सार्विक बुनियादी आय: अगला जुमला

2014 में मोदी ने अपने भाषणों में कहा था कि वे हर गरीब भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रुपये जमा कराने की गारंटी करेंगे. अमित शाह ने बेशर्मी के साथ कहा यह ‘महज जुमला’ था.

2019 का संसदीय चुनाव निकट आने के साथ ही अटकलें लगनी शुरू हो गई हैं कि इस संसद के अंतिम बजट सत्र में मोदी अपनी झोली से क्या निकालने वाले हैं.

सबसे ताजे जुमले का बाजार गर्म है कि चुनाव के ठीक पूर्व ‘सार्विक बुनियादी आय’ (युनिवर्सल बेसिक इंकम-यूबीआई) योजना शुरू की जाएगी जिससे हर निम्नवर्गीय भारतीय के लिये एक छोटी नगद राशि (15 लाख रुपया नहीं) की गारंटी की जाएगी. बहरहाल, अभी यह देखना बाकी है कि यह तोहफा देने की क्या योजना बनाई जा रही है.

मोदी के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमनियन ने यूबीआई स्कीम की रूपरेखा बनाई थी. उन्होंने साफ कहा था कि केंद्र व राज्य सरकारों की मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं की ‘जगह लेने के लिए’ इस स्कीम की परिकल्पना की गई है. 2019 के पहले यह बदलाव किया जाए या न किया जाए; यह तो स्पष्ट है कि यूबीआई की बुनियादी अवधारणा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिये राशन और अन्य प्रणालियों का विकल्प तैयार करना है. इन योजनाओं में मौजूद ‘छिद्रों’ को खत्म करने और ‘लक्षित आबादी’ का विस्तार करने के नाम पर यूबीआई को एक समाधान के बतौर सोचा जा रहा है. वस्तुतः, ‘छिद्रों’ को खत्म करने और ‘लक्षित आबादी’ का विस्तार करने के नाम पर ही कल्याणकारी योजनाओं से गरीबों को बाहर निकालने के लिए ‘आधार’ और ‘बीपीएल’ सूची का इस्तेमाल किया जा रहा है; और साथ ही, सरकार लंबे समय से अनाज के बदले नगद राशि देने का प्रस्ताव करती आ रही है.

फायनांशियल एक्सप्रेस में प्रकाशित एक आलेख में विपुल शर्मा ने अनुमान लगाया है कि यह यूबीआई मोदी सरकार के लिए ‘ब्रह्मास्त्र.... साबित हो सकता है, और उन्होंने यह भी गणना की है कि इस जादू की छड़ी को घुमाने के लिए जरूरी फंड कैसे तैयार किया जा सकता है. इस लेखक ने सुझाया है कि ‘अगर उर्वरकों और पेट्रोलियम उत्पादों पर से सब्सिडी को खत्म कर दिया जाए तो 100,000 करोड़ रुपया विमुक्त किया जा सकता है, जबकि ‘मनरेगा’ के बजट को आधा करने पर इस फंड में और 25,000 करोड़ रुपये आ जाएंगे. शेष जरूरी 50,000 करोड़ रुपये सार्वजनिक उद्यमों के अतिरिक्त विनिवेश के जरिये हासिल किए जा सकते हैं.’ इस प्रकार, यूबीआई को ऐसे तोहफे के बतौर देखा जा सकता है जो अंततः राशन के बदले अनाज योजना को स्थापित कर देगा - कई वजहों से यह एक खतरनाक कदम होगा, जिसके बारे में ‘भोजन अधिकार’ कार्यकर्ता कई बार व्याख्या करते रहे हैं.

लेकिन यह सवाल भी उठता है - जब प्रधान मंत्री ने संसद में ‘यूपीए की असफलता की जीवंत निशानी’ कहकर मनरेगा का मखौल उड़ाया था, तो वे ही अब यूबीआई के बारे में क्यों सोच-विचार कर रहे हैं? आखिरकार, मनरेगा भी तो यूबीआई का ही एक रूप है. क्या मोदी ने यह दावा नहीं किया था कि ‘केवल जेब भरने’ के बजाय, उनका ‘स्किल इंडिया’ आत्म-निर्भरता पैदा करेगा? अब यूबीआई स्कीम की घोषणा करना स्किल इंडिया की पूर्ण विफलता को स्वीकार करना ही तो होगा. और फिर यह उस शख्स का बिल्कुल उलटा घूमना भी होगा जो हमेशा हर कल्याणकारी योजना का मखौल उड़ाते रहते हैं.

सितंबर 2014 में अपने जन्मदिन के मौके पर प्रधान मंत्री मोदी ने कहा था, ‘हमारे दुर्भाग्य से हमारे देश में चलने वाली योजनाएं और कार्यक्रम ऐसे हैं कि जिससे गरीब लोगों को आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाने के बजाय उन्हें सरकार पर निर्भर बना दिया जाता है. अगर सरकारी कार्यक्रम रुक जाएं, तो गरीब लोग भूख से मर जाएंगे. इसके बजाय हम आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना चाहते हैं.’ अपने पांच साल के शासन - जिसमें उन्होंने ‘अच्छे दिन’ का वादा किया था - के अंत में मोदी अब हताश होकर किसानों को नगदी राहत और यूबीआई स्कीम के बारे में विचार कर रहे हैं, जिसके जरिये ठीक वही काम किया जाएगा जिसकी वे तब खिल्ली उड़ाया करते थे जब उनके पूर्ववर्ती शासक यही कुछ करते थे!

इसके अलावा, हमें सरकार से यह भी पूछना होगा कि जब वह वेतनभोगी श्रमिकों को 18,000 रुपया प्रति माह की न्यूनतम मजदूरी भी नहीं देना चाहती है, और वस्तुतः विशाल संख्या में सरकारी कर्मियों को वेतनभोगी श्रमिकों का दर्जा देने से इनकार करती है, तो क्या वह गैर-वेतनभोगी श्रमिकों समेत हर भारतीय को यूबीआई का लाभ देने के प्रति सचमुच गंभीर है?

सरकार को सबसे पहले तो स्कीम वर्करों को न्यूनतम मजदूरी देनी चाहिए और उन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देना चाहिए; सब के लिए 18,000 रुपये की न्यूनतम मजदूरी की गारंटी करनी चाहिए; सबको वृद्धावस्था पेंशन देना चाहिए (पेंशन भी आखिरकार उस आमदनी का ही हिस्सा है जो एक वृद्ध व्यक्ति ने अपनी पूरी कार्यावस्था के दौरान कमाई है); और हर प्रजनन के लिए मातृत्व लाभ का सार्विक भुगतान सुनिश्चित करना चाहिए तथा मनरेगा रोजगार देने में विफलता के एवज में सार्विक राशन तथा बेरोजगारी भत्ता की गारंटी करनी चाहिए. इसके बिना, यूबीआई की सारी चर्चा खोखली और पूर्णतः नाभरोसेमंद है.

मोदी शासन काल के बिल्कुल अंत में सरकार द्वारा हताशा-भरी आशा में वोटरों को लुभाने के लिए फेंके गए टुकड़े के बारे में भारतीयों को सचेत हो जाना चाहिए. इसी के जरिये वह वोटरों को किसी तरह से प्रलोभित कर फिर एक बार शासन में आने और उन्हें पुनः ठगने की योजना बना रही है. वोटरों को मोदी से पूछना चाहियेः सिर्फ टुकड़ा ही क्यों, वह पूरी रोटी कहां है जो हमें चाहिये? कहां है वह सम्मानजनक रोजगार, जीने लायक मजदूरी और खाद्यान्न राशन?