दिल्ली की हालत लगभग पूरे देश की दुर्दशा बयान करती है - ये बताती है कि कैसे मज़दूर से लेकर मास्टर और डॉक्टर तक भूखे रहकर अपने हक-अधिकार की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं !

शनिवार को ऐक्टू के दिल्ली राज्य सचिव कामरेड सूर्य प्रकाश व अन्य साथी, दिल्ली के हिन्दू राव अस्पताल के डॉक्टरों से मिले और ऐक्टू की ओर से एकजुटता जाहिर की. आज उनके भूख हड़ताल का दूसरा दिन था - देश की राजधानी में केंद्र व दिल्ली सरकार के पास डॉक्टरों को देने के लिए पैसे नही है ! चार महीने से डॉक्टरों को सैलरी नही आई जिसके कारण वो भूख-हड़ताल करने के लिए मजबूर हैं !
हद तो ये है कि जिन सरकारों के पास कर्मचारियों और चिकित्सकों को देने तक के पैसे नही हैं, वो 'कोरोना वारियर' तो कभी 'फ्रंटलाइन वर्कर' को सम्मानित करने का नाटक करने से बाज़ नही आतीं. जितने खर्च में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के चेहरे वाले फ्लेक्स दिल्ली की सड़कों को पाट देते हैं या टीवी-रेडियो-इंटरनेट पर सरकारी विज्ञापन आते हैं- कर्मचारियों का वेतन शायद उससे कम में ही हो जाता.

दिल्ली में लगातार डॉक्टरों की मांगों को अनदेखा करना सरकार की कोरोना के रोकथाम संबंधी गंभीरता को दर्शाता है. असल बात तो ये है कि मज़दूरों-कर्मचारियों-डॉक्टरों के मामले में केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच कोई लड़ाई है ही नही - बल्कि केंद्र की मोदी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार दोनों ही मज़दूरों-कर्मचारियों और डॉक्टरों से युद्ध कर रहे हैं, उनके अधिकार छीन रहे हैं, उनका जीना मुश्किल कर रहे हैं. अगर सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों या MCD कर्मचारियों को वेतन नही मिलेगा, तो जाहिर सी बात है कि सरकारी रवैये का फल दिल्ली की सबसे गरीब जनता को ही भोगना पड़ेगा. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन तक का निजी अस्पतालों में इलाज कराना ये साफ करता है कि सरकार में बैठे लोग अपने द्वारा जन-स्वास्थ्य की नजरअंदाजी से भलीभांति वाकिफ़ हैं. निजीकरण-निजीकरण का जाप करते हुए देश की मेहनतकश जनता के लिए बने हर संस्थान को खत्म करने और उनमें काम करनेवाले कर्मचारियों को भूखे मारने की साजिश लगातार जारी है.

ऐक्टू, हिन्दू राव के सभी संघर्षरत डॉक्टरों-कर्मचारियों के साथ खड़ा है और आने वाले दिनों में हर सम्भव सहयोग की कोशिश करेगा.