देशभर के मिड-डे मील कर्मियों का संसद के समक्ष विशाल प्रदर्शन 1000 में दम नहीं, 18000 से कम नहीं!

 

मिड-डे मील कर्मियों के संघर्षों से कुछ आवाजें

झारखंड की मिड-डे मील कर्मी सोनिया देवी ने बताया कि किस तरह से वे अपने हक़ के लिए संघर्ष कर रहे थे, तब झारखंड की भाजपा सरकार ने महिला कर्मियों के साथ ऐसा व्यवहार किया जो आप किसी सभ्य समाज में सोच भी नहीं सकते हैं. उन्होंने हमारी महिला साथियों के साथ न केवल मारपीट की, बल्कि उनसे जेल के शौचालय तक साफ कराए. कई कर्मियों के वस्त्र निकालकर भी पीटा गया. ये सब वो सरकार कर रही है, जो बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का नारा देती है, दूसरी तरफ महिलाओं को नग्न कर पीटती है.

बिहार के मोतिहारी से आई मिड-डे मील कर्मी ने अपनी व्यथा बताते हुए कहा ‘‘रसोइया कर्मचारी स्कूल खुलने से पहले आते हैं और स्कूल बंद होने के बाद जाते हैं. हमारा काम सिर्फ स्कूल के बच्चों के लिए दोपहर का भोजन बनाने का है परन्तु हम स्कूल में झाड़ू लगाने के साथ ही शौचालय भी साफ करते हैं. कई बार हमारे साथ स्कूल के अध्यापक गलत व्यवहार करते हैं. और हमें इस सबके बदले मिलता क्या है, केवल एक हज़ार रुपये मासिक मानदेय, वो भी कई माह के अंतराल पर.”

आज, मिड-डे मील (एमडीएम) स्कीम के तहत पूरे देश भर के बारह लाख पैंसठ हजार स्कूलों के तकरीबन 12 करोड़ बच्चों को भोजन मिलता है. जाहिर है, मिड-डे मील ने न सिर्फ बच्चों में पोषण के स्तर को बेहतर किया है बल्कि बच्चों को स्कूल आने का प्रोत्साहन भी मिला है. लेकिन हम अकसर ये भूल जाते हैं कि इस वृहत काम को कौन अंजाम देता है - जी हां - 26 लाख मिड-डे मील कर्मचारी (कुक एवं हेल्पर). इनमें से 98 प्रतिशत मिड-डे मील कर्मचारी महिलाएं हैं और इनमें से ज्यादातर महिलाएं समाज के सबसे हाशिए वाले हिस्से से आती हैं. ये मिड-डे मील कर्मचारी बहुत ही मेहनत का काम करती हैं, कई बार तो इन्हें दिन में आठ घंटे से ज्यादा काम करना पड़ता है, जिसमें खाना बनाना, उसे बांटना, बर्तन और जगह की सफाई करना शामिल होता है. लेकिन इस राष्ट्रीय योजना का मामला ये है कि मिड-डे मील कर्मचारियों को कर्मचारी तक नहीं माना जाता! उन्हें न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जाता, उन्हें कोई सामाजिक सुरक्षा लाभ नहीं मिलता. उन्हें साल में सिर्फ दस महीने वेतन दिया जाता है, और वो भी सिर्फ 1000 रु प्रतिमाह.

छपते-छपते

1 दिसंबर से आशाओं की अनिश्चितकालीन संयुक्त हड़ताल शुरू हो गयी है. सुबह से ही आशाओं ने रोहतास, भभुआ, नौबतपुर, बिहटा, मोतिहारी, मुज़फ़्फ़रपुर, नवादा, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मुंगेर, भागलपुर समेत पूरे राज्य में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को ठप कर दिया है. आपातकालीन सेवा को छोड़कर सारे कामकाज ठप हैं. बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (सम्बद्ध गोप गुट-ऐक्टू) और संयुक्त अभियान समिति की नेत्री शशि यादव ने जारी बयान में कहा है कि हड़ताल की जबरदस्त शुरुआत हुई है और 50 हज़ार से ज्यादा आशाओं की प्रत्यक्ष भागीदारी है. अभी यह भागीदारी और बढ़ेगी. 5 दिसंबर को होने वाला टीकाकरण पूरी तरह से ठप होगा. उन्होंने कहा है कि आशाएं न टीकाकरण करेंगी और न करने देंगी. इस हड़ताल को अन्य स्कीम कर्मियों का भी जबरदस्त समर्थन मिल रहा है.

 

अभी तो मोदी सरकार ने मिड-डे मील योजना के बजट में भारी कटौती कर दी है. कई राज्यों में तो योजना का खुले आम निजीकरण कर दिया गया है, सरकारों ने इसे वेदांता जैसे कॉरपोरेट्स को सौंप दिया है. अभी हाल ही में आशा और आंगनबाड़ी कर्मचारियों के पारिश्रमिक में नाममात्र की बढ़ोतरी की गई है. लेकिन 26 लाख मिड-डे मील कर्मचारियों के मामले पर मोदी सरकार बिल्कुल चुप बैठी है.

19 नवम्बर 2018 को देशभर के मिड-डे मील कर्मी अपनी काम की परिस्थितियों और वेतन के सम्बन्ध में मोदी सरकार के निष्क्रिय रवैये का विरोध करने के लिए जंतर मंतर पर इकट्ठा हुए. बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों से कर्मचारियों ने अपनी मांगों के साथ इस प्रदर्शन में भागीदारी की. ऐक्टू, एटक और सीटू समेत अन्य केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने इस कार्यक्रम में भागीदारी की. उन्होंने मौजूदा वेतन 1250 प्रति माह से बढ़ाकर 18,000 प्रति माह करने की मांग की.
इस विरोध प्रदर्शन को समर्थन देते हुए सीपीआई के सांसद डी. राजा और जेएनयूएसयू के अध्यक्ष एन. साई बालाजी ने संबोधित किया. विभिन्न ट्रेड यूनियनों के नेताओं ने भी कार्यक्रम में अपनी बात रखी.

बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ (संबद्ध-ऐक्टू) की नेता सरोज चौबे ने प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा कि बिहार राज्य सरकार मिड-डे मील कर्मियों की मांगों को सुनने के बजाय केंद्र के नक्शे कदम पर चल रही है. जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है, उन्होंने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के बजट में लगातार कटौती की है. सरकार ने कर्मचारियों की मेहनत की कमाई से सिर्फ कॉरपोरेट पूंजीपतियों की मदद की है. उन्होंने कहा हमारी यूनियन ने हाल ही में एक पांच दिवसीय सफ़ल हड़ताल का आयोजन किया, फिर भी राज्य और केंद्र सरकार के रवैये में कोई फर्क नहीं आया और इसलिए आज हम दिल्ली में इकट्ठा हुए हैं. ऐक्टू से जुड़े ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन और झारखंड की मिड-डे मील कर्मी नेता गीता मंडल ने कहा, ‘केंद्र सरकार सिर्फ 1250 रुपये ही देती है जो कि शोषण है और हम मांग करते हैं कि न्यूनतम 18,000 रुपये दिए जाएं. लगभग सभी मिड-डे मील कर्मचारी महिलाएं हैं और सरकार को उनके सुरक्षित और सम्मानजनक रोजगार की व्यवस्था करनी चाहिए. उन्होंने झारखंड में मिड-डे मील कर्मियों के आंदोलन पर चल रहे सरकारी दमन के मामले को जोरदार ढंग से उठाया.

मिड-डे मील कर्मियों की मांगों का एक ज्ञापन वित्त मंत्री, अरुण जेटली को सौंपा गया. इस प्रदर्शन में यह भी तय किया गया कि 8-9 जनवरी 2019 को होने वाली केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की दो-दिवसीय हड़ताल में मिड-डे मील कर्मचारी जोर-शोर से हिस्सा लेंगे.

मिड-डे मील कर्मचारियों की मांगे

  • मिड डे मील कर्मचारियों के वेतन में फौरन बढ़ोतरी कर उसे न्यूनतम वेतन 18000 रु. प्रतिमाह किया जाए.
  • स्कीम कर्मियों के मामले में 45वीं और 46वीं आइएलसी (भारतीय श्रम सम्मेलन) की सिफारिशों को लागू किया जाएः
    • क   उन्हें श्रमिक के तौर पर मान्यता दी जाए,
    • ख    सभी मिड-डे मील कर्मियों को न्यूनतम वेतन 18000 रु. प्रतिमाह से कम ना दिया जाए, और ये साल में बारह महीने दिया जाए.
    • ग.    सभी मिड-डे मील कर्मियों को सामाजिक सुरक्षा लाभ जैसे 3000 रु प्रतिमाह पेंशन, ग्रेच्युटी, प्रोविडेंट फंड, मेडिकल सुविधाएं, ईएसआइसी आदि उपलब्ध करवाया जाए.
  • मिड-डे मील कर्मचारियों को चीथी श्रेणी के स्कूल कर्मचारी के तौर पर मान्यता दी जाए.
  • वर्तमान के कार्यरत मिड-डे मील कर्मचारियों की छंटनी ना हो. जिन कर्मचारियों की छंटनी की गई है उन्हें वापस काम पर रखा जाए, सभी मिड-डे मील कर्मचारियों को नियुक्ति पत्र और पहचान पत्र जारी किया जाए. पूरे देश में सेवा शर्तें समान हों, और समान तौर पर लागू हों.
  • 12वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत लाया जाए और इसी तरह मिड-डे मील योजना को सभी स्कूलों में लागू किया जाए. हर स्कूल में कम से कम दो मिड-डे मील कर्मचारियों को नियुक्त किया जाए.
  • सभी स्कूलों में समुचित मूलभूत सुविधाएं जैसे किचन शेड, भंडार की जगह और पीने का साफ पानी उपलब्ध करवाया जाना चाहिए. खाना पकाने के लिए कुकिंग गैस उपलब्ध करवाई जाए. खाना पकाने और सब्जियों के खर्च को प्रति बच्चा 25 रु. प्रति दिन तक बढ़ाया जाए.
  • मिड-डे मील कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए और उनका मेडिकल बीमा किया जाए. किसी दुर्घटना के मामले में 5 लाख रु. का अनुदान उपलब्ध कराया जाए.
  • मिड-डे मील कर्मचारियों को 180 दिन का वैतनिक मातृत्व अवकाश उपलब्ध कराया जाए.
  • ज़िला और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण के लिए शिकायत निवारण समिति का गठन किया जाए.
  • मिड-डे मील कर्मचारियों को हर साल दो ड्रेस और वाशिंग अलांउस मिलना चाहिए.
  • मिड-डे मील योजना के लिए समुचित बजट आबंटित किया जाए.
  • मिड-डे मील योजना का किसी भी रूप में निजीकरण नहीं होना चाहिए. मिड-डे मील के लिए कोई केन्द्रीय रसोई नही होनी चाहिए. ु