सफल रही बिहार में रसोइयों की पांच दिवसीय हड़ताल

19 नवंबर को संसद के समक्ष संयुक्त प्रदर्शन को सफल करने का आहृान

‘बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ’ (संबद्ध ऐक्टू) के नेतृत्व में पांच दिवसीय हड़ताल (5-9 अक्टूबर 2018) को जबरदस्त सफलता मिली. स्वतःस्फूर्त रूप से रसोइयों ने इसमें भागीदारी की. हड़ताल की मुख्य मांगें थीं - रसोइयों को सरकारी कर्मचारी घोषित करो, जब तक सरकारी कर्मचारी घोषित नहीं होती हैं मानदेय 18000 रुपये करो; रसोइयों को बिहार सरकार की चौधरी कमेटी की सिफारिशों का लाभ दो; ईपीएपफ-ईएसआई का लाभ दो; पूरे साल के मानदेय का भुगतान किया जाए, मानदेय का भुगतान नियमित किया जाए; उन्हें पार्ट-टाइम वर्कर न कहा जाए आदि. इन मांगों से संबंधित 23-सूत्री मांगपत्र प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को संप्रेषित किया गया. हड़ताल के क्रम में 5-6 अक्टूबर को प्रखंड/अनुमंडल/जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन करके भी प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा गया था. 7 अक्टूबर को हर जिले में मशाल जुलूस निकाला गया और 8-9 अक्टूबर को गर्दनीबाग, पटना में एक बड़ा धरना दिया गया.

इस हड़ताल की विशेषता यह रही कि यूनियन के बाहर के दायरे से भी रसोइया लोगों ने इसमें भाग लिया. दूसरे रसोइया संगठनों से भी रसोइयों ने इन कार्यक्रमों में भाग लिया. ये मांगें 2015 में यूनियन गठन के समय से ही जिला व राज्य स्तर पर कई बार उठाई जा रही हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय दोगुना और आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका का मानदेय डेढ़ गुना करने की घोषणा करने, लेकिन रसोइयों को एक पैसे का भी अतिरिक्त लाभ नहीं दिये जाने जैसे विभाजनकारी कदम के खिलाफ आक्रोश जताते हुए 14-15 सितंबर को ‘विश्वासघात दिवस’ मनाकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया और पांच-दिवसीय हड़ताल का आहृान किया. इस तरह दरअसल, प्रधानमंत्री ने स्कीम वर्करों की एकता तोड़ने की कोशिश की है. इससे रसोइयों में पहले से ही व्याप्त आक्रोश और बढ़ गया. कम समय की तैयारी के बावजूद हड़ताल बेहद सफल रही.

सरकार ने रसोइयों की मांगों पर विचार करने के बजाय सर्कुलर जारी करके मिड-डे भोजन बाधित न करने का निर्देश जिलों में भिजवा दिया. इसका और भी विपरीत असर हुआ, और कई जिलों में शिक्षक संगठनों ने भी सोशल मीडिया के जरिये इस हड़ताल के समर्थन में संदेश प्रसारित कर दिये और कुछ जगहों पर तो उन्होंने रसोइयों को संगठित करके पटना भी भेजा - भागलपुर, भोजपुर, अरवल ऐसे ही जिले हैं. अरवल में पहले रसोइयों का एक सम्मेलन हुआ था, बाद में वहां संगठन बिखर गया; लेकिन वहां उन्हें पुनः संगठित करके हड़ताल सफल की गई. भागलपुर में तो रसोइया संघ था ही नहीं; वहां कर्मचारी महासंघ (गोप गुट) द्वारा आहृान करने पर महासंघ से जुड़े शिक्षकों की पहलकदमी से हड़ताल सफल की गई. भोजपुर में शिक्षकों ने मदद की. सोनपुर और औरंगाबाद से स्वतःस्फूर्त रूप से रसोइया लोगों ने हड़ताल में भाग लिया. स्थानीय स्तर पर अखबारों में हड़ताल का कवरेज बहुत ही अच्छा था.

रसोइयों ने बहुत ही रचनात्मक ढंग से हड़ताल को सफल बनाया. मुंगेर में स्कूलों में मजदूरों को भाड़े पर रखकर खाना बनवाया जाने लगा, तो रसोइयों ने 5 दिन के लिए स्कूल में ताला बंद कर दिया. कई जिलों में टीचरों ने खुद खाना बनाया, तो कहीं परीक्षार्थी बच्चों को बिस्कुट मंगाकर खिलाया गया. इससे ये साबित हुआ जो हवा-हवाई नेता रसोइयों की ताकत को नजरअंदाज करते हैं, उन्हें सबक जरूर मिला होगा. बहुत जगह निकाल देने की धमकी दी जाने लगी तो पूर्वी चंपारण के संगठन ने अपने नारे का विस्तार कर दिया - ‘1250 में दम नहीं, 18000 से कम नहीं, निकाल दिया तो गम नहीं.’ हर जगह लड़ते-जूझते लोग 9 अक्टूबर तक डटे रहे और यूनियन के असर के इलाकों में 75 प्रतिशत हड़ताल सफल रही. कुछ जगहों पर, मसलन पटना सिटी में, इस दरम्यान न सिर्फ सारे कार्यक्रम लागू हुए, बल्कि वहां रसोइया संघ के 100 सदस्य भी बनाए गए.

पटना में धरना शुरू करने से पहले संघ की राज्य अध्यक्ष सरोज चौबे के नेतृत्व में गर्दनीबाग से जुलूस निकाला गया. धरना को ऐपवा महासचिव मीना तिवारी, आॅल इंडिया स्कीम वर्कर फेडरेशन की प्रधान संयोजक शशि यादव, संयोजक रामबली प्रसाद, ऐक्टू महासचिव आरएन ठाकुर, सचिव रणविजय कुमार, रसोइया संघ की सचिव सोहिला गुप्ता, सह सचिव सोना देवी, जहानाबाद की सचिव पूनम देवी, ऐपवा नेता माधुरी गुप्ता, लीला वर्मा, दमयन्ती सिन्हा व सावित्री देवी, संघ के पूर्वी चंपारण सचिव दिनेश प्रसाद कुशवाहा, सिवान से कुन्ती देवी, जयकरण महतो व सुदर्शन यादव, मुंगेर से सुनीता देवी, दरभंगा से सनीचरी देवी व पप्पू यादव, जमुई से बासुदेव राय, पटना सिटी से राखी मेहता, अरवल से बच्चू प्रसाद सिंह, मुजफ्फरपुर से सुधा रानी सिंह व मीना देवी और ऐक्टू के कमलेश कुमार व जितेंद्र कुमार आदि ने संबोधित किया. धरना स्थल पर गीत-गायन चलता रहा.

धरना के माध्यम से 5-सूत्री प्रस्ताव पारित किया गयाः त्रिवेणीगंज कस्तूरबा विद्यालय में अपराधियों द्वारा छात्राओं की पिटाई की निंदा की गई और ऐपवा द्वारा आयोजित 11 अक्टूबर के विरोध मार्च को सफल करने का आहृान किया गया; 19 नवंबर को दस ट्रेड यूनियनों द्वारा संसद के समक्ष आयोजित प्रदर्शन को सफल करने का आहृान किया गया; गुजरात में गैर गुजराती लोगों पर बढ़ रहे हमले की निंदा की गई और इसे तत्काल रोकने की मांग की गई; 8-9 जनवरी 2019 को आहूत आम हड़ताल को सफल बनाने का आहृान किया गया; और बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ में दस हजार सदस्य भर्ती करने का संकल्प लिया गया.  

सरोज चौबे