श्रमिकों के राष्ट्रीय कन्वेंशन में पारित हुआ श्रमिकों का मांगपत्र

मोदी शासन में 8-9 जनवरी 2019 की ऐतिहासिक दो दिवसीय देशव्यापी आम हड़ताल समेत तीन हड़तालें और अनेक प्रतिवाद कार्यक्रमों के माध्यम से देश के श्रमिकों ने 12-सूत्री मांगो पर अपना संघर्ष जारी रखा और इसे आगे बढ़ाते हुए उन्होंने 2019 के आम चुनावों के लिए अपना मांगपत्र (देखें आगे) बुलंद करने के लिये 5 मार्च 2019 को देश के 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों और स्वतंत्र फेडरेशनों के संयुक्त मंच के बैनर तले नई दिल्ली में राष्ट्रीय कन्वेंशन का आयोजन किया.

केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों में ऐक्टू, इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, यूटीयूसी और एलपीएफ शामिल थे. सम्मेलन में बैंक, बीमा, प्रतिरक्षा, रेलवे तथा केंद्रीय/राज्य सरकार के कर्मचारी सहित सभी क्षेत्रों और सेवा समूहों के स्वतंत्र राष्ट्रीय फेडरेशनों/संगठनों ने भी भागीदारी की. सम्मेलन को ऐक्टू महासचिव राजीव डिमरी, एटक महासचिव अमरजीत कौर, सीटू महासचिव तपन सेन, एचएमएस महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू, इंटक के उपाध्यक्ष अशोक सिंह, एआईयूटीयूसी सचिव सत्यवान और टीयूसीसी, यूटीयूसी, सेवा एवं एलपीएफ के नेताओं ने संबोधित किया. अध्यक्षमंडल में ऐक्टू की ओर राष्ट्रीय सचिव संतोष रॉय मौजूद थे.

2019 के लोकसभा चुनावों के लिये श्रमिकों का मांगपत्र

प्रिय श्रमिक भाइयों एवं बहनों,

हम श्रमिक, किसानों व अन्य मेहनतकश लोगों के साथ मिलकर देश में धन उत्पति करते हैं. हम ही देश की आर्थिक वृद्धि में योगदान देते हैं. इसके बावजूद भी हमारे ज्वलंत मुद्दों, हमारी समस्याओं व मांगों को सरकारों द्वारा अनदेखा किया जाता है.

पिछले कई वर्षों से श्रमिक संगठनों का संयुक्त आंदोलन मजदूर वर्ग के प्रश्नों व मांगों को लगातार उठाता आ रहा है. हमने कई तरीकों से अपने मुद्दे व मांगें दोहरायी हैं, जिसमें अभी हाल ही में दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल भी शामिल है जिसे मेहनतकश जनता का भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ, और फिर एक बार इस हड़ताल के जरिए सरकार के समक्ष मांगें पेश की गई और उनका निदान मांगा गया, लेकिन सरकार ने फिर कोई ध्यान नहीं दिया.

आज पूरा देश घोर संकट में है. श्रमिकों, किसानों, खेत मजदूरों अन्य मेहनतकश जनता की रोजमर्रा की जिंदगी हर पहलू से संकट में घिरी हुई है. कई संघर्षों द्वारा हासिल श्रम अधिकार व ट्रेड यूनियन अधिकारों पर हमला जारी है. कृषि संकट और ग्रामीण अर्थतंत्र का संकट लगातार जारी है. हजारों में किसानों की आत्महत्या का दौर भी जारी है. ग्रामीण क्षेत्रों में काम के अभाव में खेतिहर मजदूर व गरीब किसान काम की तलाश में शहर की तरफ पलायन करते हैं व शहर के असंगठित श्रमिकों के साथ बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के बहुत कम वेतन पर काम करने की प्रतिस्पर्धा में शामिल होते हैं.

सभी आवश्यक वस्तुओं, घर, बिजली, आवागमन के साधन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि की कीमतें बढ़ती जा रही हैं. जबकि मजदूरों की आमदनी में बढ़ोतरी नहीं हो रही है. बहुत से क्षेत्रों में ठेका, दैनिक व कैजुअल मजदूरों और असंगठित क्षेत्र में लगे मजदूरों की आमदनी लगातार महंगाई के चलते असल में घट गई है. असंगठित क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों के ऊपर इस स्थिति का सबसे ज्यादा कुप्रभाव दिखता है और वे किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा से भी वंचित हैं. चाय व कॉफी बागानों में मालिकों द्वारा वहां लगे मजदूरों का घोर शोषण जारी है और बीमार उद्योग इकाइयों में रोजगार पर हमेशा खतरा मंडरता रहता है.

सरकार 15वें राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में सर्वसम्मति से पारित सिफारिशों तथा साथ ही रप्टाकोस एवं ब्रेट केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन तय करने व लागू करने से इनकार कर रही है. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले तथा राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन द्वारा निर्देशित सिद्धांत “समान काम का समान वेतन के तहत ठेका, दिहाड़ी आदि मजदूरों को उसी काम मे लगे स्थाई मजदूरों के बराबर वेतन तथा अन्य सुविधाएं’’ को भी लागू नहीं किया जा रहा है.

आम सहमति से राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में पारित उन सिफारिशों को भी सरकार स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं जिनके तहत एक करोड़ के आस-पास सरकारी स्कीमों में लगे श्रमिकों, जिनमें अधिकतर महिलाएं हैं, को श्रमिक का दर्जा देना स्वीकृत किया गया है. मानदेय के नाम पर उन्हें बहुत ही कम पैसा दिया जाता है. श्रम जगत में कामकाजी महिलाओं के प्रति भेदभाव जारी है. काम के स्थान पर महिला कर्मियों के लैंगिक शोषण की घटनाएं भी बढ़ रही हैं.

बेरोजगारी एक बहुत ही गंभीर सवाल बनता जा रहा है, केवल युवा ही इससे पीड़ित नहीं बल्कि आम मजदूर भी पीड़ित है जो लगातार कारखाना बंदी के चलते हजारों की संख्या में रोजगार खो रहे हैं. दरअसल अधिकतर श्रम बहुल क्षेत्रों में रोजगार बढ़ने की बजाय घट रहा है.

श्रमिकों व उनके श्रम संगठनों के घोर विरोध के बावजूद सरकार ‘ईज ऑफ डूईंग बिजनेस (बिजनेस करने को आसान बनाना) के अपने एजेंडा को तेजी से बढ़ाने के उद्देश्य से श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तनों को तेजी से अंजाम दे रही है. सरकार 44 केंद्रीय कानूनों को 4 कोड में बदलने के अपने निर्णय को आगे बढ़ा रही है. सरकार का उद्देश्य है श्रमिकों को उनके कई दशकों के संघर्ष से प्राप्त सामाजिक सुरक्षा समेत तमाम कानूनों से वंचित करना ताकि उन्हें मालिकों की गुलामी करने की ओर धकेला जा सके.

सरकार, श्रम कानूनों में संशोधन से भी पहले ही मालिकों को हायर एंड फायर (काम पर रखो और कभी भी निकाल दो) के सिद्धांत को लागू करने के नए उपाय निकाल लाई है. एक नोटिफिकेशन के जरिए से सरकार सभी सेक्टरों के लिए फिक्सड टर्म एम्पलायमेंट के सिद्धांत को ले आई है. नीम (नेशनल इम्प्लॉयबिलिटि इन्हान्समेंट मिशन) तथा नेताप (एपे्रंटिसशिप प्रोग्राम के जरिए राष्ट्रीय रोजगार) जैसे कार्यक्रम लाए गए हैं, ताकि पक्के रोजगार को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए. अब ठेका मजदूरों को भी एप्रेंटिस व ट्रेनी मजदूरों के रूप में बदला जा रहा है. हमारे युवाओं का भविष्य तो बहुत ही धूमिल बनाया जा रहा है जहां उन्हें पक्के काम, रोजगार की सुरक्षा व सामाजिक सुरक्षा से वंचित रखा जाएगा.

सरकार अपनी निजीकरण की नीति को विनिवेश, रणनीतिक बिक्री, पूरी तरह से बेचने आदि तरीकों से आगे बढा़ रही है. सभी महत्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्रों, जैसे डिफेंस प्रोडक्शन, रेलवे, बीमा योजना, बैंक, खुदरा व्यापार आदि में 100 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश की इजाजत दे दी गई है. कोयला क्षेत्र में राष्ट्रीयकरण को खत्म करने की दिशा में सरकार निजी कमर्शियल खनन की नीति ले आई है. 600 रेलवे स्टेशनों व इनके इर्दगिर्द की भूमि को निजी कंपनियों के हवाले करने के लिए चिन्हित करने का काम जारी है. देश के सार्वजनिक डिफेंस ओद्यौगिक इकाइयों से लगभग 272 आईटम जिसमें शस्त्र व अन्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण औजार बनाए जाते थे वो सब काम निजी कंपनियों को दे दिया गया है. दावों के विपरीत, मेक इन इंडिया के तहत लिए जा रहे इन कदमों से असल में छः दशकों से जो डिफेंस क्षेत्र में शोध का काम किया गया है, उत्पादन की क्षमता बढी है उस सबको बर्बाद किया जाएगा. रणनीतिक महत्व वाले अन्य सार्वजनिक क्षेत्र, जैसे बिजली, पेट्रोलियम, टेलीकॉम, स्टील, हवाईपत्तन, ऊर्जा, र्पोटस्, गैर कोयला खनन, सड़क परिवहन आदि पर सरकार की तरफ से निजीकरण का हमला तेजी से जारी है.

सरकार अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी जो सब देशवासियों को सर्वव्यापी अच्छी शिक्षा व स्वास्थ्य प्रदान करने की है उसे भी नकार रही है. जबकि सरकारी स्कूलों, कॉलेजों-यूनिवर्सिटियों तथा अस्पतालों के लिए बजट प्रावधान कम किए गए हैं, वहीं शिक्षा व स्वास्थ्य में निजी कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए भरपूर सहयोग व तरह-तरह की छूटें दी जा रही हैं.

नोटबंदी में 86 प्रतिशत मुद्रा को एकदम रद्द करने से ना केवल आम जनता पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा, साथ ही लाखों छोटे और मध्य कारखाने व उद्यम तथा कारोबार बंद हो गए. असंगठित क्षेत्र के कई लाख श्रमिकों का रोजगार तथा छोटे किसानों की कमाई छिन गई. नोटबंदी के समय गिनाए गए उद्देश्यों में से कुछ की भी उपलब्धि नहीं हो सकी. केवल डिजिटल पेमेंट संबंधित कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया.

जीएसटी ने भी छोटे उद्योगों व कारोबार को गहरे संकट में डाला और उनमें लगे लाखों मजदूरों की जीविका पर कुप्रभाव डाला. हजारों छोटे व मध्यम उद्योग तथा खुदरा व्यापारी अभी भी संकट से उबर नहीं पाए हैं.

देश की मेहनतकश व आम जनता का सरकारी बैंकों में रखा हजारों-करोड़ रूपया कॉरपोरेट घराने लूट कर देश से पलायन कर रहे हैं. केवल 50 के करीब कॉरपोरेट घराने 80 प्रतिशत एनपीए रूपी लूट के लिये जिम्मेदार हैं. सरकार जो आम लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं व सामाजिक उत्थान के कार्यक्रमों के लिए आवश्यक खर्चा करने से मना करती है, वही देश और विदेश के बड़े पूंजीपतियों को हर वर्ष 5 लाख करोड़ की तरह-तरह से छूट देती है.

यह तो स्पष्ट है कि सरकार अपने कॉरपोरेट आकाओं की सेवा में दिन-दूनी रात-चौगुनी लगी हुई है. जो भी सरकार की इन जन-विरोधी, देश विरोधी नीतियों का विरोध करते हैं उन्हें तानाशाही तरीकों से दबाने का प्रयास किया जाता है. मानव अधिकारों व अन्य सामाजिक सरोकारों के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं को जो श्रमिकों, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा में उतरते हैं उन्हें राष्ट्र-विरोधी कहना, सजा देना व यहां तक कि मार डालना आम बात बनती जा रही है.

केवल यही नहीं, केंद्र सरकार ऐसे संगठनों व तत्वों को बढ़ावा देती है जो आपसी नफरत, विद्वेष व साम्प्रदायिक उन्माद को भड़काने का काम करते हैं. यह सब इस उद्देश्य से किया जाता है, ताकि नवउदारवाद की नीतियों के खिलाफ श्रमिकों व समाज के अन्य वर्गों की एकता व भाईचारे को तोड़ा और संघर्ष को कमजोर किया जा सके. ऐसे में, हमारे जीवन व जीविका को बर्बाद करने वाली नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ एकताबद्ध संघर्ष तेज करना समय की मांग है.

हम श्रमिक पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से एकताबद्ध होकर इन नीतियों के खिलाफ संघर्षरत हैं. हम लोगों ने इस दौर में 18 राष्ट्रीय आम हड़तालें आयोजित की हैं. इनके अतिरिक्त, संयुक्त तौर से यूनियनों ने अलग-अलग सेक्टरों में भी आंदोलन व हड़तालें की हैं. इन सब आंदोलनों में श्रमिकों की भागीदारी लगातार बढ़ती रही है.

लेकिन जब चुनाव आते हैं, अधिकतर प्रमुख पार्टियां हमारे बारे में और मुद्दों पर चुप्पी साध लेती हैं. यहां तक कि सम्मानजनक और मानवीय जीवन और जीविका से संबंधित सवालों को भी चुनावी विमर्श में जगह नहीं मिलती है. कई पार्टियां तो लोगों को धर्म, जाति आदि के आधार पर ‘वोट बैंक’ के रूप में ही देखती हैं तथा रोजमर्रा के जीवन से कोई संबंध न रखने वाले सवालों को केवल वोट हित में लोगों में ध्रुवीकरण पैदा करने के लिये उठाए जाते हैं. सत्ता में आने के बाद इन पार्टियों द्वारा हमारी पूरी तरह अनदेखी कर दी जाती है. सरकार बनाने वाले चुनावों में चंदा देने वाले कॉरपोरेट घरानों के हुक्म पर चलना शुरू कर देते हैं और इसी प्रक्रिया में खुद को मालामाल करते हैं.

यह कब तक जारी रहेगा? जबकि आज यह आवश्यकता है कि हमें बीजेपी नेतृत्व वाली इस सरकार को, जो बेहद आक्रामकता के साथ मजदूर-विरोधी, जन-विरोधी व देश-विरोधी नीतियां लागू कर रही हैं, सत्ता से बाहर करना होगा. साथ ही, जो भी सरकार केंद्र में आए उससे इन नीतियों को उलटकर मजदूर-पक्षीय, जन-पक्षीय वैकल्पिक नीतियों को बनाने व लागू करवाने की लड़ाई की ओर अग्रसर होना होगा.

यह समय है कि चुनावों में श्रमिकों के मुद्दों को उठाया जाए. चुनावी प्रचार की बहस में मजदूरों के मुद्दों को अहम स्थान मिल सके. आओ, हम सब मिलकर मजदूरों के मांगपत्र को सभी राजनैतिक पार्टियों के समक्ष रखें, उन्हें बाध्य करें कि वो इन मुद्दों पर अपनी राय स्पष्ट करें ताकि मजदूरों को किन्हें वोट देना है वो तय कर सकें.

National convention

श्रमिकों का मांगपत्र

  • 15वें भारतीय श्रम सम्मेलन की अनुशंसा और रेप्टाकोस एंड ब्रेट मुकदमे में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले अनुसार, जो बाद के 45वें तथा 46वें श्रम सम्मेलनों में भी सर्वसम्मत से दुहराया जाता रहा है, राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित करो (जो 18000 रूपये से कम नहीं हो).
  • स्थायी प्रकृति के कार्यों में ठेका प्रथा का उन्मूलन करो. जब तक ठेका प्रथा का उन्मूलन लम्बित है तब तक स्थायी श्रमिकों के समान काम करने वाले ठेका मजदूरों को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले अनुसार ‘समान काम का समान वेतन एवं अन्य सुविधायें सख्ती से लागू करो’.
  • स्थायी और बारहमासी प्रकृति के कामों में आउटसोर्सिंग और ठेकाकरण बंद किया जाय.
  • भारतीय संविधान एवं समान पारिश्रमिक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार महिलाओं और पुरूषों के लिए समान काम की समान मजदूरी सख्ती से लागू किया जाय जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी दोहराया गया है.
  • स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसा अनुसार किसानों के उत्पादन का न्यूनतम समर्थन मूल्य दें एवं अनाजों की सार्वजनिक उगाही की प्रणाली मजबूत करो.
  • किसानों की कर्ज माफी और लघु तथा सीमांत किसानों को संस्थानिक कर्जा दिया जाए.
  • कृषि मजदूरों सहित सभी मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा और कार्यस्थितियों को बेहतर बनाने वाला व्यापक कानून बनाओ.
  • आसमानछूती महंगाई पर नियंत्रण हेतु तत्काल ठोस कार्रवाई हो, आवश्यक वस्तुओं का वायदा कारोबार बंद करो, जन वितरण प्रणाली की सेवा लेने के लिए आधार से जोड़ने का बाध्यकारी प्रावधान खत्म हो.
  • श्रम सघनता को बढ़ावा देने वाले प्रतिष्ठानों को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों के द्वारा बेरोजगारी पर नियंत्रण; केवल ऐसे प्रतिष्ठानों से जुड़े नियोजकों को वित्तीय सहायता/प्रोत्साहन/छूट आदि प्रदान की जाए जो रोजगार सृजन कर रहे हैं; सरकारी विभागों के खाली/रिक्त सभी पदों को भरना व नियुक्ति पर रोक समाप्त की जाय और सरकारी पदों को प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत समर्पित करने पर रोक लगे.
  • सभी के लिए सूचकांक आधारित न्यूनतम पेंशन 6000 रूपये प्रतिमाह की गारंटी करो.
  • सरकार की विभिन्न स्कीमों में कार्यरत कर्मियों, जिनमें आंगनबाड़ी सेविका एवं सहायिका, नेशनल हेल्थ मिशन में कार्यरत आशाकर्मी एवं अन्य कर्मचारियों, मिड-डे मिल कर्मी, पारा टीचर्स, राष्ट्रीय बाल श्रमिक परियोजना में कार्यरत शिक्षण और गैर शिक्षण कर्मचारी, ग्रामीण चौकीदार आदि शामिल हैं, को श्रमिक की मान्यता देते हुए उन्हें न्यूनतम वेतन, पेंशन सहित सामाजिक सुरक्षा लाभ सभी प्रदान करो.
  • ‘फिक्स्ड टर्म नियोजन’ तत्काल समाप्त हो, जो अन्तर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन (आइएलओ) की अनुशंसा 204 (जिसे भारत ने अनुमोदित किया है) का उल्लंघन है.
  • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का विनिवेश एवं रणनीतिक बिक्री बंद हो और लोक हित में महत्वपूर्ण सार्वजनिक क्षेत्रों के पुनरूत्थान/पुनर्परिचालन के लिए पैकेज दो.
  • बीमार जूट उद्योग और चाय बागानों की बंदी के कारण, अभाव, कुपोषण और मृत्यु का सामना कर रहे हजारों मजदूरों के हित में इन उद्योगों के पुनरुत्थान और खोलने का कार्य शुरू करो.
  • रेलवे, रोडवेज, रक्षा, बंदरगाहों, बैंक, बीमा, तेल, कोयला व गैर कोयला प्राकृतिक संपदा क्षेत्रों आदि के निजीकरण के फैसले को रद्द करो. कोयला क्षेत्र में निजी कम्पनियों द्वारा व्यावसायिक खनन के फैसलों को तत्काल वापस लो.
  • डिफेंस उत्पादन की इकाइयों के निजीकरण व बंदी पर तुरंत रोक लगाई जाए. डिफेंस क्षेत्र में उत्पादन का विस्तार तथा इस क्षेत्र में देश को स्वावलंबन बनाने की नीति सुनिश्चित हो.
  • बैंकों से लिए गए कर्जे (एनपीए) वापिस लिए जाएं और कॉरपोरेट घराने जो जानबूझकर कर्जे नहीं लौटा रहे उन पर आपराधिक कानूनी कार्रवाई हो और उनसे ऊंचे सेवा चार्ज लिए जाएं. सार्वजनिक बैंकों का विलयीकरण बंद हो और बैंक ब्रांचें बंद करने पर रोक लगाई जाए. मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए बैंक जमा खातों पर सूद की दर बढ़ाई जाए.
  • सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में वेतन वृद्धि की प्रक्रिया उत्पादकता की शर्तों को लागू किए बिना जारी रखा जाय.
  • मोटर व्हीकल संशोधन बिल 2017 तथा बिजली संशोधन बिल 2018 वापिस करो.
  • 7वें वेतन आयोग की अनुसंशाओं से संबंधित केन्द्रीय सरकारी कर्मचारियों के मुद्दों का तत्काल समाधान करो.
  • एनपीएस समाप्त कर पुरानी पेंशन स्कीम फिर से बहाल करो.
  • ग्रामीण डाकसेवकों के मुद्दों के हल के लिए कमलेश चन्द्र रिपोर्ट लागू करो.
  • श्रम कानूनों में मजदूर-विरोधी और मालिक-परस्त संशोधनों एवं कोडीकरण को वापस लो. वर्तमान श्रम कानूनों का सख्ती से कार्यान्वयन सुनिश्चित करो.
  • महिला श्रमिकों के लिए 26 सप्ताह का अर्जित मातृत्व अवकाश, मातृत्व लाभ और जच्चा-बच्चा देखभाल केन्द्र (क्रैच) सुविधा लागू करो. जो नियोजक मातृत्व अवकाश के कानून को लागू कर रहे हैं उन्हें अलग से कोई भी प्रोत्साहन नहीं दिया जाय.
  • कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम का सख्ती से अनुपालन किया जाय. महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी को मजबूत करने के लिए विधानसभा व संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करो.
  • संगठन बनाने की आजादी और सामूहिक सौदेबाजी से जुड़े आइएलओ कन्वेंशन 87 और 98 के अनुमोदन के साथ घरेलू महिलाओं के लिए आइएलओ कन्वेंशन 189 का अनुमोदन किया जाय.
  • सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण (ओएसएच) से जुड़े 13 अधिनियमों को मिलाकर एक कोड बनाने के जरिए ओएसएच एवं कल्याण प्रावधानों को कमजोर करना बंद करो. वर्तमान अधिनियम और नियमावली का कार्यान्वयन सुनिश्चित करो. कारखाना निरीक्षक, खान निरीक्षकों के खाली पदों को भरा जाय और निरीक्षण पर लगी रोक समाप्त हो. इस विषय से जुड़े आइएलओ कन्वेंशन 155 एवं अनुशंसा 164 का अनुमोदन हो. दुर्घटनाओं में मानवीय एवं वित्तीय क्षति का त्रिपक्षीय ऑडिट (अंकेक्षण) बाध्यकारी हो.
  • द्विपक्षीयता और त्रिपक्षीयता को मजबूत करो. सभी प्रतिष्ठानों के नियोजकों द्वारा ट्रेड यूनियनों की मान्यता बाध्यकारी बनाई जाए. श्रमिकों से जुड़े मुद्दों पर ट्रेड यूनियनों के साथ विमर्श किया जाये और बिना आम सहमति के फैसले नहीं लिए जायें एवं मजदूर प्रतिनिधियों से नियमित और अर्थपूर्ण सामाजिक संवाद की गारंटी की जाय.
  • कॉरपोरेटों को दिये जा रहे अनुदानों में कटौती हो.
  • संविधान संशोधन के द्वारा काम का अधिकार मौलिक अधिकार बनाओ.
  • मनरेगा (महात्मा गांधी नेशनल रूरल इम्पलाॅएमेंट गारंटी ऐक्ट) में 300 दिन काम मिले. ऐसा ही कानून शहरी इलाकों के लिये भी बनाया जाय. राज्यों के न्यूनतम मजदूरी दर से कम न्यूनतम वेतन निर्धारण नहीं हो.
  • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले अनुसार मैला ढोने की अमानवीय प्रथा पर तत्काल रोक लगाई जाय और सीवरों की सफाई में मरने वाले सफाई कर्मियों के परिवारों को क्षतिपूर्ति मिले.
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम का सख्ती से अनुपालन हो.
  • अनुसूचित जाति व अनुसूचित जन जातियों को आरक्षण लाभ के अनुपात में सरकारी पदों पर पुरानी रिक्तियां (बैक लॉग) तुरंत भरी जायं. यह आरक्षण निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में भी लागू किया जाय.
  • आदिवासियों को उनके जंगल-जमीन से बेदखल करने पर रोक लगे. उनके लिए बने कानून का सख्ती से पालन हो.
  • अंतरजातीय एवं अन्तरधार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को सुरक्षा प्रदान करो. इज्जत-प्रतिष्ठा के नाम पर हत्याओं (ऑनर किलिंग) को बढ़ावा देने वाले तत्वों पर सख्ती से कार्रवाई की गारंटी करो.
  • बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ हिंसा के दोषियों को कड़ाई से सजा दिलाने की गारंटी करो.
  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 51 का असरदार कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाय, जो सभी नागरिकों का आह्वान करता है कि वे सद्भावना, भाईचारा की भावना, विविधताओं को आगे बढ़ाएं और धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय और विविध सांस्कृतिक आयामों से ऊपर उठें और महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली अपमानजनक नीतियों की निंदा करें.
  • सभी बच्चों को तकनीकि शिक्षा सहित कक्षा 12 तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा. शिक्षा के मद में बजट का आबंटन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 10 प्रतिशत होना चाहिए.
  • सभी के लिए मुफ्त स्वास्थ्य देखभाल. ग्रामीण और खासकर आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य ढांचे का सुदृढ़ीकरण हो तथा स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च जीडीपी का 5 प्रतिशत हो.
  • पूरी आबादी के लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध हो.
  • स्ट्रीट वेंडरों, रेहड़ी-पटरी एवं खोमचे वालों की संरक्षा सुनिश्चित हो. राज्यों को इसके लिए कानून के अनुसार नियम बनाने चाहिए.
  • गृह आधारित मजदूरों, जो महिला-बहुल क्षेत्र है, के हितों की रक्षा के लिए गृह आधारित मजदूरों के लिए एक कानून के साथ उनके हितों की रक्षा के लिए आइएलओ 177 का अनुमोदन किया जाय.
  • मजदूरों के कल्याण के लिए बनाए गये सभी कल्याणकारी बोर्डों में मजदूरों की सक्रिय और असरदार भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए. भवन और अन्य निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड द्वारा वसूले गये सेस से बिना खर्च किये गये शेष रकम का खर्च सिर्फ मजदूरों के कल्याण के लिए हो. कल्याणकारी बोर्ड में समुचित संख्या में मजदूरों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए. बोर्ड का संचालन एवं क्रियाकलापों को सुदृढ़ किया जाना चाहिए ताकि मजदूरों का निबंधन हो तथा कल्याण लाभ तक मजदूरों की सीधे पहुंच हो सके.
  • सरकार को राज्यों को निर्देश देना चाहिए कि कचरे की रिसाईकलिंग में लगे हर स्तर के शहरों के लिए ठोस कचरा प्रबंधन हो और उसमें लगे सभी श्रमिकों को सम्मिलित किया जाए.
  • वर्किंग जर्नलिस्ट ऐक्ट में परिवर्तन करके सभी मीडिया संगठनों के पत्रकारों व श्रमिकों को अच्छा वेतन और काम की सुरक्षा प्रदान हो सके. सब प्रकार के मीडिया में वेतन वृद्धि के लिए नए वेज बोर्ड का गठन किया जाये.