कोरोना वायरस लॉकडाउन के मद्देनजर: कामगार अवाम की तकलीफों का कम करने के लिये सरकार तत्काल, समुचित और गंभीर कदम उठाए!

1.70 लाख करोड़ का राहत पैकेज पूरी तरह से अपर्याप्त है, सरकार के संवेदनहीन रवैये को दर्शाता है!


21 दिन के लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब और शोषित वर्ग हुआ है जिनमें प्रवासी श्रमिकों ने सबसे ज्यादा मार झेली है। सरकार ने समय रहते मेडिकल इमरजेंसी की जानकारी होने पर भी पर्याप्त ठोस कदम नहीं उठाये,  जिससे स्थिति और भी गंभीर हो गई। और फिर, मोदी सरकार ने अचानक 21 दिन का लॉकडाउन घोषित कर दिया और उसे कोरोना वायरस आपदा से निपटने का रामबाण बताया। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में ना तो राहत पैकेज की बात की ना इस स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक विपदा से निपटने की किसी योजना की घोषणा की। इतना ही नहीं, केंद्र सरकार ने बड़े पैमाने पर जांच करने के डब्ल्यूएचओ द्वारा सुझाए गऐ निवारक उपाय को भी नजरअंदाज कर दिया है। ऐसे में श्रमिकों के पास दो विकल्प हैं- कोरोना या भुखमरी। सरकार ने देश को गंभीर स्थिति और अंधकार की ओर धकेल दिया है।

इस आपदा के प्रति सरकार का अड़ियल और असंवेदनशील रवैया, खासकर कामगार अवाम की विशाल जमात के प्रति, इनकी घोषणाओं में और साफ दिखाई पड़ता है - पहले, 130 करोड़ की आबादी के देश में स्वास्थ्य सेक्टर को 15000 करोड़ रूपये की मामूली राशि आवंटित की गई और फिर केवल 1.70 लाख करोड़ का राहत पैकेज दिया गया। यह पैकेज पूरी तरह से अपर्याप्त है और असंगठित मजदूरों, कृषि श्रमिकों, गरीब किसानों और ग्रामीण गरीबों का उपहास है। जबकि वहीं दूसरी तरफ, सरकार ने कुछ मुट्ठीभर बड़े व्यापारिक और कॉर्पोरेट घरानों को 7.78 लाख करोड़ की राशि उपहार में दे दी। और अब मोदी सरकार 880 करोड़ रूपये का इजराइल सरकार के साथ हथियारों का सौदा करने जा रही है, जबकि इस समय जरूरत है कोरोना राहत पैकेज और मेडिकल ढांचे को प्राथमिकता देने की।

कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए लगाया गया लॉकडाउन अब श्रमिकों और उनपर आश्रित परिवारों के एक बड़े तबके के लिए जीवन, जीविका और अस्तित्व पर लॉकडाउन बन गया है जो पहले से ही नोटबन्दी, कामबंदी, व्यापक बेरोजगारी और हाल की आर्थिक मंदी से त्रस्त हैं।

लगभग 45 करोड़ असंगठित मजदूर, जो अपना जीवनयापन रोज की कमाई से करते हैं, सबसे ज्यादा पीड़ित हैं जिनकी नौकरी, आय और आजीविका उनसे छीन ली गयी है और उनको भूख और कुपोषण की ओर धकेल दिया गया है जिससे इन लोगों के कोरोना वायरस के चपेट में आने की संभावना भी बढ़ जाती है। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले/प्रवासी/कृषि श्रमिक या स्व नियोजित श्रमिक जैसे- फेरीवाले, ठेले वाले, रिक्शा व ई-रिक्शा चालक/ऑटो/टैक्सी/ट्रक चालक, कुली, निर्माण मजदूर, बीड़ी बनाने वाले, कचरा बीनने वाले, घरेलू काम करने वाले, आदि जैसी बड़ी आबादी को बेसहारा और बेबस छोड दिया है। इन्हें इस विकट स्थिति में भी रोजमर्रा की चीजें, राशन, दवाई आदि हासिल करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। जबकि अभी आवश्यकता इस बात की है कि ये सभी चीजें उनके घर-घर पहुँचायी जाएं और बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर करे जाएं।

लॉकडाउन की आड़ में देशभर में मालिक अपने कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं, उनकी मजदूरी में कटौती कर रहे हैं या फिर अवैतनिक छुट्टी पर भेज रहे हैं। ये कर्मचारी विभिन्न संस्थाओं खासकर निजी सेक्टर के, विशेष रूप से अनुबंधित, अस्थायी या निश्चित अवधि में काम करने वाले हैं। सरकार द्वारा अपील या श्रम मंत्रालय द्वारा जारी परामर्श रोजगार और कमाई को हो रहे नुकसान को रोकने में कोई काम नहीं आ रहे हैं।

प्रवासी श्रमिकों को और भी अधिक झेलना पड़ रहा है और वे दयनीय स्थिति में हैं। लॉकडाउन के कारण न सिर्फ इन्होंने अपने अस्तित्व के साधन खो दिये हैं बल्कि पूरे देश के अलग अलग हिस्सों में अपने घर से बहुत दूर, बिना पैसे, बिना छत, बिना खाने के बुरे, गंदगी भरे हालातों में ये फंसे हुए हैं। इतना ही नही ये पुलिस के अत्याचारों का भी शिकार बन रहे हैं। उन्हें लंबी दूरी पर अपने सामान और बच्चों के साथ पैदल चलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

इस आपदा से अग्रिमपंक्ति में लड़ने वाले- हमारे डॉक्टर, नर्सें, आशा कर्मी और पैरामेडिकल स्टाफ से लेकर सफाई कर्मिंयों तक - जिनका ख्याल रखा जाना चाहिए, उनकी सुरक्षा आवश्यकताओं को नजरअन्दाज किया गया है और वे पर्याप्त सुरक्षा उपायों से लैस नही हैं।

इस गंभीर और बिगड़ती स्थिति को देखते हुए, ऐक्टू सरकार से मांग करता है कि कोरोना के चलते कस्बों और गांवों में लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए और भुखमरी और कुपोषण से लड़ने के लिए, दिखावे की बजाए, अत्यंत गम्भीरता से तुरंत एवं समुचित उपाय किए जाएं। सरकार को लोगों को कोरोना और भुखमरी दोनों से बचाना है।

ऐक्टू, इस विपरीत समय में आम लोगों के साथ खड़े होते हुए और अपनी ओर से हरसंभव प्रयास करते हुए- फंसे हुए प्रवासी मजदूरों की मदद करना, असंगठित श्रमिको के विभिन्न वर्गों की चिन्ताओं और मुद्दों को उठाना, जरूरतमंदों तक राशन, आदि पहुंचाना - केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से निम्नलिखित मांगों को तत्काल पूरा करने की मांग करता है।

सरकार से मांगें:

  1. निजी अस्पतालों/लैबों सहित सभी संस्थाओं में कोरोना वायरस टेस्ट हर एक व्यक्ति के लिए मुफ्त कराने की घोषणा की जाए। कोरोना वायरस के इलाज और क्वारंटीन के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचा विकसित किया जाए।
  2. केंद्र सरकार की तरफ से इस चिकित्सा आपातकाल से और इसके सामाजिक-आर्थिक दुष्प्रभावों से निपटने के लिए कम से कम 5-7 लाख करोड़ रूपये की राशि का राहत पैकेज देने की घोषणा की जाए।
  3. हजारों फंसे हुए प्रवासी मजदूरों और गरीब असंगठित श्रमिकों के लिए- शहरी क्षेत्र में हर वार्ड और ग्रामीण क्षेत्र में हर गाँव में- शीघ्र उचित और स्वच्छ आश्रय, पीने का पानी, और सामुदायिक किचन के माध्यम से खाना उपलब्ध करवाया जाए। साथ ही, आने वाले दिनों में उनके स्थायी ठिकानों तक सुरक्षित परिवहन सुनिश्चित किया जाए। इन श्रमिकों पर पुलिस अत्याचार बंद हो।
  4. स्व नियोजित और घरेलू कामगारों समेत सभी असंगठित और दिहाड़ी मजदूरों के बैंक खातों/जनधन खातों में 21000 रुपए की राशि तुरंत और अगले दो महीने के लिए 10000 रुपये प्रति माह डलवाए जाएं, चाहे उनका किसी बोर्ड में पंजीकरण हो या नहीं, या फिर राशन कार्ड हो या नहीं।
  5. सभी जरूरतमंद परिवारों चाहे उनके पास राशनकार्ड है या नहीं, उन्हें सभी बुनियादी सामान, मसलन-दल, चावल, तेल, गैस, चाय-चीनी इत्यादि जन वितरण व्यवस्था द्वारा मुफ्त में घर-घर जाकर पहुंचाना सुनिश्चित किया जाए।
  6. सभी आवश्यक वस्तुओं की मूल्य वृद्धि पर कड़ी निगरानी रखी जाए और इन वस्तुओं की जमाखोरी करने वालों को गिरफ्तार किया जाए।
  7. जब तक कोरोना खत्म नहीं हो जाता तब तक सभी वर्गों के श्रमिकों - नियमित और अनियमित- को वैतनिक अवकाश देना सुनिश्चित किया जाए। काम से हटने को मजबूर किसी भी श्रमिक की वेतन कटौती नहीं की जाए। 
  8. राज्य सरकारों द्वारा निजी अस्पतालों/नर्सिंग होम्स और लैबों का परीक्षण और उपचार के लिए अधिग्रहण किया जाए।
  9. 10 करोड़ से ज्यादा का कारोबार करने वाले सभी प्रतिष्ठानों पर 10 प्रतिशत का कोरोना टैक्स लागू किया जाए।
  10. प्रत्येक पंजीकृत और अपंजीकृत निर्माण श्रमिक के खाते में 21000 रुपये तुरंत जमा करवाये जाएं।
  11. अस्थायी रूप से स्कूल बंद होने के मद्देनजर, हर बच्चे को घर-घर जाकर मिड-डे मील की सुविधा मिड-डे मील कर्मियों द्वारा सुनिश्चित की जाए।
  12. आशा कार्यकर्ता, मिड-डे मील और आंगनबाड़ी कर्मियों और स्वास्थ्य और खाद्य आपूर्ति सेवाओं में लगे श्रमिकों को पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) देना सुनिश्चित किया जाए। मार्च महीने से अगले तीन माह तक के लिए इन्हें न्यूनतम 15000 रूपये का जोखिम भत्ता या विशेष वेतन दिया जाए और सभी बकाया भुगतानों का निपटारा तुरंत किया जाए।
  13. सभी ठेका सफाई कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के समकक्ष वेतन व अन्य भत्ते दिया जाना सुनिश्चित किया जाए और सभी सफाई कर्मियों को पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) दिए जाएं।
  14. अगले 3 माह के लिए सभी पेंशन भोगियों को पेंशन के रूप में प्रति माह 15000 रूपये वितरित किए जाएं।

राजीव डिमरी
महासचिव