आज से 6 सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों के विलय को लागू करने के मोदी सरकार के निर्णय का ऐक्टू विरोध करता है. 

आज का दिन भारतीय बैंकिंग उद्योग के लिये काला दिन है. 

ऐक्टू छोटी बचतों पर ब्याज दरें घटाने के सरकार के निर्णय की सख्त शब्दों में भर्त्सना करता है 

जब हमारा देश कोरोना वायरस की महामारी झेल रहा है और नतीजतन अभूतपूर्व मेडिकल आपातकाल और सामाजिक-आर्थिक आपदा का सामना कर रहा है, करोड़ों मजदूर भोजन एवं दवाईयों समेत बुनियादी वस्तुओं को हासिल करने के लिये जूझ रहे हैं, प्रवासी मजदूर बिना सर पर छत या भोजन के भूख से पीड़ित जहां तहां फंसे हुए हैं, और जब आम लोगों के कष्टों को कम करने की दिशा में देश के वित्तीय संसाधनों को लामबंद करने की सख्त जरूरत है, तब मोदी सरकार बेशर्मी से आज से 6 सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों के विलय के अपने कॉरपोरेट-परस्त निर्णय को लागू करने में लगी हुई है, जो सार्वजनिक क्षेत्र बैंकिंग जैसे देश की अति महत्वपूर्ण संपत्ति के निजीकरण के रास्ते को पूरी तरह साफ कर देगा. यहां तक कि बैंकों की यूनियनों की सरकार से अपील कि महामारी के मद्देनजर वह इस निर्णय को लागू करना स्थगित कर दे और खुद इसी कारण के चलते यूनियनों ने विलय के खिलाफ अपनी प्रस्तावित हड़ताल को भी टाल दिया, यह सब कुछ सरकार ने नजरअंदाज कर दिया और वह अड़ियल रूख अपनाते हुए अपने निर्णय पर कायम रही. सरकार का संदेश साफ है - राष्ट्र और उसके लोग जो भी संकट का सामना करें, कॉरपोरेटों के पक्ष में कदम उठते रहेंगे. 

अंधाधुंध निजीकरण, खासकर स्वास्थ्य सेवाओं समेत, के चलते इस महामारी के दौर में यूरोप और अमरीका में हुई हजारों लोगों की मौत की चेतावनी के बावजूद मोदी सरकार ने कोरोना के समय को ही बैंकों के निजीकरण के लिये चुना. मोदी सरकार कोरोना के क्रूर वैश्विक अनुभव से कुछ भी नहीं सीख पाई है. 

और अधिक, मोदी-शाह ने इस समय को इसलिये भी चुना जिससे कि इस जन विरोधी बैंक विलय के कदम के खिलाफ देश के आम लोगों और कर्मचारियों के प्रतिरोध से बचा जा सके, जो कि अत्यंत निंदनीय है. यहां तक कि मीडिया ने भी इस खबर को गायब कर दिया. 

वे बैंकिंग समेत समूचा सार्वजनिक क्षेत्र ही है जिसने हाल की आर्थिक मंदियों की मार से देश को उबरने में अहम भूमिका निभाई है. इसलिए, देश को जरूरत है कि सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों को मजबूत और विस्तारित किया जाए, लेकिन मोदी सरकार कॉरपोरेटों के स्वामीभक्त दास के बतौर काम करते हुए तमाम राष्ट्रीयकृत बैंकों का विलय कर इनकी संख्या कम करने में लगी हुई है. 

भारतीय स्टेट बैंक और पिछले साल बैंक ऑफ बड़ोदा में अन्य बैंकों के विलय के बाद, आज से 6 बैंकों के विलय की प्रक्रिया शुरू होगी जिनके बाद ये बैंक बंद हो जाएंगे, ये बैंक हैं: आंध्र बैंक, इलाहाबाद बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, ओरियंटल बैंक ऑ कामर्स, सिंडीकेट बैंक और यूनाइटेड बैंक. यह घोर निंदनीय हैं कि दशकों से हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की सेवा करने वाले इन बैंकों का वजूद खत्म कर दिया जा रहा है. आज के अपने इस कदम के साथ सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र बैंको के चार बड़े बैंकों में विलय का अपना एजेंडा पूरा कर लिया है. 

साफ है कि बैंकों के विलय का कदम जानबूझ कर लिया गया है जिसके चलते अब बैंकों का सारा ध्यान विशाल मात्रा में डूबे हुए, न चुकाये गए लोनों की वसूली से हटकर विलय से उपजी समस्याओं के निपटारे की तरफ मुड़ जाएगा, क्योंकि सरकार खुद ही जानबूझकर दोषी कॉरपोरेट घरानों से डूबे हुए लोनों की वसूली करने से कतरा रही है और उन्हें कर्ज माफी, रियायतें, आदि देकर ऐश करने की छूट दे रही है. और अब, ‘‘इन्सॉलवेन्सी बैंक्रप्सी कोड’’ (दिवाला और शोधन अक्षमता कोड) के आने के चलते इन डूबे हुए लोनों की वसूली नहीं बल्कि इन्हें रफादफा करना प्राथमिकता बन गया है. 

बैंकों का विलय न केवल इनकी पहचान खत्म कर देगा और ग्राहकों के लिये नये बैंको से व्यवहार करने में मुश्किलें पैदा करेगा, बल्कि भारी संख्या में शाखाओं में कर्मचारियों की संख्या में कटौती होगी, इनका स्थानांतरण होगा और ये शाखाएं बंद हो जाएंगी. 

ऐक्टू 1 अप्रैल 2020 से सार्वजनिक क्षेत्र बैंकों के विलय को लागू करने के मोदी सरकार के जन-विरोधी, राष्ट्र-विरोधी कदम का पुरजोर विरोध करता हैं और इसके खिलाफ संघर्ष के लिये संकल्पबद्ध है. ऐक्टू भारतीय बैंकिंग सेक्टर के निजीकरण के खिलाफ बैंकों के कर्मचारियों और यूनियनों के दृढ़ संघर्ष के साथ खड़ा है. 

यही नहीं, सरकार ने आज वित्तीय घाटा और असंतुलन को कम करने के नाम पर पीपीएफ राशि और अन्य तमाम छोटी बचतों पर ब्याज दरें घटाने की घोषणा कर दी है जो कि आज के दौर में पहले से ही घोर संकट झेल रहे कामगार अवाम के बड़े हिस्से को बुरी तरह प्रभावित करेगा. यहां तक कि सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों को भी नहीं बख्शा है. ऐक्टू छोटी बचतों पर ब्याज दरें घटाने के सरकार के निर्णय की सख्त शब्दों में भर्त्सना और विरोध करता है. 

राजीव डिमरी 

महासचिव