श्रमिकों का राष्ट्रीय सम्मेलन:  8 जनवरी 2020 को देशव्यापी आम हड़ताल का ऐलान

मोदी सरकार के जारी हमलों के खिलाफ मजदूर वर्ग द्वारा चलाए जा रहे संघर्ष को और अधिक तेज करने की दिशा में, मजदूरों का राष्ट्रीय सम्मेलन 30 सितंबर 2019 को संसद मार्ग, नई दिल्ली में आयोजित किया गया जिसने समस्त मजदूर वर्ग और मेहनतकश अवाम का 8 जनवरी 2020 को देशव्यापी आम हड़ताल संगठित करने का आह्वान किया. यह अभूतपूर्व है कि मोदी शासन-2 के केवल 100 दिनों के कार्यकाल में ही कॉरपोरेटीकरण/निजीकरण, 100 प्रतिशत एफडीआई, नई पेंशन योजना और श्रम कानूनों के कोडीकरण के खिलाफ शक्तिशाली देशव्यापी मजदूर वर्ग कार्रवाइयां देखने में आईं जिनमें कुछ प्रमुख हैंः डिफेंस कर्मियों की 5-दिवसीय हड़ताल, कोयला श्रमिकों की एक दिवसीय पूर्ण हड़ताल और रेलवे की उत्पादन इकाइयों के श्रमिकों का अपने परिजनों के साथ निरंतर संघर्ष.

मोदी सरकार की जन-विरोधी, मजदूर-विरोधी, राष्ट्र-विरोधी नीतियों व कदमों के खिलाफ आयोजित यह सम्मेलन देश के 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों और स्वतंत्र फेडरेशनों के संयुक्त मंच, जो पिछले 9 वर्षों से एकताबद्ध मजदूर संघर्ष की अगुवाई कर रहा है, के बैनर तले आहूत था. केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों के इस मंच में ऐक्टू, इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, यूटीयूसी और एलपीएफ शामिल हैं. सम्मेलन में बैंक, बीमा, प्रतिरक्षा, रेलवे तथा केंद्रीय/राज्य सरकार के कर्मचारी सहित सभी क्षेत्रों और सेवा समूहों के स्वतंत्र राष्ट्रीय फेडरेशनों/संगठनों ने भी भागीदारी की. ‘‘श्रम कानूनों में मजदूर-विरोधी, मालिक-परस्त संशोधन और कोड रद्द करो; निजीकरण, छंटनी, 100 प्रतिशत एफडीआई, बैंकों का विलयन, नई पेंशन नीति बंद करो; आम जनता की क्रय शक्ति मजबूत करो, रोजगारों का सृजन करो; आर्थिक मंदी को रोकने के लिये जारी आर्थिक नीतियों में बदलाव करो’’ - यह उद्घोष सम्मेलन ने बुलंद किया. 

सम्मेलन को ऐक्टू महासचिव राजीव डिमरी, एटक महासचिव अमरजीत कौर, सीटू महासचिव तपन सेन, एचएमएस महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू, इंटक उपाध्यक्ष अशोक सिंह, यूटीयूसी नेता प्रेमचंद्रन, एआईयूटीयूसी महासचिव शंकर साह, टीयूसीसी सचिव देवराजन, सेवा की सचिव सोनिया जार्ज, एलपीएफ महासचिव शन्मुगम ने संबोधित किया. अध्यक्षमंडल में ऐक्टू की ओर से सर्वजीत सिंह, आईआरईएफ (इंडियन रेलवे इंप्लाइज फेडरेशन) के महासचिव मौजूद थे.

सम्मेलन द्वारा जारी घोषणापत्र ने मोदीनीत भाजपा सरकार की जमकर भर्त्सना करते हुए कहा कि अपने 100 दिनों के दूसरे कार्यकाल में ही देश और जनता को बर्बाद कर दिया है, आर्थिक मंदी में डुबो दिया है. निरंतर घटती नौकरियां व आसमान छूती बेरोजगारी, व्यापक और गहराती दरिद्रता, कमाई के स्तर में तेज गिरावट, अंधाधुंध निजीकरण और राष्ट्रीय संपत्तियों को विदेशी कंपनियों के हवाले करना व स्वदेशी विनिर्माण क्षमताओं का विनाश करते हुए गैर-औद्योगीकरण और समाज में आर्थिक असमानता को चरम स्तर तक पहुंचाना - यही सब मौजूदा मोदी शासन की मुख्य विशेषता है. और इस सब के ऊपर, यह सरकार देश के लुटेरों यानी कॉरपोरेट घरानों को ‘संपत्ति के सृजनकर्ता’ की उपाधि दे रही है और आर्थिक मंदी की आड़ में 1.4 लाख करोड़ रूपये का प्रोत्साहन पैकेज भेंट कर रही है, बजाए आम जनता की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिये ठोस कदम उठाने के - ‘सब का साथ, सब का विकास’ नारे का मजाक बनाते हुए. घोषणापत्र ने कहा कि अब, और भी ज्यादा अहंकार के साथ, बड़े पैमाने पर जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों और आजीविका को निशाना बनाने वाली उन्हीं विनाशकारी आर्थिक नीतियों को लागू किया जा रहा है, जिससे स्थिति और बिगड़ती जा रही है. और अब जो सरकार चाहती है उसे पहले से कहीं अधिक अलोकतांत्रिक तरीके से अंजाम दे रही है - वेज कोड बिल को पारित कराना, व्यावसायिक स्वास्थ्य, सुरक्षा और कार्यस्थिति पर कोड लाना, आरटीआई ऐक्ट में इसे अपंग बनाने के लिये संशोधन करना, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम ऐक्ट में संशोधन करके इसे और क्रूर एवं दंडात्मक बनाना. जम्मू-कश्मीर की जनता की आवाज को दबाकर धारा 370 को निरस्त कर दिया गया है और पिछले दो महीनों से राज्य को सैन्य घेरेबंदी में डाल रखा है, एनआरसी प्रक्रिया के माध्यम से लाखों लोगों को बेघर/राज्यविहीन बना दिया है. अब कई भाजपा शासित राज्य, जनता को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के लिये एनआरसी प्रक्रिया की वकालत कर रहे हैं. साथ ही, सांप्रदायिक ताकतों को खुली छूट दे दी गई है जो गैर-मुद्दों पर समाज के भीतर नफरत का माहौल पैदा कर रहे हैं, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई, आदि के मुख्य मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने में सरकार को मदद दे रहे हैं. ये ताकतें मजदूरों और आम तौर पर समस्त मेहनतकश अवाम के बीच एकता को तोड़ने की कोशिशों में लगी हुई हैं. जनता की एकता कायम रखने के लिये और एकताबद्ध प्रतिरोध के जरिए इस विघटनकारी साजिश का मुकाबला करना होगा. 

कन्वेंशन द्वारा उठाई गईं कुछ प्रमुख मांगें हैंः 21,000रू. मासिक न्यूनतम मजदूरी (मौजूदा महंगाई के मद्देनजर); सभी के लिये सरकारी फंडिंग द्वारा 10,000रू. मासिक पेंशन; सभी ग्रामीण एवं शहरी परिवारों के लिये एक कारगर रोजगार गारंटी कानून; अधिक दिनों और बजटीय आवंटन के साथ नरेगा का क्रियान्वयन; ग्रामीण संकट को कम करने के लिये सार्वजनिक निवेश में वृद्धि, स्वामीनाथन आयोग के अनुसार कृषि उपज के लिये लाभकारी मूल्य, सरकारी खरीद सुविधाओं और किसानों के ऋण की माफी; सभ्य रोजगार का स्थायीकरण; सभी स्कीम कर्मियों को ‘‘श्रमिक’’ का दर्जा एवं वेतन व सुविधाएं, जिसके बारे में भारतीय श्रम सम्मेलन द्वारा सर्वसम्मति से सिफारिश की गई है; ठेका प्रथा को समाप्त करना और ठेका मजदूरों का नियमितीकरण तथा समान काम के लिये समान वेतन एवं लाभ; और विकास लक्ष्यों को लगातार लागू करना. 

कन्वेंशन ने हड़ताल के आह्वान को सफल बनाने के लिये अगले तीन महीनों का कार्यक्रम लिया जिसमें शामिल है, अक्टूबर-नवंबर 2019 के बीच राज्य, जिला और उद्योग/सेक्टर के स्तर पर संयुक्त कन्वेंशनों का आयोजन; और दिसंबर माह में सबसे निचले स्तरों- कारखाना, संस्थान, कार्यस्थल- तक सम्मेलन के घोषणापत्र को ले जाना.

सम्मेलन में देशभर से संगठित और असंगठित दोनों सेक्टरों से 3000 से अधिक मजदूर प्रतिनिधियों/कार्यकर्ताओं ने शिरकत की. ऐक्टू के बैनर तले मजदूर कार्यकर्ताओं ने दिल्ली, पंजाब, उत्तराखंड, नोयडा, जम्मू-कश्मीर और रेलवे समेत विभिन्न सेक्टरों से शिरकत की.