औरंगाबाद जिले में ट्रेन हादसाः यह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं है, बल्कि प्रवासी मजदूरों का राज्य प्रायोजित जनसंहार है. ऐक्टू औरंगाबाद और वाइजैग त्रासदियों मे मारे गए लोगों के लिए कल अखिल भारतीय ‘शोक एवं धिक्कार’ दिवस मनाने की अपील करता है

मोदी सरकार को इस त्रासदी और प्रवासी मजदूरों की बिगड़ती हालत की जिम्मेदारी लेते हुए देश से माफी मांगनी चाहिए.

ऐक्टू सभी प्रवासी मजदूरों की अपने गृह राज्यों को मुफ्त ट्रेनों से तत्काल वापसी की पुनः मांग करता है.

ऐक्टू इस भयानक त्रासदी पर गहरा आक्रोश और रेल दुर्घटना में हुई प्रवासी मजदूरों की मौत पर गहरी संवेदना व्यक्त करता है. यह भयानक त्रासदी आज अल्ल-सुबह उस वक्त हुई जब मजबूरी में पैदल ही अपने घरों की तरफ जा रहे 17 प्रवासी मजदूर (जिनमें उनके बच्चे भी शामिल थे) महराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में मालगाड़ी से कुचल कर मारे गए और 2 गंभीर रूप से घायल हो गए. मध्य प्रदेश के 19 प्रवासी मजदूर इस जिले में एक फैक्टरी में काम करते थे, वे वहां से 200 किलोमीटर दूर भुसावल पैदल जाने की कोशिश कर रहे थे, ताकि वहां से ट्रेन पकड़ कर अपने गृह राज्य वापस जा सकें. लॉकडाउन की बाधाओं और पुलिस के दमन से बचने के लिए मजबूरी में इन्हें हाइवे और मेन रोड छोड़ कर रेलवे लाइन के साथ वाला रास्ता लेना पड़ा. अपनी सुरक्षित घर वापसी के लिये सरकार से ट्रेनें मिलने के बजाये, इन्हें ट्रेनों के पहियों से कुचल कर मौत मिली.

ये इस लॉकडाउन से होने वाली दूसरी बड़ी त्रासदी है, जो वाइजैग हादसे के सिर्फ 24 घंटे के अंतराल में घटित हुई. जब से यह लॉकडाउन शुरु हुआ है बहुत से मजदूरों को भूख, भयंकर तनाव व थकान और बीमारी के चलते मौत का शिकार होना पड़ा है, जब वे अपने बच्चों के साथ पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों को जाने के लिए मजबूर हुए, और कई को लॉकडाउन से पैदा हुई भूख और बदहाली की वजह से आत्महत्या तक करनी पड़ी है.
आज का यह ट्रेन हादसा इन लाखों प्रवासी मजदूरों की बदहाली और बेबसी के प्रति मोदी सरकार की आपराधिक लापरवाही की भयानक परिणति है. ये मोदी सरकार ही है जो प्रवासी मजदूरों के बीच फैली इस अफरा-तफरी, घबराहट और बेबसी के लिये जिम्मेवार है, क्योंकि इसने उन्हें उपयुक्त संख्या में रेल गाड़ियां चलाकर सुरक्षित वापस भेजने की मांग को लगातार नकारा है. अब भी, जब सरकार ने ट्रेनों को शुरु किया है, तो उनकी संख्या बेहद कम है, मजदूरों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए उनसे किराया वसूला जा रहा है और उनके रास्ते में इतनी मुश्किलें खड़ी की जा रही हैं ताकि वो अपने घर जाने का इरादा छोड़ दें, और यहां तक कि आर्थिक गतिविधियां पुनः चालू करने के लिये उन्हें बंधुआ मजदूरी की तरफ धकेला जा रहा है. कर्नाटक की भाजपा सरकार ने तो बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए अपने राज्य की बिल्डर लॉबी की मांग पर काम करते हुए प्रवासी मजदूरों को घर वापस ले जानी वाली सारी ट्रेनों को ही रद्द कर दिया.

इसलिए औरंगाबाद जिले की आज की यह त्रासदी सिर्फ एक दुर्घटना नहीं है, यह प्रवासी मजदूरों का राज्य प्रायोजित जनसंहार है, और मोदी सरकार को इस त्रासदी और प्रवासी मजदूरों की निरंतर बिगड़ती जा रही हालत की जिम्मेदारी लेते हुए पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए.

आज देश की सबसे बड़ी जरूरत यह है कि इन प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित वापस अपने गृह राज्य भेजने के लिए मुफ्त ट्रेनें चलाई जाएं, इनके लिए स्पेशल ऐक्शन प्लान बनाया जाए ताकि उन्हें उनकी बेबसी की हालत से बाहर निकाला जा सके, और इससे पहले कि यह अफरा-तफरी और बदहाली की स्थिति और बदतर हो, मोदी सरकार को फौरन इस दिशा में कार्रवाई करनी होगी.

ऐक्टू मृत मजदूरों के परिवारजनों को 1 करोड़ रूपये के मुआवजे की मांग करता है.
ऐक्टू औरंगाबाद और वाइजैग त्रासदियों मे मारे गए लोगों के लिए कल अखिल भारतीय ‘शोक एवं धिक्कार’ दिवस मनाने की अपील करता है.

राजीव डिमरी
महासचिव, ऐक्टू