राष्ट्रीय कन्वेंशन में जंतर मंतर पर जुटे देश भर के सफाई कर्मचारी

बहुत हुआ मोदी के स्वच्छ भारत का जुमला, मैला ढोने की प्रथा खत्म करो, सफाई कर्मियों को अधिकार और सम्मान सुनिश्चित करो!

कुछ ही दिन पहले की बात है जब बिहार के दो सफाई कर्मी, विकास पासवान और दिनेश पासवान, की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में एक सीवेज टैंक की सफाई करते हुए जहरीली गैस से दम घुटने से मौत हो गई थी. उस इलाके का सीवेज टैंक दीनापुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जुड़ा हुआ था जिसका इन दर्दनाक मौतों के दो ही दिन बाद मोदी ने उद्घाटन किया था. प्रधानमंत्री के मुंह से इन सफाई कर्मियों के लिए एक शब्द तक नहीं निकला, क्या यही है मोदी के स्वच्छ भारत का असल चेहरा?

देश की सीवेज प्रणाली ने हजारों मजदूरों की जान ले ली है. ये दुर्घटनाएं नहीं बल्कि सरकारों और निजी ठेकेदारों के गठजोड़ के हाथों संस्थाबद्ध हत्याएं हैं. विडंबना यह है कि जब से प्रधानमंत्री मोदी की सबसे आडंबरपूर्ण योजना ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की 2014 से शुरूआत हुई है, सैकड़ों सफाई मजदूर सीवरों व गटरों की भेंट चढ़ चुके हैं. ‘‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के सर्वे के अनुसार देश में हर तीसरे दिन एक सफाई मजदूर मारा जाता है. खुद सरकारी आंकड़ा कहता है कि अकेले 2017 में सीवरों की सफाई में 300 से अधिक सफाई कर्मी मारे गये. देश की राजधानी दिल्ली में इस वर्ष सितंबर-अक्टूबर के बीच इस काम में 7 नौजवान सफाई मजदूर मारे गये. दिल्ली के तीन निगमों (जो भाजपा के अधीन हैं) के आंकड़े बताते हैं कि यहां पिछले पांच वर्षों में 2,403 सफाई मजदूर 60 साल के होने से पहले ही मर गये. 97 मैला ढोने वाले मजदूरों की मौत के 51 मामलों की जांच में ये सामने आया कि 65 प्रतिशत मामलों में एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती, और इन सबमें सिर्फ एक मामले में गिरफ्तारी हुई है.  

लेकिन मोदी का ‘स्वच्छ भारत अभियान’ इन मौतों और सफाई मजदूरों की इस दुर्दशा के बारे में एक शब्द नहीं कहता है. पिछले चार सालों में मोदी सरकार ने मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए एक पाई तक जारी नहीं की है. जबकि 2014 से लेकर 2017 तक के स्वच्छ भारत अभियान के प्रचार में अब तक 530 करोड़ रुपये स्वाहा किए जा चुके हैं.
बल्कि ठीक उलट, सफाई मजदूरों की इन मौतों और दुर्दशा की खिल्ली उड़ाते हुए मोदी जी ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को और चमकदार बनाते हुए ‘स्वच्छता ही सेवा अभियान’ का नया नाम देते हैं.

असल में तो ‘स्वच्छ भारत अभियान’ सिर्फ दिखावा, एक और जुमला निकला जिसे चकाचौंध के साथ पेश किया गया है और असलियत में यह जमीनी मुद्दों से कोसों परे है. शौचालयों का निर्माण करना सिर्फ लोगों के व्यवहार में बदलाव लाने की ही बात नहीं है बल्कि यह सीधे तौर पर समाज में जाति आधारित भेदभाव और आर्थिक विषमता से जुड़ा हुआ मामला है. इन दो मूल मुद्दों पर बात किए बिना, ऐसा भारत बनाया ही नहीं जा सकता जो स्वच्छ हो. स्वच्छ भारत अभियान ने सिर्फ हाथ से मैला ढोने की प्रथा को संस्थाबद्ध करने का काम किया है.
लेकिन सफाई मजदूरों का संघर्ष जारी है और अपनी आवाज उठाने के लिये वे देश की राजधानी पहुंचे. 16 नवम्बर 2018 को देश भर के सफाई कर्मचारियों ने नई दिल्ली के जंतर मंतर पर ‘स्वच्छ भारत अभियान का जुमला और सफाई मजदूरों की दुर्दशा’ विषय पर राष्ट्रीय कन्वेंशन का आयोजन किया. इसमें कर्नाटक, छत्तीसगढ़, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली सहित अन्य राज्यों से सफाई कर्मचारियों ने भागीदारी की जिसमें महिला कर्मियों की उपस्थिति उल्लेखनीय थी. यह कन्वेंशन ऐक्टू और ऑल इंडिया म्युनिसिपल वर्कर्स फेडरेशन के बैनर तले आयोजित हुआ था.

सफाई कर्मचारियों के समर्थन में भाकपा-माले के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कन्वेंशन को संबोधित किया. जानी-मानी पत्रकार भाषा सिंह, जिन्होंने सफाई कर्मचारियों की स्थितियों पर महत्वपूर्ण काम किया है, ने भी कन्वेंशन अपनी बात रखते हुए कहा कि मैं सफाई कर्मचारियों के मुद्दों और उनकी मांगों को सामने लाने और इस कन्वेंशन के जरिये इन्हें राजनीतिक मुद्दा बनाने के लिए ऐक्टू को बधाई देती हूं. आज लगभग हर दिन सीवरों और गड्ढों में सफाई कर्मचारियों की मौत हो रही है लेकिन इन मौतों को रोकने की कोई योजना न तो केन्द्र सरकार के पास है और न ही किसी राज्य सरकार के पास.

 ऐक्टू की जेएनयू इकाई की अध्यक्ष उर्मिला चौहान, बीबीएमपी गुट्टिगे पौराकर्मिकार संघ की महासचिव निर्मला, उड़ीसा के आंगुल जिला सफाई कर्मचारी संघ के मिथुन जेना, ऑल इंडिया म्युनिसिपल वर्कर्स फेडरेशन के महासचिव श्याम लाल प्रसाद, फेडरेशन के अध्यक्ष एवं पुणे महानगर पालिका कामगार यूनियन के अध्यक्ष उदय भट्ट, बिहार से नगर निगम नेता मुख्तार अहमद खां एवं राम जतन प्रसाद, छत्तीसगढ़ से सफाई कर्मी नेता मनोज कोसरे मोत्तम देवी, इलाहाबाद, उ. प्र. से सफाई कर्मी धर्मेन्द्र कन्वेंशन के मुख्य वक्ता थे. क्लिफ्टन डी’ रोज़ारियो ने कन्वेंशन का संचालन किया और उसकी विषयवस्तु को रखा. सांस्कृतिक संगठन ‘संगवारी’ ने क्रांतिकारी गीत पेश किए.

कन्वेंशन इन प्रस्तावों के साथ समाप्त हुआ कि मोदी के स्वच्छ भारत के जुमले का देश भर में व्यापक अभियान चलाकर और विभिन्न राज्यों में विभिन्न रूपों में कार्यक्रम आयोजित कर पर्दाफाश किया जायेगा; और 8 और 9 जनवरी 2019 को केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाई गई दो दिन की हड़ताल में सफाई कर्मचारी पूरी ताकत के साथ भागीदारी करेंगे एवं हड़ताल को सफल करेंगे.

मोदी के स्वच्छ भारत के जुमले के क्रूर पाखंड के खिलाफ सफाई कर्मियों के संघर्ष को जारी रखने के संकल्प को बुलंद करते करते हुए बंगलौर की एक महिला सफाई कर्मी रंगम्मा ने कहा ‘‘श्रीमान मोदी, आप नाटक और वोट के लिये हाथ में झाड़ू लेकर अपनी फोटो खिंचवाते हैं, और हम असल में सफाई करते हैं. हम तुम्हें जरूर सबक सिखायेंगे.


सफाई कर्मियों के संघर्षों से कुछ आवाजें

निर्मला, बंगलौर महानगरपालिका यूनियन बीबीएमपी गुट्टिगे पौराकर्मिकार संघ की महासचिव

उन्होंने कहा कि कर्नाटक में 15 साल की लंबी लड़ाई के बाद ठेकेदारों के जरिये सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति समाप्त हुई. ठेकेदार महिला सफाई कर्मचारियों का यौन शोषण भी करते थे. हमारे आंदोलन के बाद नगर निगम सफाई कर्मचारियों की सीधी भर्ती करने लगा है. लेकिन आज भी सफाई कर्मचारियों को जाति के कारण भेदभाव झेलना पड़ता है. सामाजिक सम्मान के लिए हमारी लड़ाई जारी है.

मोतम देवी, सफाई कर्मी, भिलाई छत्तीसगढ़

मोदी का स्वच्छ भारत सिर्फ सजावटी पोस्टरों और बड़े बैनरों तक ही सीमित है. हमें इससे क्या मिला? हमें सिर्फ 6000 रु. पगार मिलती है, हमें बिना जूतों, मास्क, और दस्तानों के काम करना पड़ता है. अगर सफाई का काम करते हुए जूते चाहिए, तो उसके लिए अपने पैसे खर्च करना पड़ते हैं. सफाई के काम के लिए कोई आधुनिक मशीन तक नहीं है. सरकार स्वच्छ भारत के विज्ञापन पर करोड़ों रुपये खर्च करती है, सफाई के काम की मूलभूत जरूरतों के लिए उसके पास पैसा नहीं है?

धर्मेन्द्र इलाहाबाद, उ. प्र.

मैं पिछले 25 सालों से सफाई कर्मी का काम कर रहा हूं. हमें कोई मेडिकल सुविधा नहीं मिलती. मैंने अपने कई साथियों को सीवर में खोया है, उनकी लाश तक नहीं मिलती. अब ये स्वच्छ भारत का क्या ड्रामा है? ये सिर्फ राजनेताओं और बड़े लोगों की फोटो खिंचवाने की लालसा के अलावा कुछ नहीं है. मोदी और योगी को हमारी जान की कोई परवाह नहीं है.

उर्मिला, अध्यक्ष, ऑल इंडिया जनरल कामगार यूनियन, जेएनयू, जो खुद भी सफाई कर्मचारी हैं.

उन्होंने कहा कि जेएनयू में दिसंबर 2014 में यूनियन के बैनर से हमने लम्बा संघर्ष चलाया ताकि किसी सफाई कर्मचारी को सीवर में न उतरना पड़े और जानवरों की लाशें न उठानी पड़ें. हमने जेएनयू प्रशासन को मजबूर किया कि वो ये सर्कुलर लाये कि जेएनयू कैंपस में कोई मजदूर सीवर के अंदर नहीं घुसेगा. जेएनयू में हमारे साथ काम करने वाले लोगों में से तीन लोगों की मौत सफाई का काम करने के दौरान हुई बीमारियों के कारण हो गई. जब गर्भवती होने की वजह से एक सैनीटेशन सुपरवाइज़र को काम से निकाल दिया गया तो हमने एकजुट होकर संघर्ष किया और 15 दिनों तक प्रशासनिक भवन पर हमारा प्रदर्शन चला. उसके बाद उसे वापस काम पर रखा गया और हमने ये सुनिश्चित किया कि कैम्पस में सभी कर्मियों के मेटरनिटी लीव की सुविधा मिले. हमने बीमारी के बावजूद बहुत ही बुरे हालात में काम करने की मजबूरी के चलते अपने कई साथियों को खोया है, लेकिन हमारा संघर्ष जारी है.

राम जतन प्रसाद, पटना नगर निगम सफाई कर्मचारी यूनियन, बिहार

मई 2017 में, पटना म्युनिसिपल कारपोरेशन के दो कर्मी, जितेन्द्र पासवान और दीपक चौधरी, की एक मेनहोल की सफाई के दौरान दम घुटने से मौत हो गई थी. म्युनिसिपल कारपोरेशन मेनहोल साफ करने के लिए कोई सुरक्षा उपकरण नहीं देता. सारे सुरक्षा मानकों का खुलेआम उल्लंघन होता है. लेकिन हमारी यूनियन ने संघर्ष किया और अनुदान राशि और परिवार के सदस्य के लिए स्थाई नौकरी हासिल की.