीवित किया गया जो सरकार को एक कर्मचारी को समय से पहले रिटायर करने के लिए मजबूर करने का अधिकार देता है. तत्पश्चात, अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को महामारी की स्थिति से खुद निपटने के लिए छोड़ दिया. चुनी हुई राज्य सरकारों को दरकिनार करना, धन शक्ति के माध्यम से, सीबीआई, ईडी, एनआईए, पुलिस जैसी राज्य एजेंसियों के उपयोग के माध्यम से राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाना सभी ने देखा है. सरकार द्वारा विभाजनकारी एजेंडा चलाया जा रहा है - हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष तानेबाने को नष्ट करने, सीएए के सभी बौद्धिक विरोधियों पर साजिश रचने और उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों को उकसाने का आरोप लगा कर निशाना बनाने का, और वहीं दूसरी तरफ यहां तक कि दिल्ली पुलिस का इस्तेमाल करके भाजपा नेताओं पर उनके द्वारा नफरत भरे भाषणों के लिए एफआईआर भी दर्ज नहीं की गई, जिसकी चैतरफा भर्त्सना हुई है. सुप्रीम कोर्ट का क्षय चिंताजनक है. इस दर्दनाक स्थिति में, नई शिक्षा नीति पेश की गई है, जो शिक्षा का थोक निजीकरण है, जो गरीब लोगों के साथ भेदभाव करेगी. संक्षेप में, संविधान को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है.

स्थिति गंभीर है

ट्रेड यूनियनों का यह राष्ट्रीय संयुक्त सम्मेलन मोदी की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार की इन नीतियों को  मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी करार देते हुए सख्त भर्त्सना करता है.

यह सम्मेलन नोट करता है कि श्रमिकों और मेहनतकशों के विभिन्न वर्ग बड़ी मुश्किल से हासिल अधिकारों और लाभों को बचाने और उनके जीवन और जीवन स्थितियों पर हमलों के खिलाफ दृढ़ता से लड़ रहे हैं.

कोयला मजदूरों की तीन दिनों की हड़ताल, आयुध कारखानों के मजदूरों की हड़ताल, रेलवे की उत्पादन इकाइयों के मजदूरों के प्रदर्शन, बीपीसीएल के कर्मियों की दो दिवसीय हड़ताल, उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों एवं इंजीनियरों का जारी आंदोलन, आरटीसी मजदूरों, तेल श्रमिकों, इस्पात, पोर्ट, सीमेंट श्रमिकों, स्कीम श्रमिकों और विभिन्न क्षेत्रों के मजदूरों और कर्मचारियों के प्रदर्शन जिन्होंने निजीकरण के खिलाफ और अन्य मांगों के लिए हड़ताल समेत बड़े संघर्ष किये हैं. यह सम्मलेन देश की सुरक्षा की रक्षा के लिए 12 अक्टूबर 2020 से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने वाले आयुध कारखानों के श्रमिकों के गंभीर निर्णय के साथ है. सम्मेलन देश के मजदूरों का आहृान करता है कि वे 12 अक्टूबर को तमाम कार्यस्थलों पर हड़ताल के समर्थन में जुझारू प्रदर्शन आयोजित करें, और हर हफ्ते इन प्रदर्शनों को जारी रखें जब तक कि हड़ताल सम्मानजनक ढंग से संपन्न नहीं होती.

यह सम्मेलन उन किसानों के साथ पूर्ण एकजुटता प्रदर्शित करता है जो किसान विरोधी कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, जो मतदान के बिना ही पारित कर दिए गए. यह सम्मेलन घोषणा करता है कि संयुक्त ट्रेड यूनियन आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर और साथ ही देश के किसी भी हिस्से में उनके संघर्ष के साथ सभी रूपों में एकजुटता जारी रखेगा. मजदूर किसानों के साथ मजबूती से खड़े हैं.

लॉकडाउन के दौरान संयुक्त ट्रेड यूनियन मंच द्वारा आहूत सभी संयुक्त विरोध कार्यक्रमों में, लॉकडाउन के कारण भारी कठिनाइयों के बावजूद, श्रमिकों की भारी भागीदारी की सराहना करते हुए, यह सम्मेलन संघर्ष को और तेज करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है. केंद्र की मोदी सरकार को कॉरपोरेटों के फायदे के लिये श्रमिकों, किसानों और देश के सभी मेहनतकशों और आम लोगों के हितों का त्याग करने मे कोई संकोच नहीं है.

न केवल पूरे ट्रेड यूनियन आंदोलन, बल्कि प्रख्यात अर्थशास्त्रियों द्वारा निरंतर मांग के बावजूद, लोगों के हाथों में पैसा डालने के लिए नकद हस्तांतरण करने को भाजपा सरकार तैयार नहीं है जो न केवल आम लोगों के लिए कुछ सहारा प्रदान करेगा बल्कि देश की फिसलती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने मे भी सहायक होगा. हमारे गोदाम खाद्यान्न से भरे होने के बावजूद, भाजपा सरकार जरूरतमंदों को मुफ्त राशन देने के लिए तैयार नहीं है.

यह सम्मलेन दृढ़ता से यह दावा करता है कि यह स्थिति पूरे मजदूर वर्ग द्वारा अवज्ञा और असहयोग के रूप में एकजुट प्रतिरोध संघर्ष के उच्चतर रूपों के लिए तैयार रहने की है. यह कामकाजी लोगों, श्रमिकों, किसानों और कृषि श्रमिकों के सभी वर्गों की एकजुटता का आहृान करता है.

यह सम्मलेन देश के सम्पूर्ण श्रमिक वर्ग को निम्नलिखित मांगों पर देशव्यापी आम हड़ताल की तैयारी करने का आहृान करता हैः

  1. सभी गैर-आयकर दाता परिवारों के लिए प्रति माह 7,500 रुपये का नकद हस्तांतरण.
  2. सभी जरूरतमंदों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 10 किलो मुफ्त राशन.
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में एक साल में 200 दिनों तक के काम को बढ़ी हुई मजदूरी के साथ लागू करने के लिए मनरेगा का विस्तार; शहरी क्षेत्रों में रोजगार गारंटी का विस्तार.
  4. सभी किसान विरोधी कानूनों और मजदूर विरोधी श्रम कोडों को वापस लिया जाए.
  5. वित्तीय समेत सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण पर रोक लगाओ और रेलवे, आर्डनेंस कारखानों, बंदरगाहों समेत सरकार द्वारा चालित विनिर्माण और सेवा संस्थानों के निगमीकरण पर रोक लगाओ.
  6. सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को जबरन समय से पहले रिटायरमेंट के लिये बाध्य करने वाले दमनकारी आदेश को वापस लो.
  7. सभी को पेंशन दो; एनपीएस रद्द करो और ओपीएस को बहाल करो, ईपीएस-95 को बेहतर बनाओ.

यह सम्मेलन श्रमिक वर्ग का अक्टूबर 2020 तक संयुक्त राज्य/जिला/उद्योग स्तर के फिजिकल सम्मेलनों, जहां भी संभव हो, का आयोजन करने, नहीं तो कम से कम ऑनलाइन सम्मलेनों के आयोजन का आहृान करता है; नवंबर के मध्य तक जमीनी स्तर पर श्रमिकों पर श्रम कोडों के प्रतिकूल प्रभाव पर एक व्यापक अभियान के संचालन और 26 नवंबर 2020 को एक दिन की देशव्यापी आम हड़ताल करने का आहृान करता है. यह स्पष्ट हो कि यह एक दिवसीय हड़ताल आने वाले दिनों में और भी जुझारू, दृढ़ और लंबे संघर्षों की तैयारियों की ओर लक्षित है.

सम्मेलन कामगारों, चाहे वे किसी भी संगठन से संबद्ध हों, या फिर किसी भी यूनियन से न जुड़े हों, संगठित या फिर असंगठित क्षेत्र से हों, से सरकार की जनविरोधी, मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी और देश-विरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुट संघर्ष को तेज करने और 26 नवंबर 2020 की देशव्यापी आम हड़ताल को सफल करने का आहृान करता है.

(ऐक्टू, इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआइयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एलपीएफ और यूटीयूसी के संयुक्त प्लेटफार्म और स्वतंत्र फेडरेशनों एवं एसोसियशनों का आहृान)