श्रम मंत्रालय के साथ केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों की बैठकः मजदूरों के सवालों को संबोधित करने के बजाए, श्रम मंत्रालय ने प्रवासी मजदूरों को बंधुआ मजदूरी में धकेलने की सिफारिश की

ऐक्टू आज केन्द्रीय श्रम मंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई बैठक में केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा उठाए गए मुद्दों पर श्रम मंत्रालय की प्रतिक्रिया और दृष्टिकोण की कड़ी निंदा करता है. इस बैठक में यूनियनों ने कोविड-19 लॉकडाउन के 45 दिनों के दौरान उभरे मजदूरों से जुड़े हुए मुद्दों को उठाया था.

यूनियनों ने इस बात की तरफ ध्यान दिलाया कि श्रम मंत्रालय ने लॉकडाउन वेतन देने और छंटनी ना होने, वेतन ना काटने के आदेश जारी किए थे, जिनकी नियोक्ताओं ने पूरी तरह धज्जी उड़ा दी है, और इसलिए उन्होंने मांग की कि इन आदेशों का कड़ाई से पालन करवाया जाए और साथ ही मजदूरों को लॉकडाउन निर्वाह भत्ते का भुगतान किया जाए. यूनियनों ने बहुसंख्यक असंगठित मजदूरों और गरीबों को राशन व अन्य आवश्यक सामान उपलब्ध ना होने का मुद्दा भी उठाया. यूनियनों ने खासतौर पर लाखों की तादाद में फंसे हुए प्रवासी मजदूरों की बिगड़ती हालत का सवाल उठाया, और साथ ही उन पर पुलिस दमन और उनकी मुफ्त, सुरक्षित घर वापसी संबंधित मुद्दे भी उठाए. यूनियनों ने हालिया कोविड-19 की स्थिति का फायदा उठा कर सरकारों द्वारा मजदूरों के अधिकार छीनने की कड़ी आलोचना की. देश में कई राज्यों द्वारा 12 घंटे कार्यदिवस का कानून लागू कर दिया गया है, लेबर कोडों को कानून में बदलने और निजीकरण को लागू करने पर जोर दिया जा रहा है. साथ ही, यूनियनों ने डीए और अन्य भत्तों को रोक कर, एक दिन का वेतन काट कर, और विविध आवश्यक वस्तुओं पर कई तरह के टैक्स आदि लगा कर वर्तमान आर्थिक संकट का सारा बोझ मेहनतकशों पर डालने की कड़ी आलोचना की. यूनियनों ने मांग की कि ”पीएम केयर्स” फंड एवं अन्य साधनों का इस्तेमाल मजदूरों की कष्टप्रद हालत में राहत देने के लिए किया जाए.

यूनियनों ने सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के विभिन्न हिस्सों, खासतौर पर स्वास्थ्य कर्मचारियों की भूमिका की प्रशंसा की जिन्होंने कोविड-19 के दौर में अपनी सेहत की परवाह ना करके इस देश का चलाने के लिए बहुत मेहनत की है.

लेकिन आश्चर्य की बात है कि श्रम मंत्रालय ने यूनियनों द्वारा उठाए गए मुद्दों व मांगो पर एक शब्द नहीं कहा, और इस तरह इस बैठक और इन मुद्दों का मजाक बना कर रख दिया. सबसे घिनौना था श्रम मंत्रालय का अमानवीय और मालिक-परस्त रवैया जिसमें उसने यह सिफारिश की कि पिछले 45 दिनों से विभिन्न राज्यों में फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को, जो भूख और बेबसी झेल रहे हैं, वापस काम पर भेज दिया जाए, ताकि उन राज्यों में आर्थिक गतिविधियों को शुरु किया जा सके. श्रम मंत्रालय ने यहां तक कि यूनियनों से भी इस काम में मदद करने और मजदूरों को घर वापस न जाने के लिये मनाने का भी आग्रह किया.

श्रम मंत्रालय की सबसे शर्मनाक बात यह थी कि उसने तर्क दिया कि प्रवासी मजदूरों को कोरोना वायरस से डरना और घबराना नहीं चाहिए क्योंकि अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में कोरोना वायरस से मरने की दर बहुत कम है. यह भयानक है कि जब हमें कोरोना से लड़ने की, जनता को बचाने और उसका पेट भरने की जरूरत है, हमारा श्रम मंत्रालय इस तरह के अंतर्विरोधी और नुकसानदायक तर्क दे रहा है ताकि मजदूरों को कॉरपोरेटों के मुनाफे के लिए जबरन मजदूरी में धकेला जा सके. यह रवैया साफ कर देता है कि सरकार ने पूरी तरह से इन असहाय मजदूरों को, जो इस लॉकडाउन के सबसे बदहाल शिकार हैं, उनके हाल पर छोड़ दिया है, कि प्रधानमंत्री को इनकी कोई परवाह नहीं है. सरकार का यह रवैया बहुत ही निंदनीय है और इसका एकजुट विरोध होना चाहिए.

 

राजीव डिमरी

महा सचिव

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