लाल किला पर डालमिया - नहीं मानेगा इंडिया

मोदी सरकार ने डालमिया इंडिया ग्रुप के साथ एक समझौता पत्र (एमओयू) पर दस्तखत किया है जिसके जरिए यह ग्रुप 25 करोड़ रुपये का भुगतान करके प्रतिष्ठित लाल किले को पॉच वर्षों के लिए ‘गोद’ लेगा. मोदी सरकार इस समझौते को वाणिज्यिक रूप से लाभकारी कदम कहकर उचित ठहरा रही है. सरकार के मुताबिक इस कदम से उसे कुछ राजस्व प्राप्त हो जाएगा, जबकि सरकार की ‘धरोहर को गोद लेने’ या ‘स्मारक मित्र’ योजना के तहत संबंधित कंपनी अपनी ‘कॉरपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी’ के अंग के बतौर उस स्मारक के रखरखाव का काम करेगी. मोदी सरकार कहती है कि यह फैसला पूर्ववर्ती सरकार द्वारा पारित नीति तथा टीएमसी सांसद डेरेक ओ’ ब्रायन की अध्यक्षता वाली एक संसदीय समिति की अनुशंसा के अनुरूप लिया गया है, जिसमें इस समिति ने एक दर्जन स्मारकों की सूची जारी की है जिसे कॉरपोरेट कंपनियां अपना सकती हैं.

सरकार ने जो व्याख्या दी है उससे किसी भी सवाल का जवाब नहीं मिलता है. यह लाल किला भारत का सर्वाधिक ऐतिहासिक स्मारक है जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के गौरवशाली क्षणों के साथ बेहद गहरे रूप से जुड़ा हुआ है. इसकी देखभाल को किसी कॉरपोरेट के रहमोकरम पर क्यों छोड़ा जाना चाहिए? ऐसे प्रतिष्ठित धरोहर स्थलों की देखभाल खुद राज्य क्यों नहीं कर सकता है? लाल किले की बात कीजिए, तो उसके संरक्षण के लिए कुछ जरूरी उपाय करने की तत्काल आवश्यकता है, जबकि इस एमओयू में सिर्फ रखरखाव की बात कही गई हैं. किसी सीमेंट कंपनी को चंद शौचालयों व कैंटिनों की महज देखभाल के बदले अपने प्रचार के ब्रांड के बतौर लाल किला जैसे प्रतिष्ठित स्मारक के इस्तेमाल की इजाजत भला क्यों दी जाए?

डालमिया ग्रुप को किसी ऐतिहासिक स्मारक की देखभाल का कोई अनुभव या विशेषज्ञता हासिल नहीं है. अगर कुछ है, तो उसके पास बिहार के डालमियानगर शहर में अपने कारखानों को बंद करने और अपने मजदूरों को रोजगार व मजदूरी से वंचित कर उस शहर को वीरान बनाने की बदनामी ही है. मोदी सरकार की निगाह में बेशक, यह उपयुक्त पात्र होगा, क्योंकि इस ग्रुप के अधिपति विष्णु हरि डालमिया विश्व हिंदू परिषद के नेता और अयोध्या आंदोलन के प्रणेता रहे हैं, जिसने अंततः 16वीं सदी के इतिहास के अवशेष बाबरी मस्जिद के ध्वंस को अंजाम दिया था. यह कोई छिपी बात नहीं है कि संघ-भाजपा प्रतिष्ठान भारत में संपूर्ण मुगलकालीन वास्तुशिल्प (आर्किटेक्चर) - जिसमें वह प्रतिष्ठित ताजमहल भी शामिल है - को तोड़ने-फोड़ने व बर्बाद करने पर तुला हुआ है. इसीलिए ‘डालमिया भारत’ ग्र्रुप द्वारा लाल किले के ‘गोद लेने’ को इतिहास पर भाजपा के जारी हमले के संदर्भ में ही देखा जा सकता है. 1857 के महान विद्रोह की 161वीं वर्षगांठ के मौके पर पूरे भारत को ऐतिहासिक लाल किला के लिए इस संदिग्ध डालमिया करार को बुलंद आवाज में इनकार करना होगा.