उत्तराखंड में आशा कर्मियों का आंदोलन

 

उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन (संबद्ध-ऐक्टू) ने विगत 9 अगस्त से 26 अगस्त तक ‘संगठित रहो-प्रतिरोध करो’ अभियान चलाया. 9 अगस्त को सभी जिला मुख्यालयों व प्रमुख केन्द्रों पर राज्य के मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजने के साथ यह अभियान शुरू हुआ. अभियान के समापन पर 26 अगस्त को विभिन्न जिला मुख्यालयों पर यूनियन के बैनर तले आशाकर्मियों ने जोरदार कार्यक्रम आयोजित किए. 

हल्द्वानी में महिला चिकित्सालय के सामने से उपजिलाधिकारी कार्यालय तक रैली निकाली गई. रैली को मुख्य रूप से यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल व महामंत्री डा. कैलाश पाण्डेय ने संबोधित किया. 

रुद्रपुर में गांधी पार्क में धरना दिया गया व कलेक्टरेट तक जुलूस निकालकर जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री के नाम विभिन्न मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा गया. यहां गांधी पार्क में हुई सभा को संबोधित करते हुए ऐक्टू के प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह ने कहा कि दुबारा केंद्र में आते ही मोदी सरकार ने निजीकरण का बुलडोजर चला दिया है. जिस तरह से रेलवे, रक्षा, बीमा, बैंक में तेजी से निजीकरण हो रहा है, यह साफ हो गया है कि यह सरकार पूरी तरह से मजदूर विरोधी और पूंजीपतियों की सरकार है. इस सरकार की नीतियों के तहत भाजपा की प्रदेश सरकार भी स्वास्थ्य के निजीकरण की ओर तेजी से बढ़ रही है. आयुष्मान योजना के पक्ष में बड़ी-बड़ी डींगे हांकने वाली भाजपा सरकार की यह योजना फेल हो चुकी है. इस योजना के तहत नाम मात्र लोगों को इलाज मिल पा रहा है. सरकारी अस्पताल, अस्पताल भवन, चिकित्सा उपकरण, स्थाई कर्मियों की व्यवस्था करवाने के बजाय आयुष्मान योजना के तहत सारा पैसा कॉरपोरेट बीमा कंपनियों को दे दिया गया है. 

सभा को यूनियन की प्रदेश उपाध्यक्ष रीता कश्यप ने संबोधित करते हुए आंध्र प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी आशा कर्मियों को दस हजार रुपए मासिक मानदेय देने का मांग की. सभा को यूनियन की जिला अध्यक्ष ममता पानू और भाकपा-माले के जिला सचिव आनंद नेगी ने भी संबोधित किया. पिथौरागढ़ में जिलाध्यक्ष इंद्रा देउपा, डीडीहाट में पिंकी, लोहाघाट में चम्पावत जिलाध्यक्ष सरस्वती पुनेठा, रानीखेत-ताडीखेत में मीना आर्य व कमला जोशी, नैनीताल में दुर्गा टम्टा व भगवती बोरा, टनकपुर में लीला ठाकुर, द्वाराहाट में ललिता मठपाल, सल्ट में देवकी, भिक्यासैन में हेमलता व सरस्वती मेहता, स्याल्दे में धना कत्यूरा, अल्मोड़ा में पूजा बगडवाल, धारी-ओखलकांडा में देवकी भट्ट व मुन्नी बिष्ट, बेतालघाट में विमला उप्रेती के नेतृत्व में आशाओं ने प्रदर्शन किया. इन कार्यक्रमों की सफलता से राज्य की आशा कर्मियों में नया उत्साह पैदा हुआ है.

इन तमाम कार्यक्रमों के माध्यम से आशाओं ने सरकार को चेतावनी दी कि यदि मांगों का न्यायसंगत समाधान नहीं किया गया तो आन्दोलन को और अधिक तेज़ किया जायेगा. 

आशा नेताओं ने कहाः 


कमला कुंजवाल (उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष) 

‘‘लंबे समय से न्यूनतम वेतन के लिए संघर्ष कर रही आशाओं को मासिक वेतन के नाम पर एक रुपया भी नहीं मिल रहा है. आशाओं की नियुक्ति मातृ-शिशु मृत्यु दर कम करने के लिए की गई थी. सरकारी रिपोर्ट इस बात की गवाह हैं कि आशाएं अपने काम में सफल रही हैं. इसका इनाम उनपर काम का बोझ लादकर दिया गया है, लेकिन मासिक वेतन देने के नाम पर मोदी सरकार को सांप सूंघ जाता है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का बजट कम करके मोदी सरकार ने आशाओं के लिए और संकट पैदा कर दिया है और जनस्वास्थ्य की अवधारणा को पूरी तरह खंडित कर दिया है.’’

कैलाश पाण्डेय, प्रदेश महामंत्री

‘‘आशाओं ने अब तक जो भी हासिल किया है वह संघर्ष के बल पर किया है. आगे भी संगठन की मजबूती और संघर्ष का जज्बा ही नयी जीत दिलायेगा. जैसे आंध्र प्रदेश की आशाओं ने लड़कर वहां की राज्य सरकार को दस हजार रुपए मासिक मानदेय देने को बाध्य किया है वैसे ही संघर्ष की उत्तराखंड में भी जरूरत है. महिला सशक्तिकरण पर अरबों रुपए विज्ञापन के नाम पर खर्च करने वाली सरकारों द्वारा महिला श्रम का इस तरह का शोषण बेहद शर्मनाक है.’’