कामरेड हरी सिंह को लाल सलाम!

मजदूरों के प्यारे नेता कामरेड हरी सिंह का 25 सितंबर 2019 को कानपुर के एक अस्पताल में निधन हो गया. वे 80 साल के थे. वे भाकपा-माले की उत्तर प्रदेश राज्य कमेटी के सदस्य और ऐक्टू के प्रदेश अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे. वे पिछले कुछ महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे. 

का. हरी सिंह का जन्म गोंडा जिले के शुकुलपुर गांव में हुआ था. ’60 के दशक में वे मजदूर नगरी कानपुर आये और लक्ष्मी रतन काटन मिल में बाइंडिग विभाग में नौकरी करने लगे. 1966 में मिल में हुई मजदूर हड़ताल में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1978 में वह भाकपा-माले के संपर्क में आए. 1980 में एचएमकेपी से जुड़ी यूनियन में रहते हुए उन्होंने ‘टेक्स्टाइल मजदूर एकता मंच’ का निर्माण किया जो बाद में ऐक्टू से संबद्ध हुई. यह ऐक्टू की पहली पंजीकृत यूनियन थी.  

का. हरी सिंह की पहचान कानपुर में एक जुझारू लोकप्रिय मजदूर नेता व प्रखर वक्ता के रूप में थी. विरोधी यूनियन के नेता भी उनका बहुत सम्मान करते थे. शहर में मजदूरों का कोई भी संघर्ष हो, वह हमेशा अपनी साइकिल से पहुंच कर मोर्चे पर डट जाया करते थे. ट्रेड यूनियन गतिविधियों में उम्र को उन्होंने कभी हावी नहीं होने दिया और सक्रियता जवानों जैसी थी. उनको जूनियर हाई स्कूल तक ही शिक्षा हासिल हो पायी थी, किंतु उनके संघर्ष व नेतृत्व क्षमता में यह कभी आड़े नहीं आई और वे ऐक्टू की उच्चतम कमेटी तक पंहुचे. वे 2002 में ऐक्टू के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष बने और तबसे मृत्यु पर्यंत जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहे. 

अपने प्रयासों से उन्होंने कई मजदूर यूनियनों को ऐक्टू से जोड़ा तथा ऐक्टू को विस्तार दिया. उत्तर प्रदेश में उन्होंने ऐक्टू को पहचान दिलायी. उनके अंदर शासक पक्षीय यूनियनों व कर्मचारी संगठनों के भीतर भी समर्थक तैयार करने व उन्हें गतिशील करने का अद्भुत कौशल था. ट्रेड यूनियन आंदोलन के अलावा, कानपुर में पार्टी व जन संगठनों के निर्माण और विस्तार में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सन 2000 में वह मिल से रिटायर हुए. लेकिन रिटायरमेंट के बाद वे और भी अधिक जोश एवं दृढ़ता के साथ मजदूर वर्ग के बीच ऐक्टू के विस्तार में लग गए. 2017 में पत्नी का. शारदा के निधन ने कुछ समय के लिए उन्हें प्रभावित किया, किंतु बाद में उन्होंने अपनी गतिशीलता को और बढ़ाकर उस कमी को पूरा करने की कोशिश की. मजदूर आन्दोलन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, उनका जुझारूपन, अन्तिम समय तक उनकी गतिशीलता नयी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेगी. 

कानपुर में 26 सितंबर को उनकी अंतिम यात्रा लक्ष्मीरतन कॉटन मिल कालोनी स्थित उनके घर से शुरू हुई. इसमें सैकड़ों की संख्या में ऐक्टू एवं भाकपा-माले कार्यकर्ता, विभिन्न ट्रेड यूनियनों के नेता, मजदूर, समर्थक, परिजन व महिलाएं शामिल थे. लोग हाथों में लाल झंडा लिये हुए और ‘हरी सिंह अमर रहें’, ‘आपके सपनों को मंजिल तक पंहुचायेंगें’, ‘मजदूर एकता जिन्दाबाद’ आदि नारे लगा रहे थे. कानपुर महानगर के मुख्य मार्गों से होते हुए शवयात्रा गंगा किनारे भैरव घाट विद्युत शवदाह गृह पंहुची. वहां सुपुर्दे-खाक से पहले शोक सभा हुई जिसमें तमाम लोगों ने अपने प्रिय नेता को श्रद्धा-सुमन अर्पित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी. 

शोक सभा को सीटू नेता अरविंद कुमार, एटक के जसर्रफ, राज्य कर्मचारी संगठन के नेता किशन लाल, सीपीआई नेता रामप्रसाद कनौजिया, भविष्य निधि संगठन के नेता उमेश शुक्ला, माले राज्य स्थायी समिति सदस्य रमेश सेंगर, अरुण कुमार व अफरोज आलम, राज्य कमेटी सदस्य राधेश्याम मौर्य, रामभरोस, वरिष्ठ माले नेता अवधेश कुमार, ऐक्टू राज्य सचिव डा. कमल उसरी, ऐक्टू नेता विजय विद्रोही व राम सिंह, राज्य के वरिष्ठतम ऐक्टू नेता अनंत राम वाजपेई, ऐपवा जिला संयोजिका शिवानी वर्मा, एडवोकेट अजय सिंह, असित कुमार, किसान नेता विजय सिंह आदि ने संबोधित किया. सभा का संचालन कानपुर के माले नेमा विजय कुमार ने किया. उनकी अंत्येष्टि बिजली शवदाह गृह में की गई.

आगामी 10 अक्टूबर को कानपुर में का. हरी सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए एक बड़ी शोकसभा होगी, जिसमें अन्य लोगों के अलावा भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य शिरकत करेंगे. इसी दिन देश के अन्य राज्यों में भी ऐक्टू शोक सभाओं का आयोजन करेगा. 

का. हरी सिंह का 25 सितंबर को जब देहांत हुआ, उस समय भाकपा-माले की केंद्रीय कमेटी की तीन दिवसीय बैठक राजस्थान के झुंझुनू में जारी थी, जिस कारण केंद्रीय कमेटी के कई सदस्य उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कानपुर नहीं पहुंच पाये. बैठक ने दो मिनट का मौन रख का. हरी सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की.