सूचना-जानकारी-पहलकदमी

‘कृषि बाजार कानूनों’ से किसानों का ही नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा

‘‘कृषि बाजार कानून से किसानों का नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा. कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) को हटाना सरकारी स्कूल को हटाने जैसा हैं, प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देने जैसा है. बिहार के पुराने कृषि उपज विपणन समिति सम्बन्धी कानून को पुनः बहाल करना चाहिए.’’

ये विचार पटना में कृषि विशेषज्ञ पी. साईनाथ ने दो अलग-अलग कार्यक्रमों में व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि ‘कृषि बाजार कानून’ से किसानों का ही नहीं बल्कि आम आदमी का भी बड़ा नुकसान होगा. इससे गरीब आदमी के लिए चल रही जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) भी प्रभावित होने वाली है. 

श्रम कोडों के जरिये तमाम श्रम कानूनों का खात्मा 

न्यूनतम मजदूरी का खात्मा , हड़ताल करने और यूनियन बनाने के अधिकार छीन लिये गये , स्थाई व नियमित रोजगार का खात्मा  मनमर्जी से छंटनी की खुली छूट

बजट 2021 - मजदूर, किसान और जन विरोधी  ट्रेड यूनियनों का 3 फरवरी को देशव्यापी विरोध् 

(2 फरवरी को पेश हुए बजट के जवाब में केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों और क्षेत्रवार फेडरेशनों/एसोसिएशनों के साझा मंच का बयान)

वित्त मंत्री द्वारा पेश किया गया बजट लफ्फाजी से भरा हुआ और जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है. यह पूरी तरह छलावे से भरा और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिये विनाशकारी है, साथ ही मेहनतकश अवाम की पीड़ाओं के प्रति क्रूर ढंग से संवेदनहीन है. वित्त मंत्री ने सरकार के आर्थिक सर्वे के उस दावे को दोहराया है कि श्रम कोड मजदूरों के लिए अच्छे हैं, और ठीक इसी तरह कृषि कानूनों की भी तारीफ की गई है. उन्होंने असल में मई 2020 को प्रस्तुत अपने छलावे भरे पैकेजों को ही आगे बढ़ाया है. 

आईआर कोड (सेंट्रल) रूल्स, 2020 (मसौदा) पर ऐक्टू की आपत्तियां

(आईआर- औद्योगिक संबंध- कोड 2020 मोदी सरकार द्वारा कोरोना काल और लॉकडाउन के बीचोंबीच दो अन्य श्रम कोडों के साथ 14 सितंबर से बुलाये गये एक हफ्ते के संसद सत्र में पास करवाकर कानून बना दिये गये है. कोरोना संकट को कॉरपोरेट घरानों के लिये अवसर में बदलने के अपने सिद्वांत के तहत, अब मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय ने इसी दौर में ही इस कानून की केंद्रीय नियमावली का मसौदा तैयार कर सार्वजनिक पटल में ला दिया है और ट्रेड यूनियन संगठनों से आपत्तियां मंगाई हैं. सरकार के इस रवैये का विरोध करते हुए, इस मसौदे पर अपनी आपत्तियां के रूप में जवाब ऐक्टू द्वारा सरकार को भेजा गया है, जो नीचे प्रस्तुत है.)

मजदूरों और रैयतों की एकता के सामने झुका डीवीसी प्रबंधन

बांझेडीह पावर प्लांट कोडरमा (झारखंड) के लिए अधिगृहीत भूमि के बदले रैयतों को मेंटेनेंस में नौकरी देने के मामले में डीवीसी प्रबंधन हमेशा किसी ना किसी बहाने मामले को टालते रही है. रैयातों को कागजी खानापूरी की जाल में और प्लांट में कार्यरत मजदूरों को विभिन्न तरीकों से उलझा रखने की साजिश करती रही है. स्थानीय सांसद और विधायक मजदूरों और रैयतों के बजाय प्रबंधन के पक्ष में हमेशा तरफदारी करते रहे हैं. इस बार यह पहला मौका था जब स्थानीय विधायक-सांसद की चुप्पी और असहयोग के बावजूद मजदूर यूनियन और रैयतों की बेमिसाल एकता के सामने डीवीसी प्रबंधन को झुकना पड़ा. 

कश्मीर से लौटे मजदूरों की व्यथा पर परिचर्चा का आयोजनः धारा 370 का खात्मा: बिहार के मजदूरों की रोजी-रोटी पर हमला

मुझे जानकारी थी कि पूरे बिहार की ही तरह पश्चिम चंपारण से गरीब-गुरबे रोजी-रोटी की तलाश में बाहर काम करने जाते हैं - बल्कि यहां से कुछ ज्यादा ही लोग जाते हैं. लेकिन यह पता नहीं था कि कश्मीर उनका पसंदीदा राज्य है. पूरे भरोसे व सम्मान के साथ वहां उन्हें काम करने का मौका मिलता है. बाहर से काम करने आए मजदूरों के साथ मेहमान की तरह स्थानीय लोगों का व्यवहार होता है. धारा 370 के खात्मे के बाद चंपारण के गांव की बहसों में गरीब-गुरबे सरकार के इस कदम का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनके खून-पसीने की कमाई के करोड़ों रुपये वहां बकाया रह गए.

असम के चाय मजदूर संघर्ष की राह पर

असम के चाय मजदूरों के लिये गुजरे वर्ष 2018 के लिये कैबिनेट कमेटी ऑन पब्लिक एकाउंट (सीसीपीए) द्वारा की गई 8.33 प्रतिशत बोनस की घोषणा ने चाय मजदूरों के बीच तीव्र जन-विक्षोभ पैदा कर दिया है. ट्रेड यूनियनों के संयुक्त फोरम - ज्वायंट ऐक्शन कमेटी आफ टी वर्कर्स (जेएसीटीडब्लू), जिसमें असम संग्रामी चाह श्रमिक संघ (संबद्ध ऐक्टू) भी भागीदार है, और सामाजिक संगठनों ने मिलकर 20 प्रतिशत बोनस देने की मांग पर 12 सितम्बर 2019 को राज्यव्यापी प्रतिवाद प्रदर्शन का आह्वान किया.

एआईसीडब्लूएफ द्वारा निर्माण मजदूरों के बीच देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान 

प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्रा

(ऑल इंडिया कंस्ट्रक्शन वर्कर्स फेडरेशन (एआईसीडब्लूएफ-संबद्ध ऐक्टू) ने सरकार द्वारा लेबर कोड के माध्यम से निर्माण मजदूरों के 1996 के दोनों कानूनों के खात्मे के विरोध में अगस्त माह में निर्माण मजदूरों के बीच देशव्यापी हस्ताक्षर अभियान चलाने का फैसला लिया है. प्रस्तुत है प्रधानमंत्री और श्रम मंत्री के नाम खुला पत्र जिस पर हस्ताक्षर अभियान चलाया जायेगा और सरकार को भेजा जायेगा.)

माननीय प्रधानमंत्री/श्रम मंत्री,

भारत सरकार, नई दिल्ली

बिहार में चयनित आईटी मैनेजर अभ्यर्थियों को मिली बड़ी जीत 

बिहार प्रशासनिक सुधार मिशन सोसाइटी (बीपीएसएम ) द्वारा नवंबर 2017 में 150 चयनित आईटी मैनेजर अभ्यर्थियों के गठित पैनल को समिति द्वारा 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण की आड़ में 11 जून को मनमाने तरीके से रद्द कर दिया गया था, जिसके बाद “आईटी मैनेजर चयनित अभ्यर्थी संघ“ द्वारा 2 महीने लड़ी गयी लड़ाई के उपरांत बिहार सरकार को बीपीएसएम को पुनः 24 जुलाई ’19 को आदेश जारी कर पैनल बहाल करना पड़ा है.

इस पैनल में कुल 150 में से चयन से वंचित 114 चयनित आईटी मैनेजरों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है.

बिहार सरकार द्वारा आशा को हज़ार रुपये मासिक पारिश्रमिक की घोषणा 

संयुक्त आशा आंदोलन की शुरुआती बड़ी जीत

संयुक्त आशा आंदोलन की नेता एवं बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (गोप गुट) अध्यक्ष शशि यादव, महासंघ गोप गुट के सम्मानित अध्यक्ष रामबली प्रसाद व ऐक्टू राज्य सचिव रणविजय कुमार ने बिहार सरकार द्वारा 17 जुलाई को कैबिनेट से बिहार के आशाओं को 1000 रुपया मासिक पारिश्रमिक देने के निर्णय को बिहार में आशाओं के आंदोलन की बड़ी जीत बताया और कहा कि 1000 रुपये की न्यूनतम  मासिक पारिश्रमिक की उपलब्धि नई शुरुआत भर है. उक्त नेताओं ने 38 दिनों के संघर्ष में शहीद होने वाली 9 आशाओं के नाम यह जीत समर्पित की.